दिलनामा-दिल्ली के इस डीसीपी की तारीफ तो आप भी करेंगे जनाब

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आलोक वर्मा

सुबह सुबह नवभारत टाइम्स के पेज नंबर-3 के  बॉटम एंकर में छपी खबर पर नजर पड़ी तो रहा नहीं गया। हेडिंग थी जूनियर्स को बधाई कार्ड औऱ गुलाब भेज रहे डीसीपी ईंस्ट। दो दशकों से अधिक समय़ तक दिल्ली पुलिस कवर करने की आदत ने खबर को पूरा पढ़ने पर मजबूर कर दिया। खबर थी कि पूर्वी दिल्ली के डीसीपी पंकज सिंह जिले में तैनात पुलिसकर्मियों को जन्म दिन की बधाई भेजते हैं वो भी कुछ अलग अंदाज में। वो उन्हें जन्मदिन बधाई कार्ड औऱ गुलाब भेजते हैं। अब जिन्हें ये मिल रहा वो पुलिसकर्मी फूले नहीं समाते आखिरकार हैरारकी की नौकरी में टॉप बॉस आपके जन्मदिन पर कोई संदेश इस तरह दे तो खुश होने की बात तो है ही।

मैं 2008 बैच के आईपीएस अफसर पंकज कुमार सिंह को निजी तौर पर ना तो जानता हूं औऱ ना ही कभी मिला हूं। मगर अगर सही में कोई बॉस अपने मातहतों की जिंदगी की छोटी-छोटी खुशीयों का ख्याल रखता है तो वो तारीफ के काबिल है। जन्मदिन जैसी खुशी में इस तरह से शरीक होने से ना केवल मातहतों का मनोबल बढ़ता है बल्कि उनसे बेहतर तालमेल बनाने का मौका भी मिलता है। वैसे तो पंकज कुमार सिंह शायद अकेले ऐसे आईपीएस अफसर नहीं होंगे जो अपने मातहतों का ख्याल रखते हैं मगर उनके ख्य़ाल रखने का तरीका प्रभावकारी है। अब तक इस तरह के तरीके निजी कारपोरेट जगत में अपनाए जाते थे। दिल्ली पुलिस के पूरे सिस्टम को गौर से देखें तो समझ आ जाएगा कि राजधानी की पुलिस की छवि बनती बिगड़ती किन लोगों से है। जाहिर है दिल्ली में फ्रंट पर वो पुलिसकर्मी होते हैं जिन्हें आप इंसपेक्टर, एसआई, एएसआई, हवलदार या सिपाही के रूप में जानते हैं। यही दिल्ली पुलिस का प्रतिनिधित्व करते हैं । इन पर दोहरा दबाव होता है-जनता की अपेक्षाओं पर खरा उतरने के साथ साथ उनकी आलोचनाओं को झेलने का और इसके साथ ही ये अफसरों की नाराजगी औऱ पुलिस सेवा के कड़े अनुशासन के दबाव में भी होते हैं। पुलिस कुछ नहीं कर रही, पुलिस सजग नहीं, पुलिस के पास साधन नहीं औऱ ना जाने किन दर्जनों वक्तव्यों से सामना करने वाले ये पुलिसकर्मी गलती होने पर सबसे पहले दंड के भागी होते हैं। ऐसे में अगर इनका सुपर बॉस इनकी व्यक्तिगत खुशियों में किसी तरीके से शामिल होता है तो इनका खुश औऱ बुलंद होना बनता है।

इसमें कोई शक नहीं कि अपराध तेजी से बढ़ रहा है यह भी सच है कि पुलिस उस हिसाब से तैय़ार नहीं है लेकिन क्या यह सच नहीं है कि हर आदमी अपनी सामाजिक जवाबदेही भी भूल रहा है। ऐसे में किसी पुलिसकर्मी की व्यक्तिगत खुशी में बधाई के कार्ड और फूल भेजने या फोन पर उससे बात कर खुशी जाहिर करने औऱ विश देने की परंपरा  बेशक अपराध पर पूरी तरह से काबू या पुलिसिया रवैये पर पूरी तरह लगाम कसने में कामयाब ना हों मगर तनाव भरे माहौल को हल्का करने में भूमिका तो अदा कर ही सकता है। 

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