मनोवैज्ञानिक वो भी जाने माने डॉक्टर रजत मित्र। डॉक्टर मित्र ने विभिन्न गुनाहों में शामिल आपराधियों की मानसिकता का लंबा चौड़ा अध्ययन किया है। देश भर में जिस तरह बेटियों पर यौन अपराध आदि हो रहे हैं इसको लेकर हमने डॉक्टर रजत मित्र से लंबी चौड़ी बातचीत की। हमने उनसे जानना चाहा कि रेपिस्टों के दिमाग में क्या चल रहा है। उनके साथ बातचीत का वीडियो लिंक हम इस लेख के बीच में पोस्ट कर रहे हैं आप चाहें तो वह वीडियो देख सकते हैं। लेख में उनसे बातचीत का संक्षिप्त अहम अंश आपके लिए आगे है।
मनोवैज्ञानिक स्टडी में क्या पाया गया
डॉक्टर रजत मित्र बताते हैं कि करीब 26 साल पहले उन्होंने तिहाड़ में रेप के अभियुक्तों पर स्टडी शुरू किया था। यह स्टडी तिहाड़ प्रशासन की रिक्वेस्ट पर शुरू किया गया था। मैंने उनके साथ ग्रुप थेरेपी शुरू की। वह मुझसे खुलकर बात करते थे। उन्हें पता था कि मैं पुलिस में नहीं हूं। डॉक्टर मित्र के मुताबिक वह यह भी जानते थे कि मुझसे बात करके उन्हें कोई नुकसान नहीं होने वाला है। डॉक्टर मित्र कहते हैं कि वह खुलकर बात करने के बाद रिलीफ महसूस करते थे।
डॉक्टर रजत मित्र बताते हैं कि रेप के आरोपियों के मन में अपने किए पर किसी तरह का पछतावा या ग्लानी नहीं होती है। बस एक बात जरूर होती है कि उन्हें सीने पर भारीपन महसूस होता है। वह बच्चों के यौन अपराधी हों या व्यस्क महिलाओं के उनमे किसी तरह का पछतावा नहीं होता है। यह बच्चों को एडल्ट मानकर चलते थे। इनका मानना है कि बच्चे 8-10 की उम्र में सेक्स के लिए कैपेबल होते हैं। उनके मन में यह भी होता था कि समाज बच्चों को सेक्स से दूर रखकर गलत करता है।
एक ऐसे चाइल्ड पेडोफिल से बातचीत हुई जो शिक्षित था। डॉक्टर मित्र इस पेडोफिल के हवाले से बताते हैं कि वह इंटरनेशनल ग्रुप का सदस्य था और वह बताता था कि उसके ग्रुप का मोटो सेक्स बिफोर एट और इट इज टू लेट था। मतलब आठ के बाद अगर आपने आठ तक अगर आपने सेक्स के बारे में आपको पता नहीं चला या आपने कुछ ऐसा सेक्सुअल एक्ट नहीं किया देन इट इज टू लेट। ऐसे अपराधियों की मनोवृति पहली बार वारदात कर ना पकड़े जाने पर बढ़ती चली जाती है।
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