motivational speech in hindi:गांधीजी की बुनियादी शिक्षा, स्वरोजगार और गणतंत्र दिवस का मतलब समझिए अरूण जायसवाल से

बिहार के सहरसा के नया बाजार निवासी 61 वर्षीय डा. अरूण कुमार जायसवाल संस्कृति के स्तंभ के रूप में जाने जाते हैं। पिछले चार दशकों से भारतीय संस्कृति को लेकर अनवरत लोगों को सांस्कृतिक मूल्यों व सूत्रों से अवगत करा रहे हैं।

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motivational speech in hindi: बिहार के सहरसा के नया बाजार निवासी 61 वर्षीय डा. अरूण कुमार जायसवाल संस्कृति के स्तंभ के रूप में जाने जाते हैं। पिछले चार दशकों से भारतीय संस्कृति को लेकर अनवरत लोगों को सांस्कृतिक मूल्यों व सूत्रों से अवगत करा रहे हैं। उन्होंने भारतीय संस्कृति को बिहार ही नहीं विश्व के कई देशों में इसका प्रचार प्रसार किया। एक अवसर पर उन्होंने गणतंत्र दिवस के बारे में विस्तार से बताया है। पेश है उनके विचार। ठंड के प्रकोप को देखते हुए सहरसा गायत्री पीठ की ओर से बड़ी संख्या में कंपबल भी बंटवाए गए।

motivational speech in hindi: श्रुति और स्मृति का मतलब

व्यक्तित्व परिष्कार सत्र को संबोधित करते हुए डाक्टर अरूण कुमार जायसवाल ने गांधीजी की बुनियादी शिक्षा, स्वरोजगार और गणतंत्र दिवस के संबंध में कहा-गणतंत्र दिवस का मतलब है कि उस दिन भारत संविधान, संप्रभु राष्ट्र के रूप में स्थापित हुआ। गणतंत्र दिवस से भारत को राष्ट्राध्यक्ष यानी राष्ट्रपति मिला। गण प्रमुख तो वही हैं। गण मतलब यूनियन, इंडियन यूनियन, भारतवर्ष में पंचायत से लेकर प्रदेश तक सब को कुछ स्वायतता है और कुछ निर्भरता है।स्वायत्तता उसको स्वतंत्र बनाती है, निर्भरता उसको गण से जोड़ती है यानी कि इंडियन यूनियन, भारतीय संघ से जोड़ती है।

उन्होंने कहा कि भारत गांव ,प्रांतऔर प्रदेश का एक संघ है। जैसे यूएसए है, यूनाइटेड स्टेटस ऑफ अमरीका, जितनी स्टेटस हैं उनका यूनियन मिलकर के अमेरिका है। उसी तरह से भारत के सारे प्रदेश मिलकर के भारत वर्ष है। कितनी स्वतंत्रता है और कितनी स्वायतता है, इस को परिभाषित गणतंत्र करता है,भारत का संविधान करता है। तो 26 जनवरी को भारत का संविधान लागू हुआ था।

अरूण जायसवाल ने कहा कि गांधीजी उसके पहले इस दुनिया से जा चुके थे। हालांकि संविधान सभा का निर्माण गाँधी जी के समय हुआ था जिसके अध्यक्ष भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद थे जिसमें अंबेडकर आदि कई सदस्य थे। लेकिन संविधान सभा ने जो संविधान दिया और जब लागू हुआ वह 26 जनवरी का दिन था। भारत के प्राचीन राज्य में श्रुति और स्मृति होती थी उस आधार पर राजकाज चलता था।

श्रुति मतलब शाश्वत, उसमें कोई बदलाव नहीं होता था। स्मृति मतलब सामयिक, जिसमे समय समय पर बदलाव होते रहते थे। समय समय पर बदलाव के कारण हो 108 स्मृतियां भारत में है। समय के अनुसार नियम को, कानून को बदला गया। श्रुति यानी वेद में बदलाव संभव नहीं है। पर स्मृति में समयानुसार बदलाव संभव है। भारत के संविधान में भी समय समय पर संशोधन होते रहे, बदलाव होते रहे इसलिए भारत का संविधान स्मृति है।

गाँधी जी चाहते थे कि देश के नागरिक ग्रामीण स्तर पर स्वावलम्बी बने, नौकरी के बल पर नहीं। स्वावलंबन और स्वरोजगार के बल पर बने। बुनियादी शिक्षा पर गाँधी जी ने बहुत लिखा है। गाँधीजी का वांगमय 125 खंड के आसपास होगा। शिक्षा तो अंग्रेजों ने भी चलाई, अंग्रेजों ने अपने स्वार्थ हित के लिए शिक्षा का स्वरूप बनाया।

motivational speech in hindi: गांधी जी की बुनियादी शिक्षा का मतलब

गांधीजी की बुनियादी शिक्षा का मतलब, देश के परम्परागत और सांस्कृतिक ढांचे के अनुसार, शिक्षा पद्धति का विकास हो। आज हम कहानी भी पढ़ते हैं तो सिंड्रेला की पड़ते हैं। गाँधी जी कहते है की ठीक है सिंडरेला की कहानी पढ़ो, लेकिन हमारे देश में इतनी लोककथाएँ बिखरी पड़ी हुई है, उनको भी जानो।

