
नई दिल्ली, आलोक वर्मा। सरकारी स्तर पर सारे इंतजाम और तत्पर रहने के बाद भी मजदूरों का पलायन तेजी से जारी है। घर वापसी के जुनून में श्रमिक यह भी भूल जा रहे हैं कि घर वापसी के लिए इस्तेमाल किया जा रहा साधन उनका जीवन ले सकता है। औरैया हादसे पर सोशल मीडिया पर ट्रेंड कर रहा है। हर कोई मजदूरों के दूख से दुखी दिखने का रेस जीतने को आतुर है। हो भी क्यों ना आखिर 24 मजदूरों की मौत कोई मामूली हादसा नहीं है। सिर्फ ओरैया ही नहीं रेल पटरी से लेकर सड़क तक आज सबसे सस्ता जीवन मजदूर ही जी रहा है। वह भी तब जब सराकारी स्तर पर बड़े-बड़े उपाय किए गए हों। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की बात करें या उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की। हर स्तर पर इंतजाम किए गए हैं लेकिन मजदूरों की बदहवासी समाप्त होने का नाम नहीं ले रही और ना ही उनका पलायन रूक रहा। अब पीएम या सीएम के स्तर पर इंतजाम तो कर दिए गए स्थानीय प्रशासन भी तैनात हो गया लेकिन मजदूरों तक सरकारी प्रयासों का साकारात्मक रूप पहुंचाए कौन।
मेरी समझ से इस पूरे मामले में स्थानीय जनप्रतिनिधि या नेताओं की कमी खल रही है। स्थानीय नेता मजदूरों में व्याप्त व्याकुलता पर काबू पाने में स्थानीय नेता अहम भूमिका निभा सकते हैं। लेकिन सेवा भाव से कहीं भी कोई जनप्रतिनिधि नहीं दिख रहा। ना जाने क्यों सोशल मीडिया पर एक प्रतिक्रिया देकर स्थानीय नेता अपने कर्तव्य की इति श्री मान लेते हैं। कोरोना वायरस के संक्रमण से डर कर उनका ऐसी जगहों पर ना जाना निजी मायने में उचित हो सकता है लेकिन सार्वजनिक हित में उनकी निष्क्रियता समझ नहीं आती। कोरोना योद्दा के रूप में सरकारी सेवा से जुडे हर आदमी का जीवन अनमोल है स्थानीय नेताओ का भी। लेकिन यह उन्हें समझना होगा कि मजदूरों में उनकी बात का असर ज्यादा होगा। वास्तव में सरकार वापसी के इच्छुक मजदूरों के वापस भेजने का इंतजाम तो कर ही रही है बस उन्हें बताना है कि सरकारी इंतजामों को छोड़ वह पैदल या ऐसे किसी साधन को ना अपनाएं जो उनके औऱ उनके परिवार के जीवन पर भारी पड़ जाए।