इस गुरूद्वारे में लंगर नहीं बनता लेकिन कोई भूखा भी नहीं जाता वापस

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गुरूद्वारे में लंगर बनने की बात तो आप जानते हीं हैं लेकिन हम आपको एक ऐसे गुरूद्वारे के बारे में बताने जा रहे हैं जहां लंगर तो नहीं बनता लेकिन कोई भूखा बी नहीं रहता। चंडीगढ़ के सेक्टर-28 स्थित गुरुद्वारा को नानकसर के नाम से जाना जाता है। नानकसर की खास बात यह है कि यहां पर न तो लंगर बनता है और न ही गोलक है। दरअसल, गुरुद्वारे में संगत अपने घर से बना लंगर लेकर आती है। यहां देशी घी के परांठे, मक्खन, कई प्रकार की सब्जियां और दाल, मिठाइयां और फल संगत के लिए रहता है।

यहां संगत के लंगर छकने के बाद जो बच जाता है उसे सेक्टर-16 और 32 के अस्पताल के अलावा पीजीआई में भेज दिया जाता है, ताकि वहां पर भी लोग प्रसाद ग्रहण कर सकें। यह सिलसिला वर्षों से चला आ रहा है। यहां एक लैब भी है। हर वर्ष मार्च में वार्षिक उत्सव होता है। यह वार्षिकोत्सव सात दिनों का होता है।

बड़ी संख्या में देश-विदेश से संगत इसमें शामिल होने आती है। इस दौरान एक विशाल रक्तदान शिविर का आयोजन होता है। यहां पर गुरुद्वारा नानकसर का निर्माण दिवाली के दिन हुआ था। चंडीगढ़ स्थित नानकसर गुरुद्वारे के प्रमुख बाबा गुरदेव सिंह बताते हैं कि 50 वर्ष से भी अधिक इस गुरुद्वारे के निर्माण को हो गए हैं। पौने दो एकड़ क्षेत्र में फैले इस गुरुद्वारे में लाइब्रेरी भी है और यहां दातों का फ्री इलाज होता है।

गुरुद्वारा नानकसर में 30 से 35 लोग, जिसमें रागी पाठी और सेवादार हैं। चंडीगढ़ हरियाणा, देहरादून के अलावा विदेश जिसमें अमेरिका, कनाडा, आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड और इंग्लैंड में एक सौ से भी अधिक नानकसर गुरुद्वारे हैं। गोलक के लिए झगड़ा न हो, इसलिए यहां पर गोलक नहीं है। यहां मांगने का काम नहीं है, जिसे सेवा करनी हो वह आए। इसका हेडक्वार्टर नानकसर कलेरां है, जो लुधियाना के पास है। वर्ष में दो वार अमृतपान कराया जाता है।

 

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