Chhath Puja-छठ महापर्व की ये सारी बातें भी जान लीजिए कितना महत्वपूर्ण पर्व है छठ

Chhath Puja-पूरा देश छठ महापर्व मना रहा है। छठ लोक पर्व या प्रकृति पर्व भर नहीं है, इसे सृष्टि का महापर्व भी कहा जाता है। सबसे पुराने वेद ऋग्वेद में भी सूर्य उपासना का जिक्र है। बताया जाता है कि त्रेता युग में बिहार के मुंगेर में महर्षि मुद्गल के आश्रम में पहली बार छठ हुआ था।

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Chhath Puja-पूरा देश छठ महापर्व मना रहा है। छठ लोक पर्व या प्रकृति पर्व भर नहीं है, इसे सृष्टि का महापर्व भी कहा जाता है। सबसे पुराने वेद ऋग्वेद में भी सूर्य उपासना का जिक्र है। बताया जाता है कि त्रेता युग में बिहार के मुंगेर में महर्षि मुद्गल के आश्रम में पहली बार छठ हुआ था। द्वापर युग में द्रौपदी ने भी अज्ञातवास के दौरान यह व्रत किया था। उन्हें यह व्रत करने के लिए धौम्य ऋषि ने कहा था। भविष्य पुराण के 42 वें अध्याय में कृष्ण पुत्र साम्ब के मगध में सूर्य को अर्ध्य देकर कुष्ठ रोग से मुक्ति का वर्णन है। आइए जानते हैं इस महापर्व की इसी तरह की कई अहम बातें।

Chhath Puja प्राकृतिक वैध्य हैं सूर्य

पुरातत्ववेत्ताओं के अनुसार सूर्य की उपासना का प्रारंभ नवपाषाणकाल से ही प्रारंभ हो गया था। पौराणिक स्त्रोत में सूर्य उपासना का साक्ष्य ऋग्वेद में प्राप्त होता है। इस बात के भी साक्ष्य हैं कि इस व्रत का प्रारंभ बिहार में ही हुआ था। छठ का प्रसाद आम जीवन से जुड़ी चीजों से होता है। नहाय-खाय में कद्दू की सब्जी, अरवा चावल और चने की दाल और खरना में गुड़ की खीर और रोटी को प्रसाद के रूप में ग्रहण किया जाता है।

छठ के लिए दिए जाने वाले अर्ध्य में केला, नारियल, गागल, ठेकुआ, गन्ना, अक्षत, सिंदूर, धूप, चना, मौसमी फल, पौधे से लगी मूली, अदरक और हल्दी आदि सूप पर रखे जाते हैं। छठ की पवित्रता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि अत्याधुनिक युग होने के बाद भी परंपरा में किसी तरह की छेड़छाड़ नहीं की गई है। मिथिलांचल में छठ में कोसी भरने की परंपरा है। छठ करने वाले पुरूष पीली धोती में और महिलाएं सूती साड़ी में व्रत करती हैं।

छठ व्रत में काला रंग वर्जित होता है। व्रति खरना वाले वस्त्र से ही शाम और सुबह का अर्ध्य देते हैं। छठ में दो कथाएं प्रचलित हैं। ये दोनो कथाएं भगवान कार्तिकेय से जुड़ी हुई हैं। आसुरी शक्तियों को पराजित करने के लिए सेनानायक के रूप में भगवान कार्तिकेय को भेजा गया। देवी पार्वती ने तब सूर्य के समक्ष प्रण किया कि पुत्र की सकुशल वापसी पर वह विधिवत अर्ध्य देकर सूर्य की पूजा करेंगी। कार्तिकेय की वापसी पर देवी पार्वती ने निर्जला व्रत रखकर सूर्यास्त और सूर्योदय के समय अर्ध्य देकर सूर्य की पूजा की।

इससे संबंधित दूसरी कथा के मुताबिक मां पार्वती ने सरकंडे को वन में छोड़ दिया। वन में 6 कृतिकाएं रहती थीं। उन्होंने स्कंद का पालन पोषण किया। कार्तिक की 6 माताएं हैं। इन्हीं कृतिकाओं को छठी मइया या छठ माता कहा जाता है। यह घटना कार्तिक माह में हुई थी इसलिए पहले यह व्रत स्कंद षष्ठि के नाम से जाना जाता था। श्री कृष्ण के पुत्र राजा साम्ब ने देश में 12 जगहों पर सूर्यपीठ की स्थापना की थी। इनमें से 2 नालंदा में हैं। सिलाव प्रखंड का बड़गांव और एकंगरसराय प्रखंड का औंगारी धाम। यहां देश भर से लोग छठ करने आते हैं।

कहा जाता है कि युद्ध के समय श्रीकृष्ण राजगीर आए तो उन्होंने बड़गांव पहुंचकर सूर्य की आराधना की। 1934 में इस मंदिर का पुनर्निर्माण हुआ।

अस्वीकरण-लेख विभिन्न माध्यमों से मिली जानकारी पर आधारित है।

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