Bhojpuri-क्या आप जानते हैं भोजपुरी के इस गायक को, लाइफटाइम अचीवमेंट से सम्मानित

Bhojpuri-भोजपुरी लोकगीत के सरताज कहे जाने वाले 103 वर्षीय जंग बहादुर सिंह को भोजपुरी संगीत के लिए लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड से सम्मानित किया गया है।

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Bhojpuri-भोजपुरी लोकगीत के सरताज कहे जाने वाले 103 वर्षीय जंग बहादुर सिंह को भोजपुरी संगीत के लिए लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड से सम्मानित किया गया है। 22 नवम्बर 2023 को भोजपुरी के धाम अमही मिश्र, भोरे, गोपालगंज, बिहार में जय भोजपुरी-जय भोजपुरिया द्वारा आयोजित साहित्यिक-सांस्कृतिक महोत्सव-6 में 103 वर्षीय लोक गायक जंग बहादुर सिंह को भोजपुरी लोकगायिकी के क्षेत्र में अमूल्य योगदान के लिए ‘ लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड’ से सम्मानित किया गया।

Bhojpuri-इन्होंने दिया सम्मान

जंगबहादुर सिंह को यह सम्मान उन्हें प्रख्यात लोक गायक मुन्ना सिंह व्यास, भरत शर्मा व्यास व संस्था के अध्यक्ष सतीश त्रिपाठी द्वारा संयुक्त रूप से दिया गया।इस अवसर पर भोजपुरी के लोकप्रिय गायक मदन राय, गोपाल राय, विष्णु ओझा, उदय नारायण सिंह, राकेश श्रीवास्तव, कमलेश हरिपुरी व संजोली पांडेय समेत तीन दर्जन से अधिक कलाकार व हजारों की संख्या में श्रोतागण मौजूद थे।

अनसंग हीरो से कम नहीं जंगबहादुर सिंह

1920 में बिहार के सिवान जिला के कौसड़ गाँव में जन्मे जंग बहादुर सिंह आजादी के पहले अपने क्रांतिकारी भोजपुरी गीतों से अंग्रेजों को ललकारते रहे। भोजपुरी देशभक्ति गीत गाने की वजह से अंग्रेजों ने उन्हें जेल में डाल दिया था। कहा जाता है कि जब जंग बहादुर सिंह गाते थे तो लगता था कि वक्त ठहर गया है। गायकी में नाम कमाने से पहले वह पहलवानी करते थे।
आसनसोल, झरिया, धनबाद और पूरे बिहार-यूपी में तीन दशक तक जंग बहादुर सिंह की गायिकी का डंका बजता रहा। भैरवी गायन में तो उनके सामने कोई टिकता ही नहीं था। बताते हैं कि एक बार दुगोला के एक कार्यक्रम में तीन बड़े गायक मिलकर एक गायक को हरा रहे थे। उस समय दर्शकों नें बैठे जंगबहादुर सिंह ने विरोध किया। इसी कार्यक्रम के बाद जंगबहादुर सिंह ने गायक बनने की ठान ली और संगीत में महारत हासिल की।

वे महाभारत के पात्रों कुंती, भीष्म, कर्ण, द्रौपदी, सीता, राम और देशभक्तों में आजाद, भगत सिंह, गांधी आदि के बारे में गाते थे। इन्हीं के बारे में गाकर उन्होंने भोजपुरी जनमानस में लोकप्रियता हासिल की। जिस कार्यक्रम में वह नहीं जाते थे वहां दर्शकों की संख्या कम पड़ जाती थी।

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