Jharkhand news-कोयले के कूड़े से बन गया था पत्थर का पहाड़, वैज्ञानिकों ने उपाय बताया वन विभाग ने इस तरह उगाई हरियाली

खनन के कूड़े से बने पत्थर के पहाड़ों पर किस तरह वन विभाग ने हरियाली उगायी है इसकी बड़ी दिलचस्प कथा है। ग्राउंड रिपोर्ट के लिए आप नीचे दिए गए लिंक को क्लिक कर वीडियो भी देख सकते हैं।

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Jharkhand news-झारखंड को जानते हैं तो धनबाद में कोयला खनन को भी जानते ही होंगे। यह भी जानते होंगे कि इस कोयले की वजह से धनबाद में पर्यावरण का क्या हाल है। कोयले के कूड़े से कई जगहों पर तो पत्थर के पहाड़ बन गए हैं। खनन के कूड़े से बने पत्थर के पहाड़ों पर किस तरह वन विभाग ने हरियाली उगायी है इसकी बड़ी दिलचस्प कथा है। ग्राउंड रिपोर्ट के लिए आप नीचे दिए गए लिंक को क्लिक कर वीडियो भी देख सकते हैं।

वीडियो में ग्राउंड रिपोर्ट

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धनबाद के कई ऐसे इलाके हैं जहां कोयले के कूड़े ने पत्थर के पहाड़ का रूप ले लिया था। खनन से पर्यावरण पर चौतरफा बुरा असर पड़ता है। वनों की कटाई के साथ-साथ मिट्टी का क्षरण, जैव विविधता की हानि, जल प्रदूषण और ना जाने क्या-क्या.. खनन के नुकसान चाहे जितने गिने जाएं कम हैं। खनन से होने वाला नुकसान संसार भर में चिंता का विषय है।

जी-20 बैठक में राष्ट्रों के कार्य समूह के बीच आवश्यक विचार-विमर्श के लिए खनन क्षेत्र की बहाली को ‘पर्यावरण और जलवायु स्थिरता’ के विषयों में से एक के रूप में रखा भी गया। केंद्र सरकार की पहल पर पर्यावरणीय नुकसान की भरपाई के लिए पुनर्वास का अभियान जोर-शोर से चलाया जा रहा है। धनबाद में कोयले के कूड़े को ईकोसिस्टम के अनुरूप कैसे बनाया जाए इसके लिए प्रयास किया गया।

इस तरह शुरू हुई हरियाली लाने की कहानी

केंद्रीय कोयला मंत्रालय के तहत काम करने वाली कोल इंडिया लिमिटेड की सहायक कंपनी भारत कुकिंग कोल लिमिटेड(बीसीसीएल) ने खनन केंद्र में पर्यावरण बहाली के लिए वन मंत्रालय के अधीन काम करने वाली संस्थान भारतीय वानिक अनुसंधान शिक्षा परिषद(ICFRE) से संपर्क किया। संस्थान के वैज्ञानिक और एडीजी एनवारमेंट मैनेजमेंट डिवीजन डा. अमर नाथ सिंह के मुताबिक पर्यावरण-पुनर्स्थापना कार्यों से पहले, खनन क्षेत्र लैंटाना कैमारा, यूपेटोरियम ओडोरेटम और हाइप्टिस सुवेओलेंस जैसे विदेशी खरपतवारों से भारी रूप से प्रभावित था।

पुनर्स्थापना कार्यों की प्रक्रिया में, खरपतवारों को उखाड़ दिया गया और मिट्टी की नमी और कार्बनिक पदार्थ को संरक्षित करने के लिए गीली घास के रूप में उपयोग किया गया। भौतिक और जैविक दोनों उपायों सहित विभिन्न पारिस्थितिक बहाली विधियों को अपनाया गया।ओबी डंप पर बेंच निर्माण, आवश्यक मिट्टी का काम, रिटेनिंग दीवारों, टो वॉल, गेबियन चेक डैम, लूज बोल्डर चेक डैम, पत्थर चिनाई चेक डैम और गारलैंड नालियों का निर्माण शामिल है।

जैविक उपायों में वानिकी, बागवानी, औषधीय और घास की उत्पत्ति की उपयुक्त प्रजातियों का चयन, गुणन और प्रसार प्रोटोकॉल और रोपण के तरीके जैसे कि सीधे बीज बोना, बीज मिश्रित मिट्टी की गेंद, रोपण रोपण, तना काटना, बल्ब और स्लिप रोपण शामिल थे। चयनित प्रजातियों को अपनाया गया। जीवित रहने की दर, रोपित प्रजातियों की वृद्धि और मिट्टी के भौतिक-रासायनिक और पोषण संबंधी गुणों में किसी भी बदलाव की बारीकी से निगरानी की गई। इस काम में वन विभाग के लोगों के प्रयास भी शामिल किए गए।

पुनर्स्थापन कार्यों के परिणामस्वरूप कूड़े से बन गए कई पहाड़ों को को वनस्पति विविधता, पशु विविधता, मिट्टी के भौतिक-रासायनिक और पोषण संबंधी गुणों में सुधार के साथ सफलतापूर्वक समृद्ध किया गया है। कुल मिलाकर, पुनर्स्थापना कार्यों ने कोयला खनन से होने वाली पर्यावरणीय क्षति की भरपाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। अकेले आकाश किनारा के 5 हेक्टेयर में ही 12500 पौधे हैं जिनमें से कई औषधीय हैं।

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