तब चीनी आक्रमण पर लिख दी थी दिनकर ने कविता पुस्तक, जानिए पढ़कर ये बोले थे नेहरू !

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। राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर के जन्मदिवस पर शत्-शत् नमन ।।
[ जन्म-23/09/1908 मृत्यु-24/04/1974 ]

डॉ. रामधारी सिंह दिनकर 10 जनवरी,1963 से 3 मई, 1965 तक भागलपुर विश्वविद्यालय के कुलपति थे।

अपने कुलपति काल मे ज़िला हिन्दी साहित्य सम्मेलन के सचिव डॉ विष्णु किशोर झा ‘‘बेचन‘’ और चित्रशाला

स्टुडियो के संचालक तथा साहित्यनुरागी हरिलाल कुंज के निमंत्रण पर वे 25 अक्तूबर, 1964 को चित्रशाला

स्टुडियो में एकल काव्य पाठ करने आए थे। उस मौके पर बंगला के प्रसिद्ध साहित्यकार डॉ.बलाइ चन्द्र मुखर्जी

‘बनफूल‘ अपनी पत्नी के साथ उनकी कविताओ को सुनने आए। उस अवसर पर दिनकर जी ने भारत पर चीनी

आक्रमण के संदर्भ मे लिखी अपनी महाकाव्यात्मक कविता ‘’परशुराम की प्रतीक्षा’‘ का सिंहनादी स्वर मे पाठ किया।

जब नेहरू ने बुलाया 

वे चीनी आक्रमण के समय भारत सरकार की नीतियो से बहुत क्षुब्ध थे। उन्होने कविता पाठ के क्रम मे बताया कि जब जवाहरलाल नेहरू को मेरी इस कविता पुस्तक ‘’परशुराम की प्रतीक्षा’‘ मे उनकी नीतियो को लेकर की गयी आलोचना का पता चला, तब उन्होने मुझे बुलाया और डांटा कि यह सब क्या बकवास है? मैंने उनसे कहा कि “आपकी विदेश नीति बिलकुल असफल रही है। तो वे बहुत क्रोधित हो गए और गुस्से से मेज पर मुक्का मारते हुये मुझसे पूछा कि तुम्ही बताओ दिनकर मैं क्या करता? वे परेशान होते रहे। लेकिन मैं शुरू से नेहरुजी के साथ बराबरी का बर्ताव करता रहा हूँ, इसलिए मैंने अपनी बात बिना झिझक उनके सामने

रखी और चला आया।” दिनकर जी ने कहा कि नेहरू जी जो चाहते थे, वह नही कर पाते थे। लोग उनको वैसा

करने नहीं देते थे। उनके चारो ओर खुशामदियो की भीड़ रहती थी।

दिनकर जी अपनी कविता का पाठ करते-करते कभी कभी बहुत उत्तेजना मे आ जाते और क्रोध से उनकी

आंखे लाल हो जाती। जब उन्होने कहा कि आज के नेता-
‘”चोरो के हैं हितू ,ठगो के बल है
जिनके प्रताप से पलते पाप सकल हैं
जो छल प्रपंच ,सबको प्रश्रय देते हैं
या चाटुकार जन से सेवा लेते हैं
यह पाप उन्ही का हमको मर गया
भारत अपने ही घर मे हार गया।”

और इस तरह दिनकर जी का एकल काव्य पाठ समाप्त हुआ।

दिनकर जी जब बीमार रहने लगे

66 वर्ष की आयु में राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर पारिवारिक संकटों के चलते बीमार रहने लगे। इस दौरान उन्होंने अकस्मात ही एक दिन रामेश्वरम तिरुपति जाने का फैसला किया। मंदिर के प्रांगण पहुँच कर बिना किसी अग्रिम तैयारी के दिनकर जी ने अपनी प्रिय रचना “रश्मिरथी” का पाठ आरंभ कर दिया। पाठ करने के उपरांत दिनकर जी ने समुद्र से कविता सुनाने के उपलक्ष्य में दक्षिणा स्वरूप अपनी मृत्यु का प्रस्ताव रख डाला और उसी रात रामेश्वर के पवित्र जल में हिन्दी का दिनकर सदा के लिए अस्त हो गया।

