हेमराज आरूषि हत्याकांड में सीबीआई की हो रही किरकरी का कारण स्वयं एजेंसी है। महज 45 लाख रूपये बचाने के लिए सीबीआई ने टच डीएनए कराने की जरूरत नहीं समझी वर्ना मौके से बरामद फिंगर प्रिंट, स्काच की बोतल के फिंगर प्रिंट, छत पर मिले हाथ के निशान और कुछ कपड़ों पर बरामद फिंगर प्रिंट को लंदन स्थित लेबोरट्री भेजा गया होता और टच डीएनए की रिपोर्ट से कातिल के खिलाफ सबूत भी होता और कातिल सामने भी होता।
ये अलग बात है की जाँच कर्ताओं की दलील थी की जो भी ‘फ़ोरेंसिक’ सबूत मिले थे सीबीआई को वो टच-डीएनए टेस्ट करवाने के लायक नहीं थे क्यों की उनके साथ काफ़ी छेड़-छाड़ हो चुकी थी। ये तर्क काफी हद तक जायज हो सकता है मगर कोशिश तो की ही जा सकती थी। शायद कहीं सफलता मिल भी जाती सीबीआई अधिकारियों को यह स्थापित करने में की ‘कोई पाँचवा’ अपराधी तो नहीं था । जिस बात का जिक्र इलाहबाद हाई कोर्ट ने भी किया कि सीबीआई ने ‘पाँचवे’ अपराधी को तलाशने का प्रयास ही नहीं किया । दबी जुबान में सीबीआई में उस समय टच डीएनए पर आने वाले 45 लाख रूपये खर्च का जिक्र है स्वंय राजेश तलवार ने भी इन सबूतों को ‘टच-DNA’ टेस्ट के लिए भेजने की गुहार की थी। दरअसल टच डीएनए एक ऐसी वैज्ञानिक जाँच पद्धति है जिस से मुश्किल से मुश्किल फ़िंगरप्रिंटस का भी डीएनए सैम्पलिंग करके ये पता लगाया जा सकता है की वह किसका है ।