गिरिराज हिमालय की केदार नामक चोटी पर स्थित है देश के बारह ज्योतिर्लिंगों में सर्वोच्च केदारेश्वर ज्योतिर्लिंग। केदारनाथ धाम और मंदिर तीन तरफ पहाड़ों से घिरा है। एक तरफ है करीब 22 हजार फुट ऊंचा केदारनाथ, दूसरी तरफ है 21 हजार 600 फुट ऊंचा खर्चकुंड और तीसरी तरफ है 22 हजार 700 फुट ऊंचा भरतकुंड। न सिर्फ तीन पहाड़ बल्कि पांच नदियों का संगम भी है यहां- मंदाकिनी, मधुगंगा, क्षीरगंगा, सरस्वती और स्वर्णगौरी। इन नदियों में से कुछ का अब अस्तित्व नहीं रहा लेकिन अलकनंदा की सहायक मंदाकिनी आज भी मौजूद है। इसी के किनारे है केदारेश्वर धाम। यहां सर्दियों में भारी बर्फ और बारिश में जबरदस्त पानी रहता है।
केदारनाथ मंदिर की प्रचलित कथा (Story of Kedarnath temple)
पौराणिक कथाओं के अनुसार हिमालय के केदार पर्वत पर महातपस्वी विष्णु अवतार नारायण ऋषि ने तपस्या कर अपनी इस आराधना से भगवान शंकर को प्रसन किया और शंकर के प्रकट होने पर नारायण ऋषि ने उनसे प्रार्थना कर ज्योतिर्लिंग के रूप में सदा वास करने का वरदान माँगा।
भागवान शिव पांडवो से हो गए थे नाराज
पौराणिक कथाओं के अनुसार ऐसा भी बताया जाता है की महाभारत के युद्ध में विजय प्राप्त कर पांडव परिवार वालो की हत्या के पाप से मुक्ति पाने लिए भगवान शंकर का आशीर्वाद पाना चाहते थे। लेकिन पांडवो से भगवान शंकर काफी क्रोधित थे पांडव शंकर भगवान के दर्शन के लिए काशी गए परंतु शंकर उन्हें नहीं मिले फिर पांडव शंकर भगवान को खोजते हुए हिमालय पर्वत पर जा पहुंचे उन्हें शंकर भगवान वहा पर भी नहीं मिले पांडवों से क्रोधित शंकर भगवान वहां से अंतध्र्यान हो कर केदार में जा बसे लेकिन पांडव भी अपनी हठ के पक्के थे वे उनका पीछा करते – करते केदार पर्वत जा पहुंचे और शंकर भगवान को ढूंडने लगे।
परन्तु बैल का रूप धारण कर शंकर भगवान अन्य पशुओं के झुंड में जा मिले। पांडवों को ऐसा संदेह हुआ कि भगवान शंकर इन पशुओ के झुण्ड में ही उपस्थित है तभी विशाल रूप धारण कर भीम ने अपने दोनों पैर दो पहाड़ों पर फैला दिए।
भीम के पैरो के बिच में से अन्य सभी गाय-बैल तो निकल गए परन्तु बैल के रूप में शंकर जी भीम के पैर के नीचे से नहीं निकले और वही पर रुक गए तभी भीम ने अपनी पूरी ताकत से बैल को पकड़ लिया लेकिन बैल भूमि के अंदर सामने लगा भीम ने अपने बल से बैल की पीठ को पकड़ लिया भीम की ताकत और उनकी श्रद्धा भक्ति देख भगवान शंकर ने पांडवों को दर्शन देकर उन्हें पाप मुक्त कर दिया। उसी समय से बैल की पीठ की आकृति वाले पिंड के रूप में भगवान शंकर श्री केदारनाथ धाम में पूजे जाते हैं।