व्यापक रूप से पिताया के रूप में जाना जाने वाला कमलम या ड्रैगन फ्रूट औषधीय गुणों से परिपूर्ण एक बारहमासी कैक्टस है, जिसका मूल उत्पादन दक्षिणी मैक्सिको, मध्य अमेरिका और दक्षिण अमेरिका में प्रारंभ हुआ। व्यापक रूप से दुनिया में दक्षिण-पूर्व एशिया, भारत, संयुक्त राज्य अमेरिका, कैरेबियन द्वीप समूह, ऑस्ट्रेलिया में उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में कमलम या ड्रैगन फ्रूट की खेती की जाती है। अंग्रेजी में ड्रैगन फ्रूट कहे जाने वाला पिटाया अलग-अलग नामों से लोकप्रिय है जैसे मेक्सिको में पिठैया, मध्य और उत्तरी अमेरिका में पिटया रोजा, थाईलैंड में पिथाजाह और भारत में संस्कृत नाम कमल से इस फल को कमलम कहा जाता है। इसे “21वीं सदी का चमत्कारिक फल” भी कहा जाता है।
पीआईबी की एक प्रैस विज्ञप्ति के मुताबिक कमलम (ड्रैगन फ्रूट) ने न केवल अपने लाल बैंगनी रंग और खाद्य उत्पादों के आर्थिक मूल्य के कारण बल्कि अपने जबरदस्त स्वास्थ्य लाभों के कारण हाल ही में दुनिया भर के उत्पादकों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया है। इस फल के छिलके सहपत्रों या शल्कों से ढके रहते हैं, जिसके कारण यह फल पौराणिक जीव “ड्रैगन” जैसा दिखता है, इसलिए इसका नाम ड्रैगन फ्रूट रखा गया है। पिटया या ड्रैगन फ्रूट एक बेल की तरह से तेजी से बढ़ने वाली बारहमासी बेल कैक्टस प्रजाति है, जो मेक्सिको और मध्य एवं दक्षिण अमेरिका के उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में उगती है। अपने मूल स्थलों से ही ड्रैगन फल की उपज उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय अमेरिका, एशिया, ऑस्ट्रेलिया और मध्य पूर्व में फैल गयी है। वर्तमान में इसकी खेती कम से कम 22 उष्णकटिबंधीय देशों में की जा रही है। ऐतिहासिक साक्ष्य बताते हैं कि फ्रांसीसियों ने लगभग 100 वर्ष पहले वियतनाम में फसल की शुरुआत की थी और इसे राजा के लिए उगाया गया था। बाद में, यह पूरे देश के धनी परिवारों में भी लोकप्रिय हो गया।
पीआईबी के मुताबिक भारत में ड्रैगन फल की खेती तेजी से बढ़ रही है और कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु, महाराष्ट्र, गुजरात, छत्तीसगढ़, ओडिशा, पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह, मिजोरम और नागालैंड के किसानों ने इसकी खेती करना प्रारंभ कर चुके हैं। वर्तमान में, भारत में ड्रैगन फ्रूट की खेती का कुल क्षेत्रफल 3,000 हेक्टेयर से अधिक है जो घरेलू मांग को पूरा करने में सक्षम नहीं है, इसलिए भारतीय बाजार में उपलब्ध ड्रैगन फ्रूट का अधिकांश हिस्सा थाईलैंड, मलेशिया, वियतनाम और श्रीलंका से आयात किया जाता है।
