Bihar Capital-बिहार स्थापना दिवस पर विशेष जानकारी देने का हमारा प्रयास जारी है। इस श्रृंखला में शिशुनाग वंश के बारे में जानकारी दे रहे हैं। शिशुनाग ने हर्यक वंश की जगह शिशुनाग वंश की स्थापना की। शिशुनाग ने वैशाली को राजधानी बनाया। शिशुनाग ने अवन्ति के राजा अवन्तिवर्धन को पराजित कर अवन्ति को मगध में मिला लिया। इसके अतिरिक्त शिशुनाग ने वत्स एवं कौशाम्बी को भी मगध में शामिल कर लिया।
Bihar Capital Details in Hindi
394 ई० पू० में शिशुनाग की मृत्यु के बाद कालाशोक मगध का शासक बना पुराणों में उसे काकवर्ण कहा गया है। कालाशोक के समय मगध की राजधानी पुनः पाटलिपुत्र हो गयी।कालाशोक ने 383 ई० पू० में वैशाली में द्वितीय बौद्ध संगीति का आयोजन कराया। कालाशोक की मृत्यु के बाद उसके दस पुत्रों ने शासन चलाया। शिशुनाग वंश का अंतिम शासक नंदिवर्धन था।
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नंद वंश (344-321 ई० पू०)
महापदानंद ने 344 ई० पू० में शिशुनाग वंश को समाप्त कर नंद वंश की स्थापन की। महापद्मनंद ने ‘एकराट’ अथवा ‘एकछत्र’ की उपाधि धारण की। पालि ग्रंथों में महापद्मनंद को उग्रसेन कहा गया है। पुराणों में उसे परशुराम का दूसरा अवतार बताया गया है। महापद्मनंद ने पांचाल, इश्वाकु, काशी, अश्मक, कलिंग, मैथिल आदि को पराजित कर मगध साम्राज्य का विस्तार किया। अब तक (321 ई० ) के काल में मगध का सर्वाधिक विस्तार महापद्मनंद के समय हुआ था। व्याकरण के महान विद्वान पाणिनि महापद्मनंद के समकालीन थे। इस वंश का अंतिम शासक घनानंद हुआ। घनानंद के समय ही यूनानी शासक सिकन्दर ने भारत पर आक्रमण (326 ई० पू०) किया था। नंद वंश आर्थिक एवं सैन्य रूप से काफी संपन्न था। मगध की सैन्य शक्ति के डर से ही सिकन्दर की सेना ने व्यास नदी पार करने से इंकार कर दिया । घनानंद ने अपने दरबार में विद्वान ब्राह्मण चाणक्य का अपमान किया था। चाणक्य ने चन्द्रगुप्त मौर्य की सहायता से घनानंद की हत्या करवा दी। नंद वंश के के बाद चन्द्रगुप्त मौर्य के नेतृत्व में मौर्य वंश की स्थापना हुई।
मौर्य वंश के बारे में कल