असम के कामख्या मंदिर के बाद दूसरे सबसे बड़े शक्तिपीठ के रूप में विख्यात मां छिन्नमस्तिका मंदिर काफी लोकप्रिय है। यह मंदिर मनोकामना मंदिर के नाम से विख्यात है। छिन्नमस्तिका मंदिर झारखंड के रजरप्पा में स्थापित है। रामगढ़ से इसकी दूरी लगभग 28 किमी है। मंदिर में स्थापित माता की प्रतिमा में उनका कटा सिर उन्हीं के हाथों में है और उनकी गर्दन से रक्त की धारा प्रवाहित होती रहती है, जो दोनों और खड़ी दोनों सहायिकाओं के मुंह में जाता है।
क्या है इसकी कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार मां भगवती अपनी सहेलियां जया और विजया के साथ मंदाकिनी नदी में स्नान करने गईं थी। कथा के अनुसार, स्नान करने के बाद भूख से उनका शरीर काला पड़ गया। सहेलियां भोजन मांगने लगीं, इस पर मां भगवती ने उनसे कुछ प्रतीक्षा करने को कहा लेकिन उनकी सहेलियां भूख से तड़पने लगीं। सहेलियों का तड़प उनसे देखा नहीं गया और उनकी भूख मिटाने के लिए मां ने अपना सिर काट लिया।
कटा सिर देवी के हाथों में आ गिरा और गले से खून की 3 धाराएं निकलीं। मां ने खून की 2 धाराओं को अपनी सहेलियों की ओर प्रवाहित करने लगीं। तभी से ये छिन्नमस्तिके कही जाने लगीं यानि कि यहां पर मां का सिर छिन्न दिखाई देता है। पुराणों में रजरप्पा मंदिर का उल्लेख शक्तिपीठ के रूप में मिलता है।
मां करती है मनोकामनाओं को पूर्ण
नवरात्रि के पावन मौके पर देवी के स्थान में श्रद्धालुओं का जमघट लगा रहता है। मान्यता है कि मां इस मंदिर में दर्शन के लिए आए सभी भक्तों की सारी मनोकामनाएं पूरी कर देती हैं। कहा जाता है कि कहना है इस मंदिर का निर्माण 6000 साल पहले हुआ था। वहीं, कई लोग इसे महाभारतकालीन का मंदिर बताते हैं। यहां हर साल बड़ी संख्या में साधु, महात्मा और श्रद्धालु नवरात्रि में शामिल होने के लिए आते हैं।
यहां स्थित है मंदिर
बता दें कि असम में स्थित मां कामाख्या मंदिर को दुनिया की सबसे बड़ी शक्तिपीठ कहा जाता है, जबकि दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी शक्तिपीठ रजरप्पा में स्थित मां का छिन्नमस्तिका मंदिर है, जो झारखंड की राजधानी रांची से करीब 80 किलोमीटर दूर रजरप्पा में स्थित है। यहां छिन्नमस्तिका मंदिर के अलावा, महाकाली मंदिर, सूर्य मंदिर, दस महाविद्या मंदिर, बाबाधाम मंदिर, बजरंगबली मंदिर, शंकर मंदिर और विराट रूप मंदिर के नाम से कुल सात मंदिर हैं।
रजरप्पा के भैरवी-भेड़ा और दामोदर नदी के संगम पर स्थित मां छिन्नमस्तिके मंदिर आस्था की धरोहर है। मंदिर की उत्तरी दीवार के साथ रखे एक शिलाखंड पर दक्षिण की ओर रुख किए माता छिन्नमस्तिका का दिव्य रूप अंकित है। पश्चिम दिशा से दामोदर और दक्षिण दिशा से कलकल करती भैरवी नदी का दामोदर में मिलना मंदिर की खूबसूरती का बढ़ावा देता है।