क्या आपको पता है कि दिल्ली पुलिस की संख्या कई बड़े राज्यों की पुलिस से ज्यादा है। मीडिया रिपोर्टों की बात करें तो दिल्ली में प्रति 1 लाख लोगों पर 380 पुलिसवालों की तैनाती है जबकि बिहार में 1 लाख लोगों पर केवल 81 पुलिसवाले तैनात हैं। पश्चिम बंगाल में 101, बड़े राज्यों में पश्चिम बंगाल में एक लाख आबादी पर 101, राजस्थान में 118, मध्य प्रदेश और ओडिशा में 121, गुजरात में 124, उत्तर प्रदेश में 135, महाराष्ट्र में 137 पुलिसकर्मी हैं।
फिर भी साख क्यों हो रही है कम
साख की बात करें तो 15 अप्रैल को सर दोराबजी टाटा ट्रस्ट द्वारा जारी इंडिया जस्टिस रिपोर्ट 2025 में दिल्ली पुलिस का स्थान कहीं नहीं है। इसमें तेलांगना सबसे उपर और पश्चिम बंगाल सबसे पीछे है। यह रैंकिंग वैकेंसी, पुलिस थानों की स्थिति इंफ्रास्ट्रक्चर जैसे 32 संकेतकों के आधार पर तय की गई है। इस रिपोर्ट में बेहतर प्रदर्शन करने वाले राज्यों की लिस्ट में भी दिल्ली पुलिस का नाम ना होकर सिक्किम, हिमाचल, अरुणाचल, त्रिपुरा और मेघालय का है।
तो क्या हैंसी क्रोनिए यानि मैच फिक्सिंग, संसद हमला, निर्भया कांड या इससे भी बड़े बड़े मामलो में कामयाबी हासिल कर दुनिया भर में नाम कमाने वाली दिल्ली पुलिस की साख गिर गई है। दिल्ली पुलिस के दिल की बात के चौथे एपीसोड में चर्चा इसी को लेकर। नमस्कार मैं हूं आलोक वर्मा। अगर आपने इस विशेष शो के पीछले तीन एपीसोड ना देखे हों तो इस वीडियो के डिस्क्रिप्शन में उनके लिंक दिए हुए हैं।
कभी दुनिया भर में स्कॉटलैंड पुलिस से तुलना की जाने वाली दिल्ली पुलिस की साख को आखिर क्या हो गया है। दिल्ली पुलिस का इतिहास खंगालेंगे तो यहां काबिल अफसरों की कमी नहीं है। हर रैंक पर एक से बढ़कर एक लोग दिल्ली पुलिस में तैनात हैं। इसके बाद भी साख क्यों हिलती नजर आ रही है। मतलब साफ है कि एचआर मैनेजमेंट पर गंभीरता से सोचने की जरूरत है। जब एक बटन पर हर रैंक की पूरी कुंडली सामने होने के बाद भी तैनाती और साख पर सवाल खड़े होने लगें तो जरूरी हो जाता है आत्म मंथन करने का चिंतन करने का।
गिरती साख को बचाने के लिए आजकल दिल्ली पुलिस मीडिया में डाटा जारी कर क्राइम कम होने और वर्क आउट ज्यादा होने का दावा करती है। इसके बाद सोशल मीडिया पर पर अच्छी छवि बनाने के लिए पूरजोर प्रयास होता है फिर भी साख ना संभले तो सवाल खुद से और मानव प्रबंधन यानि एच आर मैनेजमेंट पर कर ही लेना चाहिए।
मगर बिल्ली के गले में घंटी बांधे कौन। याद कीजिए 1990 या वर्तमान दशक के ही शुरूआती सालों की तो आपको यह जवाब मिल जाएगा कि दिल्ली पुलिस की साख को हानि तो पहुंचा ही है। तो सवाल उठता है कि दर्जनों एप्प और पचासों तरह की सामुदायिक पुलिसिंग भी काम नहीं आ रही तो क्यों। इसका जवाब छिपा है इलाका आधारित पुलिसिंग और जमीन पर तैनात पुलिसकर्मियों के चुनाव मैं। दिल्ली शायद देश का एकमात्र ऐसा स्टेट है जहां हरेक तरह के इलाके मौजूद हैं।
जाहिर है इन इलाकों में कैसी पुलिसिंग की जरूरत है वैसे ही लोग तैनात होने चाहिए ये काम आसान भी है क्योंकि पुलिस हेडक्वार्टर में मौजूद सिस्टम में हरेक पुलिसकर्मी की कुंडली मौजूद है। तो कहीं ना कहीं हम इसका लाभ नहीं ले पा रहे। जरूरत यह भी है कि तबादलों के लिए आवेदन देने वाले पुलिसकर्मियों की हर बात को गंभीरता से लिया जाए। इलाके की जरूरत के हिसाब से पुलिसकर्मी जब तैनात होंगे तो पुलिसिंग भी इलाके के हिसाब से ही होगी और तब साख पर दाग लगाने वाली कोशिशें भी नाकाम हो सकेंगी। वर्तमान प्रयास में सबका साथ तो नहीं मिल रहा और जब तक यह नहीं मिलेगा साख को वापस लाना बड़ी बात होगी।
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