आखिर क्यों और किसके लिए सिरदर्द बना है ये आईपीएस

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अर्धेन्दु मुखर्जी, रायपुर

ये कहानी नहीं सच है कि 1994 बैच के एक आईपीएस अफसर कुछ लोगों के लिए सिरदर्द बन गए हैं इस स्तर तक सिरदर्द कि कहते हैं कि इस आईपीएस अफसर पर 1 करोड़ रूपये का ईनाम रखा गया है जिंदा या मुर्दा इस अफसर को पकड़ने कि लिए अब तक उनकी सारी कोशिशें बेकार गई हैं। घबड़ाईए मत कथित तौर पर 1 करोड़ का ईनामी इस अफसर ने कोई वारदात या घोटाला नहीं किया है बल्कि इस अफसर ने अपने दो साल के कार्यकाल में 377 नक्सलियों का आत्मसमर्पण कराया है। जी हां हम आपको नक्सल से बुरी तरह प्रभावित छतीसगढ़ के बस्तर आईजी शिवराम कलूरी के बारे में बताने जा रहे हैं।

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बस्तर में 2012-14 के बीच सिर्फ 29 नक्सलियों ने सरेंडर किया था। मगर आईपीएस कलूरी ने ऐसा क्या कर दिया कि नक्सलियों का लगभग सफाया हो गया औऱ उन्हें इस अफसर पर ईनाम घोषित करना पड़ा। कहते हैं कि नक्सलियों के हिटलिस्ट में छतीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमण सिंह से भी उपर आईपीएस कलूरी का नाम है।ये सब ऐसे नहीं हुआ बल्कि इसके पीछे भी लंबी कहानी है। बात 2003 में छतीसगढ़ में भाजपा की सरकार आने के बाद शुरू हुई। दरअसल इस चुनाव में भाजपा ने कांग्रेस के खिलाफ जो सबसे बड़ा मुद्दा उठाया था वो नक्सलवाद ही था। जब भाजपा की सरकार बन गई तो उसे इस दिशा में कदम उठाना जरूरी हो गया औऱ बिलासपुर के एसपी औऱ पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी के खास सिपाहसलार शिवराम कलूरी को नक्सली तांडव से त्रस्त बलरामपुर का एसपी बनाया गया।  

अब तक मैदानी इलाकों में काम कर चुके शिवराम कलूरी के लिए ये बिल्कुल नई चुनौती थी। झारखंड से लगे बलरामपुर में नक्सलियों के 12 खतरनाक दस्ते पूरी तरह सक्रिय थे औऱ शाम होते ही पूरे इलाके में मौत का सन्नाटा छा जाता था। कलूरी ने पद संभालते ही नक्सल के खिलाफ जंग छेडी औऱ कुछेक दिनों में ही बलरामपुर नक्सल मुक्त हो गया।  

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इस काम में सबसे पहले जरूरी था लोगों का भरोसा जीतना क्योंकि नक्सल के खिलाफ एक भी आम आदमी बात करने से कतराता था। ऐसे में कलूरी ने इंस्पेक्टर अजितेष सिंह के साथ मिलकर नक्सलियों के खिलाफ लोहा लेना शुरू किया। इंस्पेक्टर अजितेष सिंह के मुताबिक उस समय हालत ये थी कि पुलिस किसी गांव में 1 बार गश्त करती थी तो नक्सली वहां 10 बार जाकर खौफ पैदा करते थे। कलूरी ने इसका जवाब पुलिस गश्त बढ़ाकर दिया। गांव में पुलिस गश्त की संख्या बढ़ी तो लोगों का भरोसा बढ़ा औऱ जब नक्सली मारे जाने लगे तो लोग पुलिस की मदद भी करने लगे। लोगों के बीच भरोसा बढ़ाने के लिए ही कलूरी एसपी से लेकर अब आईजी बन जाने के बाद भी फोर्स के साथ कई कई दिन तक गश्त करते रहते हैं। बलरामपुर में उन्होंने 15 सिपाहियों की टीम बनाई थी जिसकी अगुवाई वो खुद करते थे। 16 लोग औऱ 8 मोटरसाइकिलों के इस दस्ते को लोग कलूरी दस्ते के नाम से जानते थे।   एक बार जब ये दस्ता गश्त करने निकलता था तो तभी लौटता था जब नक्सलिओं से सामना हो जाए। कलूरी की इस सक्रियता ने नक्सलियों के बीच खौफ पैदा करना शुरू कर दिया। कलूरी के पास नक्सलियों की खबरें आनी शुरू हो गई और 5 नक्सली कमांडर समेत कई नक्सलियों को मार गिराने में उन्होंने कामयाबी पाई। इसीलिए नक्सलियों ने उन पर ईनाम की घोषणा की। 

हालाकि कलूरी के खिलाफ कई संगठनों और मानवाधिकार आयोग तक सख्त हो गया मगर कलूरी अपनी मिशन में जुटे हुए हैं।अपने फोर्स के साथ खाना खेलना औऱ उनके दुख सुख में शामिल रहना कलूरी का स्वभाव है। उनके साथ काम कर चुके इंस्पेक्टर प्रमोद खेस बताते हैं कि जब भी वो गश्त करने निकलते हैं कम से कम 80 किलोमीटर का गश्त होता है।ये गश्त मोटरसाइकिल पर होता है जिसका लाभ ये है कि उनका दल कभी लैंडमाइन का शिकार नहीं होता।

        हालाकि नक्सलियों के खिलाफ उनके इस आक्रामक रवैये की वजह से उन्हें नुकसान भी झेलना पड़ता है। कभी मानवाधिकार के नाम पर तो कभी आदिवासियों पर अत्याचार को लेकर कलूरी के खिलाफ कई मामले चलते रहते हैं मगर ये भी सच है कि बस्तर में नक्सलियों की कमर टूट चुकी है और इस काम में कलूरी के योगदान को भूलाया नहींं जा सकता। 

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