दिनकर को श्रद्धांजलि

कहा जाता है कि बालकवि बैरागी, दिनकर जी के सबसे प्रिय कवि थे। दोनों महारथियों ने एक संग कई कवि सम्मेलनों में शिरकत की। दिनकर जी के अकस्मात निधन पर उदास मन से भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए बालकवि बैरागी जी ने यह रचना गढ़ी। आइए पढ़ते हैं इस रचना के कुछ हिस्से…

क्या कहा! क्या कहा!
कि दिनकर डूब गया
दक्षिण के दूर दिशांचल में!
क्या कहा कि गंगा समा गयी
रामेश्वर के तीरथ जल में!
क्या कहा! क्या कहा!
कि नगपति नमित हुआ
तिरुपति के धनी पहाड़ों पर!
क्या कहा! क्या कहा!
कि उत्तर ठिठक गया
दक्षिण के ढोल नगाड़ों पर!

कल ही तो उसका काव्यपाठ
सुनता था सागर शांत पड़ा
तिरुपति का नाद सुना मैंने
हो गया मुग्ध रह गया खड़ा!
वह मृत्युयाचना तिरुपति में
अपने श्रोता से कर बैठा
और वहीं कहीं वह समाधिस्थ
क्या कहते हो कि मर बैठा!

यदि यही मिलेगा देवों से
उत्कृष्ट काव्य का पुरस्कार
तो कौन करेगा धरती पर
ऐसे देवों को नमस्कार
तो कौन करेगा धरती पर
ऐसे देवों को नमस्कार।

हमारे प्रिय कवि दिनकर आप अपनी कविताओं के साथ सदा हमारे हृदय में विराजमान रहेंगे।

एक छोटी सी रचना दिनकर जी को समर्पित:-

उदित हुआ वह दिनकर की किरणों सा
गंगा के आंचल मे पल कर,
गाँवो की गलियों मे बढ़ कर,
वह नुनुआ जैसे जैसे बढ़ता है।
हिन्दी का रंग उस पर चढ़ता है।
हिंदी को हथियार बना कर भारत से वह कहता है, पुनः महाभारत की तैयारी करने को वह कहता है
कुरुक्षेत्र की मिट्टी से प्रथम विजय संदेश वो दिल्ली को भिजवाता है।
स्वयं परशुराम की प्रतिज्ञा ले कर हर घर रश्मि देने को वह, दिल्ली से कहता है।
शोषित जनता हो अथवा लाचार मजदूर, किसान सब मे नये हुंकार चेतना का स्वर भरता है।
गांवों की गलियों से लेकर पटना की सड़कें हो या दिल्ली का वो संसद हो राष्ट्र हित की ध्वजा लिए वह आगे आगे बढ़ता है।

दिनकर की चमक

पश्चिम में छिपता दिनेश जो,उदित होता फिर नित्य नभ में।
है चकित क्षितिज भी देख,दिनकर की चमक सतत जग में।

प्रखर अग्नि सा तेज भरा, वीररस के ओजस्वी राष्ट्रकवि।
भानु रश्मि सम तीव्र वेग सी, थी उनकी लेखनी की गति।
रेणुका,कुरुक्षेत्र,उर्वशी एवं, सूरज का ब्याह लिखकर वो,
साहित्य जगत में कीर्तिमान बन,यों चमक उठे ज्यों रश्मिरथी।

कंटक ही कंटक जिन्हें मिले थे,चहुँओर ही जींवन के मग में।
है चकित क्षितिज भी देख,दिनकर की चमक सतत जग में।

पद्म भूषण से अलंकृत,और महाभारत शांति पर्व लिखा।
स्वर्ण वर्णों से दिनकर लिखते, देशभक्ति की दीप्तिशिखा।
नील कुसम, परसुराम प्रतीक्षा, सपनों का धुआं उठाकर,
हिंदी साहित्य शिरोमणि ने निज, संघर्षों से ही सब सीखा।

हुंकार भरती देशभक्ति थी,सदा प्रवाहित जिनकी हर रग में।
है चकित क्षितिज भी देख,दिनकर की चमक सतत जग में।

महान राष्ट्रकवि दिनकर को शत-शत नमन!

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