police history-पुलिस से आम आदमी को डर क्यों लगता है, लेख में है सवाल का जवाब

police history-पुलिस (Police) से आखिर डर क्यों लगता है। इस लेख में हम पुलिस के इतिहास की दिलचस्प हिस्ट्री (History) के बारे में भी बताएंगे। पुलिस पर चर्चा की चल रही हमारी श्रृंखला की तीसरी कड़ी में आज इसी पर चर्चा करते हैं।

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आलोक वर्मा

police history-पुलिस (Police) से आखिर डर क्यों लगता है। इस लेख में हम पुलिस के इतिहास की दिलचस्प हिस्ट्री (History) के बारे में भी बताएंगे। पुलिस पर चर्चा की चल रही हमारी श्रृंखला की तीसरी कड़ी में आज इसी पर चर्चा करते हैं। यह सवाल लिए हम दिल्ली पुलिस के वरिष्ठ आईपीएस (ips) और स्पेशल सीपी के पद पर तैनात दीपेन्द्र पाठक के पाल पहुंचे। श्री पाठक ने साफ तौर पर कहा कि सबसे पहले तो डरने की जरूरत नहीं है। उनका कहना है कि जो भारतीय पुलिस है उसका एक इतिहास है। इसका इतिहास अब वैसे तो पुलिस जो है अशोका के जमाने से है और कभी दंडाधिकारी कभी कुछ कहा गया। जब ब्रिटीश जमाना जब शुरू हुआ है तो वैरियस फार्म में पहले तो चौकीदार औऱ जमींदार उनके मीलिशिया के रूप में काम करती रही है। भारत ही नहीं दूसरी जगहों पर भी मगर जब माडर्न पुलिसिंग आया और जब ये भावना जगा कि जनता की मदद से हम पुलिसिंग करेंगे क्योंकि पुलिस जनता की सहूलियत है। उसका एक ऐतिहासिक विकास है। इसको हम कहते हैं पूर्व धारणा जो पुलिस के बारे में जो डर लगने का है। जब माडर्न पुलिस की संरचना हो रही थी 1860 के बाद। पहले स्वतंत्रता संग्राम के बाद जो बहुत तरह के कानून आए। उसके बाद जिस तरह से पुलिस बनी और उसी दौरान आजादी का आंदोलन भी शुरू हो गया। उस समय में पुलिस जो है वह ब्रिटीश सरकार के लिए यहां कानून व्यवस्था कायम करने के लिए कानूनी पालन में जिस तरह से जनता से जिस तरह पेश आई तो एक धारणा बन गई। दीपेन्द्र पाठक से मिले जवाब के एक छोटे से अंश को हमने इस वीडियो में भी डाला है। लेकिन सारी बात इस वीडियो में नहीं समा सकती थी। उनसे हुई बातचीत का अगला हिस्सा इस श्रृंखला की अगली कड़ी में।

वीडियो

police history in Hindi

वरिष्ठ आईपीएस दीपेन्द्र पाठक ने http://indiavistar.com से सही कहा है। भारत के आजाद होने से पहले ही पुलिस व्यवस्था वजूद में आ गई थी। अंग्रेजो नें जब भारत पर कब्जा करना शुरू किया तो विरोधियों के दमन के लिए पुलिस की ही इस्तेमाल किया था। प्राचीन भारत के इतिहास में कहीं कहीं दंडाधारी शब्द का जिक्र है। यह शब्द कुछ खास तरह के लोगों के लिए इस्तेमाल होता था जो आम जनमानस में शांति और समस्याओं के निदान और विवादों के फैसले में मदद करते थे। बाद में यह व्यव्स्था ग्राम पंचायत में बदल गई। राजा महाराजाओं के युग में ग्रामीक नामक अधिकारी की नियुक्ति होने लगी जो झगड़े फसाद निपटाने में अहम भूमिका निभाते थे। ग्रामीण व्यवस्था में ग्रामीक और नगरों में स्थानिक नाम के अधिकारियों के जिम्मे कानूर और व्यवस्था थी। मुगल काल में मुखिया और चौकीदार भी आस्तित्व में आ गए। उस समय दो तरह के चौकीदार होते थे एक उच्च तो दूसरा साधारण। उच्च श्रेणी के चौकीदार अपराध की रोकथाम आदि का काम करते थे। इन्हीं के जिम्मे सुरक्षित यात्रा का भी प्रभार था जबकि साधारण चौकीदारों का काम खेत और फसलों की रक्षा करना था। मुगल काल में हीं राजदरबार के फरमान पर ग्रामीण इलाकों के लिए फौजदार और शहरी इलाकों के लिए कोतवाल कि नियुक्ति हुई। वहीं से कोतवाल शब्द चला आ रहा है और कई शहरों में आज भी कोतवाली मौजूद है।

ब्रिटीश शासन काल की पुलिस

मुगलों के पतन के बाद भी फौजदार और कोतवाल जैसी व्यवस्था चल रही थी लेकिन जब बंगाल की दीवानी पर 1765 में अंग्रेजो ने कब्जा कर लिया तब आम लोगों से जुड़ी जिम्मेवारी भी उनकी हो गई। तभी वारेन हेस्टिंग्स नाम ब्रिटीश के मन में पुलिसिंग का आइडिया आया। साल 1781 तक फौजदारों और कोतवालों को मिलाकर उनकी मदद से पुलिसिंग व्यवस्था की रूपरेखा बनानी शुरू की गई। उस दौर के लार्ड कार्नवालिश का मानना था कि हरेक इलाके की स्थाई पुलिस बल होने चाहिए। इसी सोच के साथ जनपद में तैनात मजिस्ट्रेटों को निर्देश जारी किए गए हर जिले को पुलिस के लिहाज से अलग-अलग बांटा गया और उसकी जिम्मेवारी दारोगा नामक अधिकारी की हो गई। यानि जो वर्तमान में पुलिस प्रणाली को हम देख रहे हैं वह लार्ड कार्नवालिश की देन है। (पुलिस से जुड़ी कुछ और अहम बातें अगली कड़ी में। हमें फॉलो करें।)

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