दिल्ली में साइबर क्राइम (cyber crime) के हर साल कम से कम 1 लाख से अधिक शिकायतें मिलती हैं मगर दिल्ली पुलिस में दर्ज होने वाले केस 15 सौ से भी कम है। बताया यह भी जाता है कि cyber crime की हर दिन करीब 7 सौ कॉल पुलिस के पास आती हैं। सवाल उठता है कि जब शिकायत मिलने की संख्या इतनी बड़ी है तो केस दर्ज होने की संख्या इतनी कम क्यों है।
cyber crime और केस का बड़े अंतर का खमियाजा कौन भुगत रहा
मिलने वाली शिकायतें और दर्ज होने वाले केसों के इस बड़े अंतर के कारण साइबर अपराधियों का शिकार होता आदमी केवल परेशान ही नहीं आत्महत्या के कगार तक पहुंच रहा है। जरा सोचिए ये हालत तब है जब देश के पीएम नरेन्द्र मोदी से लेकर गृह मंत्री अमित शाह तक साइबर क्राइम को सर्वोच्च प्राथमिकताओं की सूची में रखते हैं।
यह हालत तब भी है जब करोड़ो रुपये की बजट से राष्ट्रीय स्तर का साइपैड दिल्ली पुलिस के लिए काम कर रहा है। इसका उद्घाटन फरवरी 2019 में तत्कालीन गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने जोर शोर से किया था। दिल्ली के हर जिले में साइबर थाने हैं इन सबके बाद भी शिकायतें अगर केस में तब्दिल ना हो तो कुछ तो गड़बड़ है। इसी गड़बड़ी का अंदाजा बदमाशों को भी हो चुका है।
यही कारण है कि ट्रेडिशनल क्राइम यानि लूटपाट, चोरी, हत्या की वारदात करने वाले शातिर बदमाशों ने साइबर क्राइम का रास्ता अपनाना शुरू कर दिया है। इसका सबूत दिल्ली के ही आउटर नार्थ साइबर पुलिस के द्वारा पकड़े गए मामलो में मिलता है। पुलिस ने कुख्यात बदमाश ललित उर्फ मोदी उर्फ रिंकू को साइबर फ्राड के गंभीर मामले में गिरफ्तार किया था। इसके पहले ललित हत्या और लूटपाट के आधे दर्जन मामलो में लिप्त था। इसी तरह के दूसरे केस में पुलिस के हत्थे इसी साल मार्च में नामी बैंक के नाम पर जालसाजी कर लोगों की रकम हड़पने वाले गैंग का पर्दाफाश किया था इस गैंग का मास्टरमाइंड दिल्ली का घोषित बदमाश था।
यह सिर्फ दो मामले ही नहीं यह बताने के लिए काफी भी है कि साइबर क्राइम में कम खतरा बड़े बदमाशों को अपनी ओर खींच रहा है। इसका खमियाजा भुगत रहा है आम आदमी। अब हम बात कर लेते हैं साइबर क्राइम पर दिल्ली पुलिस की। शिकायतों और दर्ज होने वाले केसों का बड़ा अंतर सवाल तो खड़े करता ही है जब राष्ट्रीय स्तर का साइबर फारेंसिक लैब यानि साइपैड और हरेक जिले में मौजूद साइबर थाना भी साइबर क्रिमिनलों की बाढ़ का नहीं रोक पा रहा तो वजह क्या है ।
क्या दिल्ली में मौजूद अत्याधुनिक साइपैड, साइबर थाने नाकाफी हैं या हम इसका लाभ उठा नहीं पा रहे हैं या उठाना चाह नहीं रहे हैं। क्या हमारी अरूचि दिल्ली को साइबर मामलो में दूसरे राज्यों से पीछे खड़ी कर रही है या हमारी लापरवाही की वजह से दूसरे राज्य साइबर क्राइम से निपटने में आगे हैं।साइबर क्राइम (cyber crime) का शिकार आम आदमी शिकायत के साथ ही लगभग सारे एविडेंस दे चुका होता है।
क्राइम का तरीका शिकायत और अपराध का माध्यम यानि ज्यादातर एविडेंस मिलने के बाद भी अगर शिकायत और दर्ज केस के बीच का आंकड़ा बड़ा है तो सोचना जरूरी हो जाता है। दरअसल दिल्ली के हर जिले में साइबर थाना तो बन गया लेकिन सोचने वाली बात ये है कि इन थानों में तैनात होने वाले लोग साइबर की चुनौतियों से निपटने के लिए कितने प्रशिक्षित हैं।
इन थानो में जिले के डीसीपी अपने हिसाब से थानाध्यक्ष तो लगा देते हैं लेकिन साइबर क्राइम (cyber crime) के मामलो को सुलझाने की योग्यता का टेस्ट नहीं लेते। थानाध्यक्ष के साथ तैनात होने वाली टीम भी इस बारे में कितनी जानकारी रखती है यह सोचने वाली बात है। साइबर क्राइम की मुंह फाड़ चुनौती से मुकाबला करने के लिए व्यापक स्तर पर रणनीति बनानी होगी।
दिल्ली पुलिस में तो एक बटन पर हर कर्मचारी का पूरा ब्यौरा सामने आ जाता है। इसके बाद भी योग्य अफसरों की तैनाती ना हो तो सवाल खड़े होना जायज है। जिस तरह से साइबर क्राइम की दुनिया बड़ी होती जा रही है उसे देखते हुए हरेक कर्मचारी को साइबर यूनिट में कुछ दिन की तैनाती तो अनिवार्य होना चाहिए।
मगर लगता नहीं कि दिल्ली पुलिस चलाने वाले लोग ऐसा कुछ सोचते हैं। इसी साल 18 मार्च को साइबर थाने का एसएचओ बनने के लिए दिल्ली पुलिस के सैकड़ो इंस्पेक्टरों ने लिखित परीक्षा दी। उन्हें इस परीक्षा के लिए मिलने वाले सिलेबस में तमाम कानूनों और जानकारियों को जानने के लिए कहा गया था मगर जब प्रशन पत्र आया तो 99 प्रतिशत सवाल साइबर से जुड़े थे।
अब अगर आपने कभी साइबर की पढ़ाई ही ना की हो तो उसका जवाब कैसे देंगे लेकिन ऐसे सवालों का जवाब उनके लिए आसान था जो साइबर यूनिट में काम कर चुके हैं या कर रहे हैं। ऐसे में सबको साइबर क्राइम का प्रशिक्षण देने का सपना कैसे पूरा होगा।
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