यूपी में वृक्षारोपण के लिए बिल्कुल नया तरीका विकसित किया गया है। यह वृक्षारोपण के परंपरागत दो तरीकों से बिल्कुल अलग है। खासकर बुंदेलखंड में यह तरीका अपना भी लिया गया है। वन विभाग के मुख्य वन संरक्षक, बुन्देलखण्ड जोन केके सिंह की सीधी निगरानी में रिसर्च और विकसित इस तकनीक से वनकर्मियों को प्रशिक्षित किया जा रहा है। मुख्य वन संरक्षक केके सिंह का मानना है कि यह तकनीक भविष्य के लिए क्रांतिकारी साबित होगी।
यूपी के सभी वन क्षेत्रों में वृक्षारोपण के लिए अपनाई जाएगी ये तकनीक
बता दें कि यूपी के दक्षिण-पूर्वी क्षेत्र में स्थित बुंदेलखंड जोन, झांसी का कुल भौगोलिक क्षेत्रफल 29,41,700 हेक्टेयर है, जिसमें कुल वन क्षेत्र 2,28,258.676 हेक्टेयर है, जो कि कुल भौगोलिक क्षेत्र का लगभग 7.75 प्रतिशत है। बुन्देलखण्ड जोन के अन्तर्गत झांसी, जालौन (उरई), ललितपुर,महोबा, हमीरपुर, बांदा एवं चित्रकूट जनपद आते है। जिसमें मुख्यतः झांसी, ललितपुर, महोबा, चित्रकूट, बांदा का अधिकांश भाग पठारी तथा आंशिक रूप से महोबा, बांदा, झांसी तथा हमीरपुर जनपद में बीहड़ प्रकृति की वन भूमि पायी जाती है। पठारी क्षेत्र में मृदा की गहराई अत्यधिक कम तथा मृदा पथरीली मौरंग बलुई प्रकार की पायी जाती है। इस प्रकार की भूमि में जल संग्रहण करने की क्षमता काफी कम होती है। बुन्देलखण्ड क्षेत्र में मई, जून के माह में तापमान अत्यधिक रहता है तथा वर्षा भी जुलाई, अगस्त माह को छोड़कर अनियमित रहती है। यहां ऐसे कई कारण मौजूद हैं जिनकी वजह से वृक्षारोपण औऱ उनका संरक्षण काफी कड़ी चुनौती है।
पौधरोपण कार्य हेतु बुन्देलखण्ड क्षेत्र में सामान्यतयाः दो विधियों का प्रचलन है, जिनमें गड्ढे खुदान कर पौधरोपण किया जाता है तथा बोनानाली बनाकर बीज बुआन से पौधे तैयार किये जाते हैं। इस तरह की परंपरागत विधि से वृक्षारोपण और फिर उनकी सुरक्षा चुनौती पूर्ण रहती है। विभिन्न प्रतिकूल चुनौतियों के मद्देनजर बीजगोले जिसको हरीतिमा आहार (Seeds Balls) तकनीक को विकसित किया जा रहा है। इसके पीछे बीज को अंकुरण के पूर्व पर्याप्त प्राकृतिक उर्वरक देने का परिकल्पना है। इस तकनीकी के तहत स्थानीय बीजों के खाद/मिट्टी सहित गोले बनाकर रोपित करने का कार्य किया जा रहा है। इसके लिए एक व्यापक कार्ययोजना तैयार की गई है।
यूपी में वृक्षारोपण वर्ष 2024-25 में सातों वन प्रभागों हेतु एक-एक लाख प्रति प्रभाग का लक्ष्य रखा गया है। इस कार्य को झांसी वन प्रभाग के भगवन्तपुरा वन ब्लॉक में जहां पर अनुसंधान केन्द्र भी है, पर मुख्य वन संरक्षक केके सिंह, बुन्देलखण्ड जोन, झांसी की सीधी निगरानी में सैम्पल तैयार करना, आवश्यक सामग्री, उनका अनुपात, बीज के प्रजातियों का चयन, गोले का वजन पूरी तरह से सूखने पर उनके वजन में आयी वास्तविक कमी, सैम्पल प्लॉट बनाकर उनके अंकुरण का अध्ययन प्रतिदिन विभिन्न रेंजों से रेंज अधिकारी, वन दरोगा, माली तथा कुछ श्रमिकों को बुलाकर वास्तविक प्रशिक्षण दिये जाने का भी कार्य किया गया है।
इनके रोपण हेतु स्थल का चयन करने में विशेष रूप से ध्यान रखा गया है, कि जहां भी अधिकांश समय तक नमी उपलब्ध हो वहीं पर इसका रोपण किया जाये। गोले तैयार करने में इस बात का विशेष ध्यान रखा गया है कि इसकी उर्वरक क्षमता लम्बे काल तक चले, जिससे जड़ को पर्याप्त उर्वरा मिल सकें और तब तक मूसला जड़ इतनी दूर तक सतह के अन्दर जा सके, जहां से पौधा स्वतः जीवित रहने एवं बढ़त हासिल करने में सक्षम हो सके।
जब प्रथम चरण में सुखाने का कार्य किया जा रहा हो तो किसी भी दशा में एक परत से अधिक न रखा जाये। द्वितीय चरण के समय धीरे-धीरे भण्डारण स्थल की उपलब्धता को दृष्टिगत रखते हुये दो से अधिक तीन, चार, पांच लेयर में रखा जा सकता है जब तक कि निचले लेयर का गोला ऊपरी वजन वहन कर सके। लगभग 15 दिनों के बाद इन गोलों को छोटे-छोटे थैलों में रखा जा सकता है जिसमें 400 से 500 गोले रखे जायें जिसका वजन 10 किग्रा0 से 12 किग्रा० होगा, जिसको एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाने में भी सुविधा होगी तथा रोपण काल में आसानी से किसी भी व्यक्ति द्वारा फील्ड में ले जाया जा सकेगा।
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