भारत में कमलम का आयात 2017 के दौरान 327 टन की मात्रा के साथ शुरू हुआ था, जो 2019 में तेजी से बढ़कर 9,162 टन हो गया है और 2020 और 2021 के लिए अनुमानित आयात क्रमशः लगभग 11,916 और 15,491 टन है। 2021 के लिए इसका अनुमानित आयात मूल्य लगभग 100 करोड़ रुपये था। ड्रैगन फ्रूट रोपण के बाद पहले वर्ष में आर्थिक उत्पादन के साथ तेजी से फिर से बढ़ता है और अगले 3-4 वर्षों में पुनः पूर्ण उत्पादन प्राप्त होता है। यह फसल लगभग 20 वर्ष तक उगाई जा सकती है। रोपण के 2 वर्षों के बाद औसत आर्थिक उपज 10 टन प्रति एकड़ है। वर्तमान में बाजार दर 100 रुपये प्रति किलो फल है, इसलिए प्रति वर्ष फल बेचने से उत्पन्न राजस्व 10,00,000 रुपये है और इसका लाभ लागत अनुपात (बीसीआर) 2.58 है।
आत्मनिर्भर भारत पर ध्यान देने के साथ, आयात को कम करने और उत्पादन के लिए अपनी क्षमता बढ़ाने की आवश्यकता है। मिशन फॉर इंटीग्रेटेड डेवलपमेंट ऑफ हॉर्टिकल्चर (एमआईडीएच) के तहत इस प्रयास में कमलम सहित विदेशी और विशिष्ट क्षेत्र के फलों के उत्पादन को बढ़ाने के लिए चिन्हित संभावित क्षेत्र में इस फसल की खेती के लिए एक रोडमैप तैयार किया जा रहा है। कमलम के लिए एमआईडीएच के तहत पांच वर्षों में क्षेत्र विस्तार का लक्ष्य 50,000 हेक्टेयर है। इस फल की खेती हाल ही में शुरू की गई है और इस स्वास्थ्य से भरपूर इस फल की खेती आईसीएआर-सेंट्रल आइलैंड एग्रीकल्चरल रिसर्च इंस्टीट्यूट, पोर्ट-ब्लेयर, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह और आईआईएचआर, बेंगलुरु, कर्नाटक में की गई है।
एमआईडीएच के अंतर्गत, कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय ने कमलम फल के उत्पादन, कटाई के बाद खेती और मूल्यवर्धन पर ध्यान केंद्रित करने के लिए भारतीय बागवानी अनुसंधान संस्थान (आईआईएचआर), बेंगलुरु, कर्नाटक द्वारा 09-03-2023 को हिरेहल्ली, बेंगलुरु, कर्नाटक में स्थापित किए जाने वाले उत्कृष्टता केंद्र (सीओई) को स्वीकृति दे दी है।
यह केंद्र अंतरराष्ट्रीय मानक के अनुसार नवीनतम उत्पादन तकनीक के विकास और उच्च उपज उत्पादन के लिए ऑफ सीजन उत्पादन और इन प्रौद्योगिकियों के प्रदर्शन के लिए कार्य करेगा। केंद्र कमलम फल उत्पादन, मूल्य संवर्धन और कृषक समुदाय के आर्थिक विकास को बढ़ाने में भी आत्मनिर्भरता हासिल करने का लक्ष्य रखेगा।
यह उत्कृष्टता केंद्र बेहतर उपज, पोषक तत्व उपयोग दक्षता, पोषण गुणवत्ता, जैविक और अजैविक दबावों के प्रति सहनशीलता, प्रसार तकनीकों के मानकीकरण, सार्वजनिक भागीदारी दृष्टिकोण के माध्यम से गुणवत्ता रोपण सामग्री के वितरण, कटाई के बाद के नुकसान को कम करने और दूर के बाजारों में निर्यात को बढ़ावा देने के लिए फसल प्रबंधन और भंडारण, मूल्यवर्धित उत्पादों के विकास और उत्पाद विविधीकरण एवं उच्च राजस्व प्राप्ति के लिए प्रक्रियाएं, किसानों और अन्य हितधारकों को प्रशिक्षण, क्षेत्र के दौरे आदि के माध्यम से विकसित प्रौद्योगिकियों के प्रसार के लिए प्रोटोकॉल के विकास के साथ उच्च प्रदर्शन विविधता विकसित करने पर ध्यान केंद्रित करेगा।
किसानों में बढ़ती रुचि और कृषि एवं सीमांत क्षेत्रों में कमलम की खेती से उन्हें मिलने वाले शीघ्र लाभ के साथ, यह आशा की जाती है कि कमलम की खेती नए क्षेत्रों में भी होगी और घरेलू खेती के माध्यम से आयात को पूरी तरह से बदल दिया जाएगा।
सौजन्य-पीआईबी प्रैस रीलीज