इन बातों के लिए हमेशा याद किए जाएंगे “अप्पा”

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दक्षिण भारतीय राजनीति के अप्पा यानि एम करूणानिधि यूं तो कई बातोॆं के लिए याद किए जाएंगे लेकिऩ कुछ घटनाएं ऐसी हैं जो उन्हें जाननेवाले चाहकर भी नहीं भूल पाएंगे।

राजनीतिक सफर

उन्हें दक्षिण भारत की राजनीति में किंग मेकर माना जाता था। एक दर्जन बार विधानसभा सदस्य रहे करूणानिधि ने पहली बार 1969 में औऱ आखिरी बार 2006 में मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी। अपने 60 साल के राजनीतिक करियर में करुणानिधि ने जिस भी सीट से चुनाव लड़ा सिर्फ जीत हासिल की। वह कभी भी चुनाव नहीं हारे। करुणानिधि के बचपन का नाम दक्षिणमूर्ति था। उनके समर्थक उन्हें प्यार से ‘कलाईनार’ कहकर बुलाते हैं। उन्हें एक सफल राजनेता ही नहीं बल्कि एक सफल लेखक, कवि, विचारक और वक्ता के रूप में भी जाना जाता था।

नेहरू से मोदी तक

14 साल की उम्र में राजनीति में कूदने वाले एम करूणानिधि ने जवाहर लाल नेहरू से लेकर मोदी तक का राजनीतिक सफर देखा था। लगभग 6 दशकों तक तमिलनाडु की राजनीति का केंद्र रहे करुणानिधि ने आखिरकार दुनिया को अलविदा कह दिया। 5 बार तमिलनाडु के मुख्यमंत्री रहे करुणानिधि द्रविड़ राजनीति की उपज थे। मुथुवेल करुणानिधि ने बचपन में ही लिखने में काफ़ी दिलचस्पी पैदा कर ली थी। लेकिन, जस्टिस पार्टी के एक नेता अलागिरिसामी के भाषणों ने उनका ध्यान राजनीति की तरफ़ आकर्षित किया।

किशोरावस्था से ही सार्वजनिक जीवन

करुणानिधि ने किशोरावस्था में ही सार्वजनिक जीवन की तरफ़ क़दम बढ़ा दिए थे. उन्होंने मद्रास प्रेसीडेंसी में स्कूल के सिलेबस में हिंदी को शामिल किए जाने के ख़िलाफ़ हुए विरोध-प्रदर्शनों में हिस्सा लिया था। हिंदी विरोधी आंदोलन में उनका आरंभ भी काफी दिलचस्प है। कहते है कि सितंबर 1924 में 20 साल की उम्र में वो शादी के मंडप से हिंदी विरोधी रैली में भाग गए थे। 17 साल की उम्र में उनकी राजनीतिक सक्रियता काफ़ी बढ़ गई थी. करुणानिधि ने ‘तमिल स्टूडेंट फ़ोरम’ के नाम से छात्रों का एक संगठन बना लिया था और हाथ से लिखी हुई एक पत्रिका भी छापने लगे थे।

एक मुलाकात

1940 के दशक की शुरुआत में करुणानिधि की मुलाक़ात अपने उस्ताद सीएन अन्नादुरै से हुई। जब अन्नादुरै ने ‘पेरियार’ ईवी रामास्वामी की पार्टी द्रविडार कझगम (डीके) से अलग होकर द्रविड़ मुनेत्र कझगम यानी डीएमके की शुरुआत की, तब तक करुणानिधि उनके बेहद क़रीबी हो चुके थे।उस वक़्त यानी महज़ 25 बरस की उम्र में करुणानिधि को डीएमके की प्रचार समिति में शामिल किया गया था।

फिल्मी सफर

करुणानिधि ने फ़िल्मी दुनिया में भी क़दम रखा। उन्होंने सबसे पहले तमिल फ़िल्म ‘राजाकुमारी’ के लिए डायलॉग लिखे. इस पेशे में भी करुणानिधि को ज़बरदस्त कामयाबी मिली।सबसे ख़ास बात ये थी कि करुणानिधि के डायलॉग में सामाजिक न्याय और तरक़्क़ीपसंद समाज की बातें थीं। 1952 में आई फ़िल्म ‘पराशक्ति’ में करुणानिधि के लिखे ज़बरदस्त डायलॉग ने तमिल फ़िल्मों में मील का पत्थर बना दिया। फ़िल्म के शानदार डायलॉग के ज़रिए अंधविश्वास, धार्मिक कट्टरता और उस वक़्त की सामाजिक व्यवस्था पर सवाल उठाए गए थे।

जेल यात्रा

कल्लाक्कुडी नाम की जगह का नाम बदलकर डालमियापुरम करने के ख़िलाफ़ प्रदर्शन के चलते करुणानिधि छह महीने के लिए जेल में डाल दिए गए। इसके बाद से पार्टी में वो बहुत ताक़तवर होने लगे। अपने विचारों का ज़ोर-शोर से प्रचार करने के लिए करुणानिधि ने मुरासोली नाम के अख़बार का प्रकाशन शुरू किया। (यही अख़बार बाद में डीएमके का मुखपत्र बना) मलाईकल्लन, मनोहरा जैसी फ़िल्मों में अपने शानदार डायलॉग के ज़रिए करुणानिधि तमिल फ़िल्मी उद्योग में सबसे बड़े डायलॉग लेखक बन चुके थे।

विशेष योगदान

करुणानिधि की पहली सरकार को ज़मीन की हदबंदी के लिए याद किया जाएगा। उस समय हदबंदी को 15 एकड़ तक सीमित कर दिया गया था। यानी कोई भी इससे ज़्यादा ज़मीन का मालिक नहीं रह सकता था। इसी दौरान उन्होने शिक्षा और नौकरी में पिछड़ी जातियों को मिलने वाले आरक्षण की सीमा 25 से बढ़ाकर 31 फ़ीसदी कर दी. क़ानून बनाकर सभी जातियों के लोगों के मंदिर के पुजारी बनने का रास्ता साफ़ किया। . राज्य में सभी सरकारी कार्यक्रमों और स्कूलों में कार्यक्रमों की शुरुआत में एक तमिल राजगीत (इससे पहले धार्मिक गीत गाए जाते थे) गाना अनिवार्य कर दिया गया। करुणानिधि ने एक क़ानून बनाकर लड़कियों को भी पिता की संपत्ति में बराबर का हक़ दिया।

उन्होंने राज्य की सरकारी नौकरियों में महिलाओं को 30 प्रतिशत आरक्षण भी दिया। सिंचाई के लिए पंपिंग सेट चलाने के लिए बिजली को करुणानिधि ने मुफ़्त कर दिया। उन्होंने पिछड़ों में अति पिछड़ा वर्ग बनाकर उसे पिछड़े वर्ग, अनुसूचित जाति और जनजाति कोटे से अलग, शिक्षा और नौकरियों में 20 फ़ीसदी आरक्षण दिया। करुणानिधि की सरकार ने चेन्नई में मेट्रो ट्रेन सेवा की शुरुआत की तो सरकारी राशन की दुकानों से महज़ एक रुपए किलो की दर पर लोगों को चावल देना भी शुरू किया।

 

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