सम्राट अशोक की कथा जाने बिना अधूरी है बिहार की जानकारी, स्थापना दिवस विशेष

बिन्दुसार की मृत्यु के चार वर्षों बाद अशोक मौर्य वंश की गद्दी पर बैठा। इससे पूर्व वह उज्जैन का राज्यपाल था। पुराणों में अशोक को अशोकवर्द्धन कहा गया है। मास्की एवं गुर्जरा के अभिलेख में उसे 'अशोक' कहा गया है।

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बिन्दुसार की मृत्यु के चार वर्षों बाद अशोक मौर्य वंश की गद्दी पर बैठा। इससे पूर्व वह उज्जैन का राज्यपाल था। पुराणों में अशोक को अशोकवर्द्धन कहा गया है। मास्की एवं गुर्जरा के अभिलेख में उसे ‘अशोक’ कहा गया है। सिंहल अनुश्रुतियों (बौद्ध ग्रंथ) के अनुशार अशोक ने अपने 99 भाईयों की हत्या कर गद्दी प्राप्त की। हांलाकि अन्य स्रोतों से इसकी पुष्टि नहीं होती है।

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अशोक ने अपने शासन के 9वें वर्ष में कलिंग युद्ध (261 ई० पू०) किया तथा कलिंग को मगध में सम्मिलित किया। अशोक के 13वें शिलालेख में कलिंग युद्ध का वर्णन है।

  • कलिंग युद्ध के बाद अशोक ने बौद्ध धर्म को अपनाया, उससे पूर्व वह शैव धर्म को मानता था। दिव्यावदान के अनुसार उपगुप्त ने अशोक को बौद्ध धर्म की दीक्षा दी।
  • अशोक ने बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए अपने पुत्र महेन्द्र और पुत्री संघमित्रा को श्रीलंका भेजाअशोक ने तीसरी बौद्ध संगीति का आयोजन पाटलीपुत्र में करवाया।
  • अशोक ने लगभग 37 वर्षों तक शासन किया, उसकी मौत 232 ई. पू. में हो गई। अशोक के बाद उसके 10 उत्तराधिकारियों ने शासन किया। ये उत्तराधिकारी कुणाल, बंधुपालित, इन्दपालित, दोन, तर शालिशूक, देवधार्मन्, शतधनुष एवं बृहद्रथ थे। मौर्य वंश का अंतिम शासक बृहद्रथ था। मौर्य वंश का शासनकाल 137 वर्ष का था।

बौद्ध धर्म एवं जैन धर्म

बौद्ध धर्म के संस्थापक गौतम बुद्ध थे। उनका जन्म 563 ई० पू० में लुम्बिनी (नेपाल) में हुआ था। उन्हें ‘शाक्य मुनि एवं Light of Asia/ एशिया का ज्योति पुंज’ के नाम से जाना जाता है।उनके बचपन का नाम सिद्धार्थ था। उनके पिता का नाम शुद्धोधन था। उनकी माता का नाम महामाया देवी था। सौतेली माँ या मौसी का नाम प्रजापति गौतमी था।

उनकी पत्नी का नाम यशोधरा (16 वर्ष की आयु में विवाह) था। उनके पुत्र का नाम राहुल था। बुद्ध ने चार दृश्य देखे- बूढ़ा व्यक्ति, बीमार व्यक्ति, एक शव, एक सन्यासी। उन्होंने 29 वर्ष की आयु में गृह त्याग कर सन्यास को अपना लिया।

06 वर्षों की तपस्या के बाद 35 वर्ष की आयु में उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई उसके बाद उन्हें तथागत एवं बुद्ध कहा गया। उन्हें ज्ञान की प्राप्ति वैशाख पूर्णिमा को पीपल वृक्ष के नीचे निरंजना/फल्गु नदी के तट पर बोधगया में हुई थी।

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