हल्दीघाटी का युद्ध और रक्त-तलाई का का खाली स्थान

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किरण दूबे

आखिरकार हल्दी घाटी की लढ़ाई का नतीजा 440 साल बाद आया औऱ महाराणा प्रताप को जीत का श्रेय मिला। 18 जून 1576 को हुई हल्दीघाटी की लड़ाई के बारे में अब राजस्थान में दसवी कक्षा के छात्रों को नए नतीजे से वाकिफ होना होगा। 16 वी सदी की इस लड़ाई के बारे में अब मुगल शहंशाह अकबर की पराजय की जानकारी होगी।

खैर हम आपको बताने जा रहे हैं हल्दीघाटी के रक्ता-तलाई के बारे में और उससे भी बढ़कर वहां लगे स्मारक पत्थरों के बारे में जिसमें से कुछ शब्दों को कुरेद कर मिटाने की कोशिश की गई है मगर वो शब्द पूरी तरह मिटे नहीं हैं। हल्दीघाटी की पूरी घटना के बारे में बता रहे ये स्मारक पत्थरों पर कुरेदने की कोशिश ने उस जगह को खाली कर दिया है।दरअसल 440 साल बाद आए लड़ाई के नतीजों को वहां ठीक से लिखा जाना है मगर सरकारी उदासीनता की वजह से सिर्फ कुरेद कर जिस शभ्द को मिटाने की कोशिश की गई है वो स्थान खाली सा दिखाई देता है।  दरअसल हल्दी घाटी की लड़ाई में दोनों तरफ के इतने सैनिक मारे गए थे कि इस जगह पर रक्त का तालाब बन गया था। इसीलिए इस जग का नाम रक्त-तलाई पड़ गया।

 

 

 

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