भारत में साइबर अपराध लगातार नई रणनीतियों के साथ सामने आया है, खासकर मैसेजिंग ऐप्स और विदेशी नंबरों के दुरुपयोग के जरिए। दूरसंचार साइबर सुरक्षा संशोधन नियम 2025 इसी चुनौती को सीधे निशाना बनाते हैं। अब हर डिजिटल पहचान को सत्यापित दूरसंचार नंबर से जोड़ा जाएगा, ताकि नकली पहचान और गुमनाम अपराध पर रोक लगे।
दूरसंचार साइबर सुरक्षा संशोधन नियम 2025: क्या बदल गया है और कैसे फायदा होगा
1. धमकी और वसूली वाले विदेशी नंबरों से छुटकारा
अब WhatsApp, Telegram और अन्य प्लेटफ़ॉर्म पर अकाउंट तभी सक्रिय हो पाएंगे जब मोबाइल नंबर OTP से सत्यापित होगा।
इससे वे साइबर गिरोह जो विदेश से गुमनाम नंबरों से धोखाधड़ी चलाते थे, पहचान छिपा नहीं पाएंगे।
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2. मोबाइल पहचान अधिक सुरक्षित
मोबाइल नंबर सत्यापन (MNV) यह साबित करता है कि सिम उसी व्यक्ति के नाम पर है जो ऐप या सेवा का इस्तेमाल कर रहा है।
पहचान चोरी, म्यूल अकाउंट और फर्जी KYC काफी हद तक बंद हो जाते हैं।
3. बैंकिंग और ई-कॉमर्स में सुरक्षा
UPI घोटाले, नकली रिफंड कॉल और फर्जी खरीदारी वाले केस कम होने की उम्मीद है।
बैंक और पेमेंट ऐप अब सही उपयोगकर्ता की पहचान सुनिश्चित कर पाएंगे, जिससे विवाद और नुकसान घटेंगे।
4. पुराने फोन और सेकंड हैंड बाज़ार पर नियंत्रण
क्लोन किए गए IMEI या छिपे हुए डेटा वाले फोन फिर से अपराध में इस्तेमाल नहीं हो पाएंगे।
हैंडसेट की जांच और डेटा स्क्रबिंग अब अनिवार्य है।
5. पुलिस के लिए तेजी से जांच
क्योंकि हर अकाउंट एक सत्यापित मोबाइल पहचान से जुड़ा होगा, संदिग्धों को ट्रैक करना काफी आसान हो जाएगा।
सीमा पार साइबर अपराध के मामलों में भी जांच में तेजी आएगी।
6. उपयोगकर्ताओं के लिए सुरक्षित डिजिटल अनुभव
अब अनजान विदेशी नंबरों की परेशान करने वाली कॉल और ऑनलाइन डराने-धमकाने की घटनाएं काफी कम होंगी।
लोग अधिक भरोसे के साथ मैसेजिंग और डिजिटल सुविधाओं का उपयोग कर पाएंगे।
फायदे जितने बड़े हैं, कुछ चुनौतियाँ भी मौजूद रहती हैं—
• यदि निगरानी का दायरा स्पष्ट नहीं रहा तो गोपनीयता की चिंता बनी रहेगी।
• प्लेटफ़ॉर्म और टेलिकॉम कंपनियों पर अनुपालन लागत बढ़ेगी।
• अपराधी नए कम प्रसिद्ध ऐप्स या डार्क वेब चैनलों का सहारा ले सकते हैं।
दूरसंचार साइबर सुरक्षा संशोधन नियम 2025 भारत के डिजिटल वातावरण को जेल की तरह नहीं बल्कि एक सुरक्षित पड़ोस की तरह बनाने का प्रयास है। इससे ऑनलाइन धोखाधड़ी, वसूली और पहचान दुरुपयोग में तेज कमी आ सकती है, जबकि नागरिकों के डिजिटल अनुभव को अधिक सुरक्षित और विश्वसनीय बनाया जा सकता है।






