crime story: 11 साल से फरार था, 50 हजार का इनाम था दिल्ली क्राइम ब्रांच ने कैसे तलाश किया जान लीजिए कहानी

crime story: ग्यारह साल पहले दिल्ली के तिलक नगर में एक भाई ने संपत्ति विवाद में अपने ही भाई की हत्या करवाने के लिए दस लाख की सुपारी दी। सुपारी लेने वाले बदमाश ने अपने साथियों के साथ मिलकर हत्याकांड को अंजाम भी दे दिया।

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crime story: ग्यारह साल पहले दिल्ली के तिलक नगर में एक भाई ने संपत्ति विवाद में अपने ही भाई की हत्या करवाने के लिए दस लाख की सुपारी दी। सुपारी लेने वाले बदमाश ने अपने साथियों के साथ मिलकर हत्याकांड को अंजाम भी दे दिया। वारदात में शामिल सभी लोग धरे भी गए मगर जिसने हथियार आदि उपलब्ध करवाई थी वह तभी से फरार था। दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच ने उसे पकड़ने का बीड़ा उठाया तो ऐसी जगह छिपा था जहां आप सोच भी नहीं सकते।

crime story: नाम पहचान सब बदलकर ट्रक ड्राइवर बन गया था सुपारी किलर

दिल्ली पुलिस क्राइम ब्रांच के डीसीपी संजय कुमार सैन के मुताबिक तिलक नगर में लाल 2013 मे हुए सनसनीखेज कांट्रैक्ट किलिंग में कुल 06 आरोपियों ने मृतक के सगे भाई राजेश सिंह लांबा के निर्देश पर कॉन्ट्रैक्ट किलिंग को अंजाम दिया था। इस वारदात के लिए झज्जर के रविंदर राठी को 10 लाख की सुपारी दी गई। इसे अंजाम देने के लिए आरोपी राजू बनारसी ने एक पिस्तौल और एक देसी पिस्तौल मुहैया कराई।

हत्या को अंजाम देने वाले दिन, राजू बनारसी को अपने सह-आरोपियों को बैकअप और भागने का आसान रास्ता देने का काम सौंपा गया था। राजेश के कहने पर बदमाशों ने मृतक जितेंद्र लांबा पर गोलियां चलाईं। अपराध करने के बाद सभी आरोपी भाग गए लेकिन बाद में अलग-अलग समय के अंतराल पर सभी आरोपी गिरफ्तार हो गए। मगर राजू बनारसी फरार चल रहा था। उसे अदालत ने घोषित अपराधी घोषित कर दिया।

राजू बनारसी को तलाश करने के लिए एसीपी रमेश चंद्र लांबा की देखरेख और इंस्पेक्टर महिपाल के नेतृत्व में इंस्पेक्टर सतेंद्र मोहन की निगरानी में एसआई गौरव और अंकित, हेडकांस्टेबल नवीन, सुनील, तरुण, नितेश, सुरेश और विनोद की एक समर्पित टीम गठित की गई ताकि मामले की समीक्षा की जा सके और आरोपी राजू सिंह उर्फ ​​राजू बनारसी को पकड़ा जा सके।

जब मिली घास में से सूई

मामला काफी पुराना था, इसलिए आरोपियों के सभी पिछले मोबाइल नंबर या तो बंद पाए गए या अन्य उपयोगकर्ताओं को आवंटित किए गए थे। कई असफलताओं और किसी भी उचित सुराग के बिना, टीम ने लगातार काम किया और गिरफ्तार आरोपियों के साथ-साथ उसके दोस्तों के पिछले 10 वर्षों के संपर्क के सैकड़ों मोबाइल नंबरों का विश्लेषण करने के बाद, आखिरकार हेडकांस्टेबल नवीन को झारखंड में राजू के एक दूर के रिश्तेदार का सक्रिय मोबाइल नंबर मिला।

इस मोबाइल नंबर का मिलना घास के ढेर में सुई खोजने जैसा था और इस मोबाइल नंबर ने आरोपी की आगे की तलाश का रास्ता खोल दिया। टीम लोकेशन एरिया में पहुंची और स्थानीय मजदूरों के साथ जंगल में आसानी से पहुंचने के लिए काम शुरू किया क्योंकि ऐसे घने जंगल में व्यक्ति को ढूंढना मुश्किल है।

आखिरकार जंगल क्षेत्र में ट्रक चलाने वाले आरोपी राजू को पकड़ने में कामयाबी मिली। पूछताछ के दौरान यह पता चला कि आरोपी ने केवल पैसे की खातिर कॉन्ट्रैक्ट किलिंग को अंजाम दिया। वह अपने माता-पिता की इकलौती संतान है, जिनकी 1999 में मृत्यु हो गई थी। वह मूल रूप से बनारस, यूपी का रहने वाला है, इसलिए उसे राजू बनारसी के नाम से जाना जाता था।

बाद में, वह पलामू, झारखंड चला गया जहाँ उसने ड्राइवर के रूप में काम करना शुरू कर दिया। समय के साथ, वह सह-आरोपी मुकेश कुमार सोनी के संपर्क में आया, जिसने रविंदर राठी नामक व्यक्ति से हत्या की सुपारी ली और उसे दिल्ली में एक हत्या को अंजाम देने के लिए कहा। आरोपी को पैसों की सख्त जरूरत थी, इसलिए उसने हत्या की सुपारी लेकर हत्या की योजना बनाई और इसके लिए उसने दो अन्य आरोपियों रिशु और अभिषेक को भी हथियार मुहैया कराए।

इसके बाद वे चारों दिल्ली आए और रविंदर राठी ने उन्हें टारगेट दिखाया। घटना वाले दिन वे दो गाड़ियों में सवार होकर आए और गोली मारकर हत्या करने के बाद वे सभी मौके से भाग गए। इसके बाद राजू बनारस और फिर झारखंड के पलामू में रहने लगा यहां वह अपने असली नाम मृत्युंजय सिंह के साथ अपनी जिंदगी की नई शुरुआत की और अपनी पहचान छिपाने के लिए अपना जाना-पहचाना नाम राजू बनारसी रख लिया।

उसने एक ट्रक खरीदा और ट्रक ड्राइवर बन कर रहने लगा। उसे पता था कि उसके सभी सह-आरोपी गिरफ्तार हो चुके हैं और उस पर इनाम घोषित किया गया है, इसलिए वह जंगल में रहने लगा ताकि उसे आसानी से दबोचा ना जा सके। मगर दिल्ली क्राइम ब्रांच ने मजदूरों की मदद से आखिरकार उसे तलाश ही लिया।

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