गृहस्थ लोगों के लिए साल में दो बार नवरात्रि (Navratri) का पर्व आता है। पहला चैत्र के महीने में, इस नवरात्रि के साथ हिंदू नव वर्ष की भी शुरुआत होती है। इसे चैत्र नवरात्रि (Chaitra Navratri) कहा जाता है। दूसरी नवरात्रि आश्विन माह में आती है, जिसे शारदीय नवरात्रि के नाम से जाना जाता है। पौष और आषाढ़ के महीने में भी नवरात्रि का पर्व आता है, जिसे गुप्त नवरात्रि कहा जाता है, लेकिन उस नवरात्रि में तंत्र साधना की जाती है, गृहस्थ और पारिवारिक लोगों के लिए सिर्फ चैत्र और शारदीय नवरात्रि को ही उत्तम माना गया है। दोनों में ही मातारानी के नौ स्वरूपों की पूजा की जाती है।
चैत्र नवरात्रि मनाने का कारण
रम्भासुर का पुत्र था महिषासुर, जो अत्यंत शक्तिशाली था। उसने कठिन तप किया था। ब्रह्माजी ने प्रकट होकर कहा- ‘वत्स! एक मृत्यु को छोड़कर, सबकुछ मांगों। महिषासुर ने बहुत सोचा और फिर कहा- ‘ठीक है प्रभो। देवता, असुर और मानव किसी से मेरी मृत्यु न हो। किसी स्त्री के हाथ से मेरी मृत्यु निश्चित करने की कृपा करें।’ ब्रह्माजी ‘एवमस्तु’ कहकर अपने लोक चले गए। वर प्राप्त करने के बाद उसने तीनों लोकों पर अपना अधिकार जमा कर त्रिलोकाधिपति बन गया। सभी देवता उससे परेशान हो गए।
तब सभी देवताओं ने आदिशक्त जगनंबा (अंबा) का आह्वान किया और तब देवताओं की प्रार्थना सुनकर मातारानी ने चैत्र नवरात्रि के दिन अपने अंश से 9 रूपों को प्रकट किया। इन 9 रूपों को देवताओं ने अपने-अपने शस्त्र देकर महिषासुर को वध करने का निवेदन किया। शस्त्र धारण करके माता शक्ति संपन्न हो गई। कहते हैं कि नौ रूपों को प्रकट करने का क्रम चैत्र माह की शुक्ल प्रतिपदा से प्रारंभ होकर नवमी तक चला। इसीलिए इन 9 दिनों को चैत्र नवरात्रि के रूप में मनाया जाता है।
अष्टमी तिथि पर होगी महागौरी की आराधना
महागौरी को मां दुर्गा का आठवां स्वरूप माना जाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार माता पार्वती ने भगवान शिव को पाने के लिए ही, महागौरी स्वरूप में जन्म लिया था। इस दौरान उन्हें वर्षो कठोर तप करना पड़ा था और वर्षों तक किये गए अपने कड़े तप के कारण, मां पार्वती का रंग काला पड़ था। जिसके पश्चात भगवान शिव माता पार्वती की श्रद्धा से प्रसन्न हुए और उन्होंने गंगा के पवित्र जल से उन्हें स्नान कराया, जिसके बाद देवी का रंग गोरा हो गया। उसी दिन से देवी पार्वती का ये स्वरूप महागौरी के नाम से विख्यात हुआ। मां दुर्गा का ये रूप बेहद शांत एवं निर्मल होता है, जिनका वाहन वृषभ है।
नवमी तिथि पर होगी मां सिद्धिदात्री की पूजा
जैसा नाम से ही ज्ञात होता है कि,मां सिद्धिदात्री का शाब्दिक अर्थ है सिद्धि देने वाली. देवी दुर्गा का ये नौवां स्वरूप है, जो बेहद सुंदर और मनमोहक होता है। अपने इस स्वरूप में मां लाल साड़ी पहने हुए है और सिंह की सवारी कर रही हैं।
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