नई दिल्ली, इंडिया विस्तार। दिल्ली पुलिस (DelhiPolice) में बिना बारी के तरक्की पाकर हवलदार से एएसआई बनीं सीमा ढाका (Seema Dhaka) को अब देश भर के लोग जान गए हैं। यह भी लोग जान गए हैं कि सीमा ढाका ने 3 महीने में ही 76 लापता बच्चों को उनके परिवार तक पहुंचाया। लेकिन यह कोई नहीं जानता कि उन्हें यह सफलता कैसे मिली औऱ इस लक्ष्य का ख्याल कैसे दिल में आया। मगर लापता बच्चों को तलाशने में क्यों औऱ कैसे जुटी सीमा औऱ कैसे मिली उन्हें कामयाबी आपको बताते हैं।
नए स्कीम के तहत बिना बारी के तरक्की पाने वाली पहली महिला पुलिस कर्मी सीमा ढाका ने जिन लापता बच्चों की तलाश की उनमें से कई छह सात साल से लापता थे। इनमें से सारे बच्चे निम्न मध्य वर्ग के बच्चे थे जिनके माता पिता रोजगार की तलाश में दिल्ली आए थे और बच्चे को गंवाने के बाद अपने मूल गांव वापस चले गए थे। ना तो पुलिस के जांच अधिकारी से उनका संपर्क था और ना ही बच्चे को फिर से पाने की कोई उम्मीद।
सीमा ढाका ने 2016 में सबसे पहले दिल्ली के अमन विहार से लापता एक नाबालिग बच्ची को दो दिन के अंदर तलाशा था। कानपुर देहात से बरामद उस बच्ची के परिवार वालों से मिली दुआ ने उनके दिल में लापता बच्चों को तलाशने की ललक जगा दी। उसके बाद भी अपनी तैनाती के दौरान वह लापता बच्चों की तलाश में मुख्य भूमिका निभाती रहीं।
दिल्ली में जब मौजूदा पुलिस कमिश्नर एस एन श्रीवास्तव ने लापता बच्चों की तलाश पर फोकस किया। तो सीमा ढाका के मन में फिर से लापता बच्चों को तलाशने की हुक उठी। अगस्त में जब पुलिस कमिश्नर एस एन श्रीवास्तव ने लापता बच्चों की तलाश के बारे में विस्तृत कार्य निर्देश के साथ साथ बिना बारी के तरक्की आदि की घोषणा की तो सीमा ढाका ने समझ लिया कि पुलिस कमिश्नर लापता बच्चों को लेकर काफी गंभीर हैं। बस पुलिस कमिश्नर का यही ध्यान सीमा ढाका का मिशन बन गया। अपने वरिष्ठ अधिकारियों से बात कर उन्होंने इस बात की अनुमति ली औऱ विभिन्न थानो में लापता बच्चों के रिकार्ड खंगालने शुरू किए।
उन्होंने दिल्ली छोड़ चुके शिकायतकर्ताओं का भी पता लगाया। संबंधित थाने से लेकर फोन आदि से उनके गांव या जहां भी वो रहते थे उनसे बातचीत की। लापता बच्चों के अभिभावकों से हर छोटी सूचना एकत्रित करने के बाद उन्होंने लापता बच्चों की तलाश शुरू की। छोटे से छोटे सूत्र को जोड़कर उन्होने लापता बच्चों को तलाशना शुरू किया औऱ कामयाबी मिलती गई। उनके द्वारा तलाशे गए बच्चों में 56 की उम्र 14 साल से कम है।
दिल्ली से सटे उत्तर प्रदेश के शामली जिले में सीमा की ससुराल है। सीमा के गांव में उनके रिश्तेदार और परिवार में काफी लोग टीचिंग प्रोफेशन से जुड़े हैं। वो कहती है कि मैं बचपन से ही सुनती आ रही थी कि महिलाओं के टीचिंग प्रोफेशन सबसे बढ़िया रहता है। यही वजह है कि मैंने भी शिक्षक बनने का निर्णय लिया था, इतना ही नहीं मैंने तो ऐसे विषय पढ़ाई के लिए चुने, जिससे शिक्षक बन सकूं। इस दौरान मैंने दिल्ली पुलिस की भर्ती का फार्म भर दिया। मेरे चयन भी हो गया।
शामली वही जिला है, जहां पर कुछ वर्ष पहले लड़कियों के जींस पहनने और मोबाइल फोन रखने जैसे कई फरमान जारी हुए थे। पेशे से किसान पिता की संतान सीमा का भाई निजी क्षेत्र में जॉब करता है। सीमा का कहना है कि पढ़ाई के प्रति लगाव और जुनून ही था कि गांव से कॉलेज की दूरी करीब 6 किलोमीटर थी, लेकिन साइकिल से रोजाना आती-जाती थी। फिर भी थकान का कभी अहसास तक नहीं हुआ। आउट और टर्न प्रमोशन पानी वालीं सीमा ढाका की इस उपलब्धि पर उत्तर प्रदेश के 2-2 जिलों में जश्न का माहौल है।
उन्होंने पिछले महीने ही पश्चिम बंगाल से एक नाबालिग को छुड़ाया था। इस दौरान काफी मुश्किलों को सामना करना पड़ा। इसके लिए पुलिस दल ने नावों में यात्रा की और बच्चे को तलाशने के लिए बाढ़ के दौरान 2-2 नदियों को पार करने की नौबत आई थी। वो बताती हैं कि आखिरकार हम बच्चे तलाशने और उसकी जिंदगी में मुस्कान लाने में कामयाब हुए।