Election 2024-कहां खो गए वो चुनावी नारे

Election 2024-लोकसभा चुनाव की सरगर्मियां बढ़ती जा रही हैं। इन सरगर्मियों के बीच चुनावी नारों के वो शोर अब सुनाई देना बंद हो गए हैं। एक समय चुनावी नारे जनआंदोलन बन जाया करते थे।

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Election 2024
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Election 2024-लोकसभा चुनाव की सरगर्मियां बढ़ती जा रही हैं। इन सरगर्मियों के बीच चुनावी नारों के वो शोर अब सुनाई देना बंद हो गए हैं। एक समय चुनावी नारे जनआंदोलन बन जाया करते थे। ये चुनावी नारे जहां घर घर में बच्चों के जुबान पर चढ़ जाते थे। वहीं ये नारे मतदाताओं और आम जनता के मानस पटल पर गरहे तौर पर अंकित हो जाया करते थे। आइए इनमें से कुछ नारों के बारे में बात किया जाए।

Election 2024-ये थे वो यादगार नारे

चुनावी नारे इतने चुटीले होते थे कि बस जनता इसमें बंध कर रह जाती थी। बदलते दौर में चुनाव के तरीके बदल गए। सोशल मीडिया ने इन चुनावी नारों की बजाय वीडियो और फोटो की दुनिया बना दी। वर्चुअल दुनिया में अब चुनावी नारों की शोर दब सी गई है। लिंक पर क्लिक कर आप उन नारों के बारे में और विस्तार से वीडियो के जरिए जान सकते हैं।

चुनावी नारों में एक समय डा. लोहिया का दिया गया नारा चार घंटा पेट को एक घंटा देश को काफी लोकप्रिय नारा था। कुछ नारे तो ऐसे भी बने थे जो बच्चों की जुबान पर रट गए थे। ऐसा ही एक नारा था “बीड़ी पीना छोड़ दो, जनसंघ को वोट दो” । उस समय कार्यकर्ता भी घर से रोटी बांधकर अपनी पार्टी और प्रिय नेता के प्रचार में पैदल ही निकल पड़ता था।

उस समय चुनाव का आगाज होते ही राष्ट्रीय और स्थानीय स्तर नारे बनते थे। इन सब नारों में “सबको शिक्षा एक समान जाग उठा मजदूर किसान” “जली झोपड़ी भागे बैल जो देखो दीपक का खेल”। 80 के दशक में भ्रष्टाचार के खिलाफ विपक्षी दलों का यह नारा भी काफी चर्चा में रहा था कि “खा गई शक्कर पी गई तेल, जो देखो सरकार का खेल”। चुनाव को त्योहार जैसा मनाया जाता था इसलिए ये नारे भी गजब के चुटीले होते थे।

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