जानिए दिल्ली पुलिस के इन दो अभियानों की कहानी, आप भी जुड़ सकते हैं इस अभियान से

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आलोक वर्मा

नई दिल्ली।  प्रदेश के टीकमगढ़ निवासी रामचरण रोजी रोटी की तलाश में दिल्ली आए। यहां उनका तीन साल का बेटा अनुराग लापता हो गया। काफी तलाश के बाद भी अनुराग का कुछ पता नहीं लगा। हार थक कर बेटे के गुम होने का दर्द लिए रामचरण ने दिल्ली छोड़ दी। यह बात 2014 की है। त्र साल बाद उनके बेटे अनुराग को पुलिस ने तलाश कर लिया है। मेहनत मजदूरी करने मथुरा चले गए रामचरण की खुशी का अंदाजा आप लगा सकते हैं। इसी तरह पालम थाने में इंस्पेक्टर पारस वर्मा की टीम ने पिछले 35 दिनो में 14 लापता बच्चों को तलाश कर उनके माता पिता को सौंपा।

दिल्ली में लापता बच्चों की तलाश को दिल्ली पुलिस ने अभियान बना लिया है। इस साल दिल्ली पुलिस की कमान बदलते ही लापता बच्चों की तलाश पर फोकस किया गया है।

लापता बच्चों का तथ्य

दिल्ली पुलिस ने इस साल 3116 लापता बच्चों में से 2609 बच्चों को बरामद कर लिया है, यानि 83.72 प्रतिशत लापता बच्चे बरामद हो चुके हैं। दिल्ली पुलिस ने केवल दो महीने के दौरान ही (7अगस्त 2020 से 10 अक्टूबर 2020) 1171 लापता बच्चे तलाश किए। अब प्रतिशतता के हिसाब से देखेंगे तो इसकी दर 134 प्रतिशत है। इतनी बड़ी संख्या में लापता बच्चों की बरामदगी यूं ही नहीं हुई। आपको ये भी बता दें की 7 अगस्त से पहले लापता बच्चों की तलाश की स्पीड इतनी नहीं थी।

लापता बच्चों की तलाश कैसे बना अभियान

इस साल जून और जुलाई में 724 बच्चों के लापता होने की रिपोर्ट दर्ज हुई थी। बरामदगी सिर्फ 235 की थी। लेकिन 7 अगस्त से 10 अक्टूबर के बीच में 874 बच्चों के लापता होने की रिपोर्ट दर्ज हुई औऱ 1171 बरामद हो गए। यह इसलिए संभव हुआ क्योंकि दिल्ली पुलिस कमिश्नर एस एन श्रीवास्तव ने इस दिशा में एक खास रणनीति बनाई।

दिल्ली पुलिस कमिश्नर एस एन श्रीवास्तव के मुताबिक दिल्ली जैसे शहर में बच्चे लापता होते हैं। ऐसे मामलो में केस दर्ज करना अनिवार्य है। लेकिन कार्रवाई सुस्त होती है। पहले से एक निर्धारित मापदंड थे उसी के तहत् जांच होती थी।

इस मापदंड के मुताबिक मामला दर्ज करना, इश्तिहार छपवाना और वायरलेस सेट से दूसरे शहरों में संदेश भेजना आदि था।

पुलिस कमिश्नर एस एन श्रीवास्तव का मानना है कि लापता होने वाले ज्यादात्तर बच्चे गरीब परिवार के होते हैं। ऐसे परिवारों के पास ना तो सिफारिश होती है ना ही साधन। लिहाजा अपने लापता बच्चे को तलाश करने के लिए वह पूरी तरह पुलिस पर ही निर्भर रहता है।

काफी गहन विचार करने के बाद ये सोचा गया कि लापता बच्चों के मामले में सबसे पहले जरूरी है जांच अधिकारी के दिल में दिलचस्पी पैदा करना। दरअसल गरीब परिवार के बच्चे, किसी तरह का दूसरा लाभ ना मिलने से ज्यादातर जांच अधिकारी लापता बच्चों की तलाश में दिलचस्पी ही नहीं लेता था।

एक फैसले ने बना दिया अभियान

दिल्ली पुलिस कमिश्नर एस एन श्रीवास्तव ने लापता बच्चों की तलाश में पुलिसकर्मियों की दिलचस्पी जगाने के लिए एक ऐतिहासिक निर्णय लिया। 7 अगस्त को दिल्ली पुलिस कमिश्नर कार्यालय से जारी आदेश के मुताबिक साल भर में 50 या उससे ज्यादा लापता बच्चों (14 साल से कम आयु के) की तलाश करने वाले सिपाही या हवलदार को बिना बारी के तरक्की यानि पदोन्नति देने और 15 या उससे ज्यादा लापता बच्चों की तलाश करने वालों को असाधारण कार्य पुरस्कार देने का प्रावधान हुआ। बस इसी एक फैसले ने दिल्ली पुलिस के लिए लापता बच्चों की तलाश एक अभियान बन गया। इस  फैसले के बाद 1171 बच्चे तलाशे गए यानि इसकी दर 134 प्रतिशत हो गई।

यह है दिल्ली पुलिस का दूसरा अभियान

दिल्ली पुलिस का दूसरे अभियान का संबंध भी काफी हद तक पहले अभियान से जुड़ा हुआ है। दिल्ली पुलिस कमिश्नर एस एन श्रीवास्तव के मुताबिक लापता बच्चों में से कई सही मार्ग निर्देशन के अभाव में राह से भटक जाते हैं। इनमें से कई संगत में पड़कर आपराधिक गतिविधियों में भी लिप्त होते हैं। पिछले तीन साल में 13382 नाबालिग विभिन्न अपराधों में लिप्त पाए गए हैं। इनमें से 12407 नाबालिग पहली बार अपराध में लिप्त थे।

पुलिस कमिश्नर स्तर पर नाबालिग अपराधियों को सही रास्ते पर लाने का अभियान चलाने का फैसला लिया गया। इस काम में जुटे हरेक शख्स को दिल्ली पुलिस यथा संभव मदद कर रही है। फिर वो शख्स चाहे दिल्ली पुलिस में हो या कोई आम आदमी। कोई भी जो राह से भटके नाबालिगों को मुख्य धारा में वापस लाने का काम करना चाहता है वह अपने इलाके में सीनियर अफसर से मिल सकता है।

पुलिस कमिश्नर एस एन श्रीवास्तव की इस पहल के तहत अब तक 10003 नाबालिगों से संपर्क किया जा चुका है। दिल्ली पुलिस इन्हें प्रधानमंत्री युवा स्किल योजना आदि के तहत व्यवसायिक प्रशिक्षण दिलवाने के साथ-साथ उन्हें नौकरी दिलाने में भी मदद करती है। इसके लिए रोजगार मेला आदि लगाए हैं।

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