रात के आख़िरी पहर चलती बस। यात्री नींद में डूबे हुए। कोई खिड़की से बाहर झांक रहा है, कोई सीट पर अधलेटा पड़ा है। इसी भीड़ में एक शांत सा आदमी बैठा है। न कोई घबराहट, न जल्दबाज़ी। देखने में बिल्कुल आम सहयात्री।
लेकिन यही आदमी कर्नाटक और आंध्र प्रदेश की सड़कों पर चलती बसों का सबसे भरोसेमंद चेहरा और सबसे खतरनाक चोर था। चलती बस में चोरी करने वाला शातिर चोर यानि – मोहम्मद फरमान।
चलती बस में चोरी करने वाला चोर बुनता था शातिर जाल
फरमान और उसका गिरोह कभी ड्राइवर के पीछे बैठता, कभी कंडक्टर से दोस्ती गांठता। वे बस स्टाफ और यात्रियों की हर हरकत नोट करते थे। कौन कब सोया, किस बैग में वजन ज्यादा है, किस सीट के नीचे जगह खाली है।
दिन नहीं, रात नहीं।
उनका पसंदीदा वक्त था सुबह 3 से 5 बजे के बीच, जब नींद सबसे गहरी होती है और शक सबसे कम।
10 किलो चांदी और तीन लाख की खामोश चोरी
2025 में कर्नाटक के कुंडापुर में चलती बस से 10 किलो चांदी और ₹3 लाख नकद गायब हुए। न कोई शोर, न कोई झगड़ा। सुबह यात्रियों की आंख खुली तो बैग हल्के हो चुके थे।
मामला दर्ज हुआ, लेकिन चोर हवा में घुल चुका था।
पीछा दिल्ली तक पहुंचा
कर्नाटक पुलिस की फाइल में एक नाम बार-बार उभर रहा था। वही पुराना खिलाड़ी। वही सहयात्री वाला तरीका। इनपुट दिल्ली क्राइम ब्रांच को भेजा गया।
दिल्ली में WR-II क्राइम ब्रांच की टीम ने चुपचाप काम शुरू किया। फोन ट्रैक हुए, मूवमेंट पढ़ी गई। फरमान दिल्ली में छिपा था, लेकिन ज्यादा दिन नहीं।
गुरुग्राम टोल पर टूटा भ्रम
26 दिसंबर की सुबह।
सूचना मिली कि फरमान NHAI टोल, गुरुग्राम की ओर आ रहा है। बस नहीं थी, लेकिन आदत वही थी – सफर में रहना।
DCP हरिश इंदोरा की समग्र निगरानी और ACP राजपाल डबास की निगरानी में इंस्पेक्टर अक्षय गहलौत के नेतृत्व में SI रवि भूषण, HCs अशोक, आजाद, गौरव और कर्नाटका पुलिस टीम ने जाल बिछाया।। कुछ देर निगरानी, फिर एक शांत सा इशारा।
और सहयात्री का किरदार वहीं खत्म हो गया।
वीडियो देखेंः
पूछताछ में खुली पूरी स्क्रिप्ट
गिरफ्तारी के बाद फरमान ने कबूल किया कि वह एक संगठित इंटरस्टेट गिरोह का रणनीतिक दिमाग था। टारगेट तय करना, वक्त चुनना और लोगों को भरोसे में लेना – यही उसकी खासियत थी।
उसके खिलाफ पहले भी गंभीर मामले दर्ज थे। 2022 में बेंगलुरु में डकैती की तैयारी के आरोप में गिरफ्तारी हो चुकी थी। अपराध उसके लिए मौका नहीं, पेशा था।
कहानी का अंत, लेकिन सबक बाकी
चलती बस में बैठा हर सहयात्री मासूम नहीं होता। कुछ लोग सफर नहीं, मौका तलाशते हैं।
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