जानिए पूजा में स्त्री दाहिने क्यों बैठती है

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पंडित जीवेश कुमार शास्त्री ज्योतिषाचार्य

आप जानते ही होंगे कि मौली स्त्री के बाएं हाथ की कलाई में बांधने का नियम शास्त्रों में लिखा है। ज्योतिषी स्त्रियों के बाएं हाथ की हस्त रेखाएं देखते हैं। वैद्य स्त्रियों की बाएं हाथ की नाडी को छूकर उनका इलाज करते हैं। ये सब बातें भी स्त्री को वामांगी होने का संकेत करती है। परंतु प्रश्न यह उठता है कि वामांगी कहलाने वाली स्त्री दाहिने कब बैठती है.

विवाह संस्कार एवं पूजन इत्यादि वैदिक कर्मकाँड की श्रेणी मे आते हैं. उस समय स्त्री को पुरुष के दाहिने बिठाया जाता है.

सप्तपदी हिन्दू धर्म में विवाह संस्कार का एक महत्त्वपूर्ण अंग है। इसमें वर उत्तर दिशा में वधु को सात मंत्रों के द्वारा सप्त मण्डलिकाओं में सात पदों तक साथ ले जाता है। इस क्रिया के समय वधु भी दक्षिण पाद उठाकर पुन: वामपाद मण्डलिकाओं में रखती है। विवाह के समय सप्तपदी क्रिया के बिना, विवाह कर्म पक्का नहीं होता है। अग्नि की चार परिक्रमाओं से यह कृत्य अलग है। जिस विवाह में सप्तपदी होती है, वह ‘वैदिक विवाह’ कहलाता है। सप्तपदी वैदिक विवाह का अभिन्न अंग है। इसके बिना विवाह पूरा नहीं माना जाता। सप्तपदी के बाद ही कन्या को वर के वाम अंग में बैठाया जाता है।
सप्तपदी होने तक बधू को दाहिनी ओर बिठाया जाता है, क्योंकि वह बाहरी व्यक्ति जैसी स्थिति में होती है। प्रतिज्ञाओं से बद्ध हो जाने के कारण पत्नी बनकर आत्मीय होने से उसे बाई ओर बैठाया जाता है। इस प्रकार बाई ओर आने के बाद पत्नी गृहस्थ जीवन की प्रमुख सूत्रधार बन जाती है और अधिकार हस्तांतरण के कारण दाहिनी ओर से वह बाई ओर आ जाती है। इस प्रक्रिया को शास्त्र में आसन परिवर्तन के नाम से जाना जाता है।

शास्त्रो मे स्त्री को वाम अंग में बैठने के अवसर भी बताए गए है। जीवेश कुमार शास्त्री

वामे सिन्दूरदाने च वामे चैव द्विरागमने, वामे शयनैकश्यायां भवेज्जाया प्रियार्थिनी”

अर्थात सिंदूरदान, द्विरागमन के समय, भोजन, शयन व सेवा के समय में पत्नी हमेशा वामभाग में रहे।

इसके अलावा अभिषेक के समय, आशीर्वाद ग्रहण करते समय और ब्राह्माण के पांव धोते समय भी पत्नी को उत्तर में रहने को कहा गया है। उल्लेखनीय है कि जो धार्मिक कार्य पुरूष प्रधान होते हैं, जैसे-विवाह, कन्यादान, यज्ञ, जातकर्म, नामकरण, अन्नप्राशन, निष्क्रमण आदि में पत्नी पुरूष के दाई (दक्षिण) ओर रहती है, जबकि स्त्री प्रधान कार्यो में वह पुरूष के वाम (बाई) अंग की तरफ बैठती है।

महाभारत शांतिपर्व के अनुसार पत्नी पति का शरीर ही है और उसके आधे भाग को अर्द्धागिनी के रूप में वह पूरा करती है।

“अथो अर्धो वा एव अन्यत: यत् पत्नी”

अर्थात पुरूष का शरीर तब तक पूरा नहीं होता, जब तक कि उसके आधे अंग को नारी आकर नहीं भरती। पौराणिक आख्यानों के अनुसार पुरूष का जन्म ब्रह के दाहिने कंधे से और स्त्री का जन्म बाएं कंधे से हुआ है, इसलिए स्त्री को वामांगी कहा जाता है और विवाह के बाद स्त्री को पुरूष के वाम भाग में प्रतिष्ठित किया जाता है। श्रीमद भागवत भूषण जीवेश कुमार शास्त्री

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