क्या दिल्ली पुलिस में सब कुछ ठीक ठाक है !!!

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आलोक वर्मा

र दिन किसी ना किसी एप्प, सामुदायिक पुलिसिंग या कार्यक्रम का उद्घाटन करने वाली दिल्ली पुलिस में “क्या सब कुछ ठीक ठाक है ?” सवाल कुछ अटपटा सा जरूर है लेकिन इसलिए लाजिमी है क्योंकि- घटना 1- 26 अक्टूबर को दिल्ली के बिंदापुर थाने के अंदर से एक एएसआई का सरकारी रिवाल्वर चोरी हो जाता है। घटना नंबर 2- विवेक विहार थाने के एसएचओ अपनी कुर्सी पर विवादास्पद राधे मां को घंटो बिठाते हैं। घटना नंबर3- 21 अगस्त को अंबेडकर नगर थाने में जांच अधिकारी के कमरे में हत्या हो जाती है। गिनती में ये तीन ही नहीं बल्कि कई औऱ भी हैं इसके अलावा दिल्ली में दिनदहाड़े सरेराह गोलीबारी हत्या और लूटपाट की भी दर्जनों वारदातें हो रही हैं। इसलिए ये सवाल जहन में उठता है कि क्या दिल्ली पुलिस में सब कुछ ठीक ठाक है। चलिए इस सवाल का जवाब पहले वर्तमान और पूर्व पुलिस अधिकारियों से जानने की कोशिश करते हैं।

इस सवाल के जवाब में दिल्ली पुलिस के स्पेशल सीपी और मुख्य प्रवक्ता दीपेन्द्र पाठक का कहना है कि कुछ घटनाएं अपवाद हैं। निजी मामले हैं अगर कुल मिलाकर देखा जाए तो दिल्ली पुलिस का प्रदर्शन बेहतर हुआ है। सारे अहम मामले रिकार्ड समय में सुलझा लिए जाते हैं। नए पुलिस आयुक्त ने बेसिक पुलिसिंग पर फोकस किया है औऱ उसके परिणाम भी सामने आ रहे हैं। मनोबल बढ़े इसके लिए कई योजनाओं शुरू की गई है। पुलिस मित्र जैसी योजनाओं को मजबूत किया गया है। उनका कहना है कि 85-90 हजार की पोस्ट में किसी किसी की व्यक्तिगत हालात हो जाते हैं और जरा सी सावधानी हटी की दुर्घटना घटी वाली बात हो जाती है लेकिन ऐसे मामलों पर सख्त कार्रवाई भी होती है।

दिल्ली पुलिस के पीआरओ आईपीएस मधुर वर्मा भी साफ साफ कहते हैं कि सनसनीखेज वारदातों में भारी कमी आई है। पुलिस वेलफेयर की कई योजनाओं पर काम हो रहा है और अनुशासन के लिए जिला स्तर पर परेड जैसे कार्यक्रम की फिर से शुरूआत की गई है जिसे अतिरिक्त पुलिस उपायुक्त स्तर के अफसर देखेंगे।

उपरोक्त दोनों बातें सही हैं दिल्ली पुलिस का ये दावा भी सही है कि हीनियस क्राइम में 25 फीसदी से भी ज्यादा की कमी आई है लेकिन फिर वही सवाल है कि यदि सब कुछ ठीक ठाक है तो थाने के अंदर हो रही लापरवाहियों के अलावा सरेराह होने वाले अपराध बंद क्यों नहीं हो रहे। इसी सवाल का जवाब जब रिटायर हो चुके पुलिस अफसरों से मांगा जाता है तो ज्यादातर के मुंह से यही निकलता है कि अच्छा है कि हम वर्तमान हालात से पहले ही रिटायर हो गए नहीं तो बड़ी मुश्किल होता।

दिल्ली पुलिस के सेवानिवृत एसीपी महेश चंद्र शर्मा के मुताबिक हथकड़ी पर पाबंदी अपऱाधियों से हाथ में हाथ डालकर चलने पर मजबूर करती है औऱ पुलिसवालों के अंदर अपराध वाले गुण आ ही जाते हैं इसीलिए कैदियों को अदालती कार्रवाई के लिए पेश करने आदि का काम करने वाली 3री बटालियन के पुलिसकर्मीं अपराध में लिप्त पाए जाते हैं। उनका कहना है नकारात्मक प्रचार और माहौल की वजह से पुलिस का मनोबल गिरा रहता है। नतीजतन वो अपेक्षित प्रदर्शन नहीं कर पाते।

उपरोक्त तीनों लोग अपनी जगह सही हो सकते हैं मगर सही ये भी है कि बेशक रिकार्ड पर मौजूद आंकड़े ये बताते हों कि वारदातों की संख्या में कमी आ रही है मगर कुछेक वारदातों का ही उदाहरण ले लें तो ये बताने के लिए काफी है कि बहुत कुछ करने के लिए बाकी है।

थाने में जांच अधिकारी के कमरे में हत्य़ा की वारदात शायद ही आज से पहले किसी ने सुनी या देखी हो ना ही थाने के अंदर से सरकारी रिवाल्वर चोरी होने की वारदात सामान्य है। अनुशासनात्मक कार्रवाई के नाम पर निलंबन या लाइन हाजिर कर देने भर से इसका हल निकलता तो हर साल ये कार्ररवाईंयां होती हैं। हम ये कह कर भी नहीं टाल सकते कि इतने बड़े फोर्स में किसी किसी की व्यक्तिगत हालात होते हैं। सवाल तो यही है ना कि माहौल, मनोबल या लापरवाही तीनों ही हालात के लिए जिम्मेवार कौन है। हम हीनियस क्राइम के आंकड़ो में कमी को आधार बना कर अपनी पीठ जरूर थपथपा सकते हैं मगर थाने में हो रहे हादसे और सड़कों पर हो रही वारदातों के लिए कहीं ना कहीं किसी की लापरवाही तो जिम्मेवार है ही और जब तक इस जिम्मेवारी को उच्च स्तर के अफसर तक तय करने की परंपरा जोरशोर से शुरू नहीं की जाती तब तक, “क्या सब कुछ ठीक ठाक है?” ये सवाल जायज नहीं है ?

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