झारखंड में जैव विविधता की जानकारी tribal language में ही देने का फैसला किया गया है। जैव विविधता संरक्षण वर्तमान में जलवायु परिवर्तन के संकट से निदान पाने के लिए आवश्यक कदम है। झारखंड में रहने वाले आदिवासियों के लिए इसकी जानकारी उन्हीं की भाषा में देने की बड़ी तैयारी की गई है। यह जानकारी झारखंड जैव विविधता पर्षद के सह सचिव pccf संजीव कुमार ने दी।
tribal language का काम इनके हवाले
झारखंड में बोली जाने वाली विभिन्न आदिवासी भाषाओं को ध्यान में रखते हुए विभिन्न विशेषज्ञों द्वारा पुस्तिका अनुवादित की जा रही है। इन भाषाओं में खोरठा, पंचपरगनिया, मुंडारी, संथाली, हो, कुरुख आदि भाषाओं को ध्यान में रखा जा रहा है। अनुवाद का काम डॉ अरविंद कु मार, डॉ विद्या सागर यादव (सहायक प्राध्यापक, डोरंडा महाविद्यालय), सेरोफिना होमरोम(शोधकर्ता), डॉ शकुंतला बेसरा, डॉ सरस्वती गागराई एवं डॉ बंदे खलखो (सहायक प्राध्यापक, राँची विश्वविद्यालय) जैसे लोगों से करवाया जा रहा है।
श्री कुमार कहते है कि जैव विविवधता के प्नबंधन संरक्षण में भाषा का बहुत बड़ा योगदान है। क्योंकि भाषा ही एक दूसरे की भावना को समझने के िलए उपयोग की जाती है| पूरे राज्य में 32 समदुाय के जनजाति रहते हैं और अपने जीवन यापन के लिए जंगल पर ही निर्भर रहते है| वो लोग खाना से लेकर औषिध हर चीज का प्रयोग आस-पास के जैव विविधता या यू कहें वन संपदा का ही प्रयोग करने की कला को पारंपरिक ज्ञान के द्वारा करते है| साथ ही ये वो लोग है जो जैव विविधता के एक संरक्षक भी हैं। इसी उपाय से राज्य में ज्यादा बोलने वाली भाषा में पुस्तक का निर्माण राज्य की जैव विविधता का संरक्षण में मील का पत्थर साबित होगा।
जैव विविधता के लिए झारखंड में कई तरह के उपाय किए जा रहे हैं। जैव विविधता पर्षद के सह सचिव संजीव कुमार की पहल पर झाखंड के कालेजो और स्कूलों में भी इंटर्नशिप करवाई जा रही है।
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