Pegasus spyware को “निगरानी और लीक का देवता” कहा जाता है क्योंकि यह बिना किसी शोर-शराबे के स्मार्टफोन के अंदर तक पहुंच सकता है। यह न सिर्फ कॉल, संदेश और लोकेशन तक पहुंच बनाता है, बल्कि एन्क्रिप्टेड चैट्स और कैमरे-माइक्रोफोन का भी इस्तेमाल कर सकता है। NSO Group द्वारा विकसित यह स्पाइवेयर दुनिया के कई देशों में विवाद का कारण बन चुका है।
Pegasus Spyware क्या है
Pegasus सिर्फ एक स्पायवेयर नहीं है—यह एक डिजिटल सुपरवेपन है। इसे इज़राइल की NSO ग्रुप ने विकसित किया है, और इसने साइबर जासूसी की परिभाषा बदल दी है। यह सरकारों को स्मार्टफोन में चुपचाप घुसने और एन्क्रिप्टेड ऐप्स से भी हर जानकारी निकालने की शक्ति देता है। इसका पौराणिक उपनाम इसकी दिव्य पहुंच, अदृश्यता और विनाशकारी प्रभाव को दर्शाता है।
यह कैसे काम करता है
ज़ीरो-क्लिक संक्रमण लिंक पर क्लिक या फाइल डाउनलोड करने की ज़रूरत नहीं। Pegasus मिस्ड कॉल, पुश नोटिफिकेशन या सिस्टम की कमजोरियों के ज़रिए चुपचाप डिवाइस में घुस जाता है। पूर्ण डेटा एक्सेसःसंदेश, ईमेल, फोटो, वीडियो, संपर्क, कॉल लॉग—यहां तक कि WhatsApp, Signal और Telegram जैसे एन्क्रिप्टेड ऐप्स से भी जानकारी निकालता है।
लाइव निगरानीः माइक्रोफोन और कैमरा को दूर से सक्रिय कर देता है, जिससे फोन एक पोर्टेबल जासूसी उपकरण बन जाता है।लोकेशन ट्रैकिंगःGPS डेटा को रीयल टाइम में मॉनिटर करता है, जिससे गतिविधियों और रूटीन का नक्शा तैयार होता है।
सेल्फ-डिस्ट्रक्ट और स्टील्थ मोडः फॉरेंसिक जांच में बहुत कम निशान छोड़ता है। खुद को दूर से डिलीट भी कर सकता है ताकि पकड़ा न जाए।
इससे कैसे बचें इसे लीक का देवता क्यों कहा जाता हैः
एन्क्रिप्शन को बायपास करता है: Pegasus एन्क्रिप्शन को तोड़ता नहीं, बल्कि डेटा को एन्क्रिप्ट होने से पहले या बाद में एक्सेस करता है।
• अदृश्य संचालन: पीड़ितों को पता ही नहीं चलता कि उनकी निगरानी हो रही है। साइबर सुरक्षा विशेषज्ञ भी इसे पकड़ने में संघर्ष करते हैं।
• विशाल डेटा चोरी: यह संवेदनशील डेटा के गीगाबाइट्स निकाल सकता है, जिसमें गोपनीय चैट, दस्तावेज़ और लोकेशन लॉग शामिल हैं।
Pegasus प्रोजेक्ट खुलासे: पत्रकारों के एक समूह ने उजागर किया कि Pegasus का इस्तेमाल 45 देशों में 50,000 से अधिक फोन नंबरों को निशाना बनाने के लिए हुआ—जिसमें राष्ट्राध्यक्ष, राजनयिक और नागरिक समाज के नेता शामिल थे।
जरुर पढ़ेंः workplace safety: क्या आपका कार्यस्थल साइबर अपराध से सुरक्षित है
• कानूनी लड़ाइयाँ: Apple ने NSO ग्रुप पर मुकदमा किया। भारत के सुप्रीम कोर्ट ने इसके उपयोग की जांच के लिए तकनीकी समिति नियुक्त की।
• राजनयिक तनाव: सीमा-पार निगरानी के आरोपों ने अंतरराष्ट्रीय संबंधों को प्रभावित किया।
• मानवाधिकार चिंताएँ: Amnesty International और Citizen Lab ने Pegasus को निजता, लोकतंत्र और प्रेस स्वतंत्रता के लिए खतरा बताया।
डिजिटल स्वच्छता अनिवार्य है: अधिकारियों, कर्मचारियों और नागरिकों को मान लेना चाहिए कि उनके डिवाइस असुरक्षित हो सकते हैं।
जरुर पढ़ेंः cyber scam का बदल रहा है चेहरा, पहचान कर रहिए सावधान
• एन्क्रिप्टेड ऐप्स ≠ सुरक्षा: Pegasus ने साबित किया कि सुरक्षित प्लेटफॉर्म भी हैक हो सकते हैं।
• स्वदेशी समाधान की आवश्यकता: विदेशी निगरानी उपकरणों पर निर्भरता संप्रभुता के लिए खतरा है।
• जन जागरूकता अत्यंत आवश्यक है: नागरिकों को फ़िशिंग, ऐप परमिशन और डिवाइस स्वच्छता के बारे में शिक्षित करना जरूरी है।
“Pegasus सिर्फ एक स्पायवेयर नहीं है—यह एक अदृश्य शिकारी है। यह आपके संदेश पढ़ सकता है, कॉल सुन सकता है और बिना बताए आपको देख सकता है। सतर्क रहें। फ़ोन अपडेट रखें। संदिग्ध लिंक पर क्लिक न करें। डिजिटल सतर्कता ही राष्ट्रीय सुरक्षा है।”
latest post:
- जीवन प्रमाण पत्र धोखाधड़ी से बचें: पेंशनधारकों के लिए सुरक्षा गाइड
- दिल्ली पुलिस परिवार की आराध्या पोरवाल ने जीती जूनियर नेशनल स्क्वैश चैंपियनशिप 2025
- ₹1 लाख से अधिक की साइबर धोखाधड़ी पर अब स्वचालित e-FIR: जानिए इसका मतलब और असर
- CCTV कैमरा हैकिंग से सावधान रहें — “admin123” जैसे पासवर्ड से कैसे खतरा बढ़ता है
- डिजिटल अरेस्ट स्कैम से ₹3,000 करोड़ का नुकसान: सुप्रीम कोर्ट की चिंता, चक्षु पोर्टल बना समाधान


















