बिहार चुनाव- जानिए विधान सभा की इन सीटों को जीतने की क्या है शर्त

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आलोक वर्मा

बिहार में चुनावी घामासान जारी है। आरोप प्रत्यारोप का दौर, वर्चुअल रैली का जोर और हर मुद्दे के केंद्र में लालू प्रसाद यादव  का शोर सबको साफ-साफ सुनाई दे रहा है।

लेकिन इन सबसे अलग बिहार के चुनाव में एक और जरूरी शर्त होती है। इस शर्त को जीते बिना किसी पार्टी के लिए चुनावी वैतरणी को पार करना नामुमकिन सा हो जाता है। वैसे तो यह शर्त देश के किसी भी चुनावी वैतरणी को पार करने के लिए जरूरी होता है लेकिन बिहार के संदर्भ में यह कुछ ज्यादा है। ऐसा इसलिए क्योंकि बिहार में व्यक्तिवादी राजनीति के साथ साथ दलगत राजनीति की धमक भी उतनी ही है जितनी किसी औऱ चीज की। बिहार में दलगत राजनीति के आधार में जातिगत समीकरण का जाल है इसलिए व्यक्तिवाद के साथ साथ दलों को साधने की भी परंपरा रही है। इसी का लाभ चुनावी माहौल में जीतन राम मांझी जैसे नेता उठाते हैं। सता के अनुरूप पाला बदलना इन्हें ही भाता और आता है।

फिलहाल हम बात करेंगे बिहार के 46 विधानसभा सीटों का। उपरोक्त संदर्भ में ये सीटें सटीक उदाहरण और प्रमाण दोनो है। तिरहुत प्रमंडल के जिलो में आने वाली इन सीटो में मुजफ्फर पुर, पूर्वी और पश्चिमी चंपारण, सीतामढ़ी, शिवहर औऱ वैशाली जैसे जिलों की सीटें हैं। इन 46 विधानसभा सीटों पर भाजपा, राजद व जदयू में वही पार्टियां अधिक सीट जीतने में सफल रही हैं जो शेष दो पार्टियों में से किसी एक के साथ जुड़ जाती हैं।

गणित पर नजर

2010 के चुनाव में जब जद यू और भाजपा साथ थे तो मामला एकतरफा रहा था। इन दोनों पार्टियों ने 46 में से 42 सीटों पर जीत दर्ज की थी। 2015 में राजद, जदयू और कांग्रेस के गठबंधन ने 25 सीटों पर कब्जा किया।  2020 के चुनाव में भी इन 46 सीटों पर गठबंधन की अहमियत को सभी पार्टियां समझ रही हैं।

एक औऱ समीकरण

इन सीटों पर 2010 औऱ 2015 के चुनावो में कांग्रेस, निर्दलीय औऱ लोकजनशक्ति पार्टी के उम्मीदवारों ने अच्छा प्रदर्शन किया था। हालांकि 2015 के चुनाव में कांग्रेस औऱ लोजपा को दो-दो सीटों पर ही संतोष करना पड़ा था। लेकिन कई सीटों पर इन पार्टी के उम्मीदवार दूसरे नंबर पर रहे थे। निर्दलीय भी एक दो सीटों पर जीतते रहे व कुछ सीटों पर दूसरे नंबर पर रह चुके हैं।

गठबंधन

मुजफ्फरपुर जिले में भाजपा, राजद और जदयू की जीत होती रही है। जिले के गायघाटस मानापुर, बोचहां, राई, कुढ़नी, सकरा, मुजफ्फरपुर, बरुराज, पारू और साहेबगंज विधानसभा सीटों में उन्हीं पार्टियों को अधिक सीटों पर विजय हासिल हुई जब दो पार्टियों ने मिलकर चुनाव लड़ा।  2015 के चुनाव में राजद ने 6 और भाजपा ने 3 सीटों पर जीत हासिल की। जदयू को एक भी सीट नहीं मिली थी। 2010 के चुनाव में भाजपा और जदयू ने मिलकर नौ सीटों पर कब्जा किया था। उस समय राजद को केवल एक सीट मिली थी।

पूर्वी चंपारण में भाजपा रही है भारी

पूर्वी चंपारण के 12 विधानसभा सीटो रक्सौल, सुगौली, नरकटिया, हरसिद्धि, गोविंदगंज. केसरिया, कल्याणपुर, पीपरा, मधुबन, मोतिहारी, चिरैया और ढाका की सीटों पर पिछले दो चुनावों से भाजपा का दबदबा रहा है। 2015 के चुनाव में भाजपा को 7 और 2010 में के चुनाव में 6 सीटें मिली थीं। 2015 के चुनाव में राजद को 4 और 2010 में भाजपा जदयू को 11 सीटों पर विजय हासिल हुआ था।

पश्चिमी चंपारण

पश्चमी चंपारण की 9 सीटों जैसे वाल्मीकि नगर, बेतियी, लौरिया, रामनगर, नरकटिया गंज, बगहा, नवतन, चनपटिया औऱ सिकरा में 2015 के चुनाव में भाजपा को 5 और जदयू को एक सीट पर जीत हासिल हुई थी। यहां कांग्रेस को भी दो सीटें मिलीं थीं 2010 के विधानसभा चुनाव में जदयू को 3 और भाजपा को 4 सीटें मिलीं। इन दोनो चुनाव में राजद की थैली खाली रही।

सीतामढ़ी

सीता मढ़ी में 6 विधानसभा सीट हैं इनमें बथनाहा, परिहार, सुरसंड, बाजपट्टी, सीतामढ़ी और रुन्नौसैदपुर में गठबंधन का गणित भी सफल रहा है। साल 2015 में भाजपा को , राजद को 3 और जदयू को एक सीट मिली जबकि 2010 में भाजपा ने 3 और जदयू ने 3 सीटों पर जीत हासिल की थी। यानि एनडीए को सौ फीसदी कामयाबी मिली थी।

शिवहर में जदयू का जादू

शिवहर में 2010 और 2015 दोनो चुनावो में जदयू का जादू सर चढ़कर बोला है। उसने ही जीत हासिल की।

वैशाली

वैशाली जिले में 8 सीटें हैं। हाजीपुर, पातेपुर, मनहार, राघोपुर, राजापाकर, महुआ, वैशाली और लालगंज में साल 2015 के चुनाव में महागठबंधन को 6 सीट मिली। इस दौरान राजद को 4 सीटों का लाभ हुआ था। जदयू को दो सीटें मिली थी। साल 2010 में एनडीए ने एकतरफा जीत हासिल की। जदयू को 5 औऱ भाजपा को एक सीट मिला था।

2015 के विधानसभा चुनाव परिणाम

राजद -17

बीजेपी – 18

जदयू -05

एलजेपी- 02

कांग्रेस – 02

2010 के विधानसभा चुनाव परिणाम

राजद – 01

जदयू – 22

बीजेपी -20

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