बुनियाद का मतलब होता है नींव एक ऐसा प्राइमरी एजुकेशन, जिसका मौलिक अधिकार हर एक देशवासियों की हो। अपनी संस्कृति अपनी परंपराओं के अनुसार उस लेगेसी को आगे बढ़ाएँ। गाँधीजी टॉलस्टॉय की एक किताब से बहुत प्रभावित थे, उस किताब का नाम था अन टू दी लास्ट, जिसका गाँधी जी ने अनुवाद किया था अन्त्योदय।

अंत्योदय में उन्होंने लिखा था कि जो कुछ भी बुनियादी सहूलियतें है, जैसे रोजगार है, जैसे शिक्षा है, जैसे बिजली पानी है, साफ हवा साफ पानी है, ये जरुरते देश के अंतिम व्यक्ति तक पहुंचनी चाहिए। जैसे रक्त वाहिनी नाडियाँ पैर से लेकर सिर तक खून पहुंचाती हैं, उसी तरह से होना चाहिए। दूसरी बात थी कि शिक्षा और रोजगार दोनों साथ साथ चले।

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हस्तकला को विकसित करना चाहिए, कुछ चीजें जो उपयोगिता पूर्ण हैं, उसे सिखाया जाना चाहिए। कॉन्वेंट स्कूल में शौक तो सिखाया जायेगा, जैसे म्यूजिक सिखाया जाएगा स्विमिंग सिखाई जाएगी, लेकिन जिंदगी से जुड़ी हुई चीजें नहीं सिखाई जाती। जो बुनियादी चीजे है, जरूरते, जो आदमी को अपने बल पर खड़ा कर सका पूज्य गुरुदेव पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य जीके बड़े पुत्र ओमप्रकाश शर्मा प्रोफेसर थे, उन्होंने अपने घर में एक वर्कशॉप बना रखी थी, उनका कोई बच्चा नहीं था, बाद में किसी रिश्तेदार से एक बच्चा गोद लिया। पर जिन वि‌द्यार्थियों को वो पढ़ाते थे उनको अपने वर्कशॉप में ले आते थे, उनसे कुछ कुछ चीजों को सुधारना रिपेयर कराना, ये सब बाते जैसे रेडियो इत्यादि सुधारने का अभ्यास कराते थे।

motivational speech in hindi स्वाधीनता के बाद

स्वाधीनता के बाद जवाहरलाल नेहरू जो प्रधानमंत्री थे देश के, उन्होंने यदि शिक्षा या अंत्योदय के कार्यक्रम को सही तरीके से लागू नहीं किया, क्योंकि नेहरू जी भारत के शरीर में पश्चिमी आत्मा थी, ऐसा कुछ लोग मानते है। इसलिए गाँधीजी ने पटेल को लिखा था कि तुम एक मात्र व्यक्ति हो जो नेहरू को नियंत्रित कर सकते हो। तुम्हारा सरकार में रहना बहुत जरूरी है। अंत्योदय को ही बाद में बिनोवा जी ने सर्वोदय के नाम से प्रचारित किया।

एक लेखक ने लिखा कि जब क्रांतियां होती है और वही क्रांतिकारी जब सरकार बनाते हैं, जब शासन चलाते हैं तो घोर असफल होते हैं। फ्रांस का उदाहरण दिया, सोवियत रूस का उदाहरण दिया। क्रांतियां इस बात के लिए नहीं होती है कि हमें भविष्य का निर्माण कैसे करना है, वर्तमान को कैसे हटाना है उस बात के लिए क्रांतियां होती है। फिर हिंसा तोड़फोड़ उसमें शुरू हो जाता है। और किसी भी हिंसा और तोड़फोड़ से आप कुशल प्रशासन नहीं कर सकते है।

इसलिए गाँधी जी ने अंग्रेजों से विद्रोह किया, तो चरखा के नाम पर स्वदेशी चलाया, गांव की सफाई के लिए स्वच्छ अभियान चलाया, ये सब बातें उन्होंने की। पॉज़िटिव तरीके से उन्होंने आंदोलन चलाया, ताकि देशवासी इसके लिए प्रशिक्षित हो सके। इसलिए उन्होंने भगत सिंह का समर्थन नहीं किया, उन्होंने कहा कि उनकी भावनाये अच्छी हो सकती है लेकिन हम हिंसा का समर्थन नहीं कर सकते।

क्योंकि हिंसक तरीकों से प्राप्त की गई आजादी बहुत दिनों तक स्थिर नहीं रह सकती। हम ये नहीं कहते कि भगत सिंह अच्छे आदमी नहीं थे, सुभाषचंद्र बोस अच्छे आदमी नहीं थे, हाँ सबका अपना अपना काम करने का तरीका अलग अलग था। हिंसा के लिए जो प्रशिक्षित हो गए थे, ट्रेन्ड हो गए थे, सामने सामने पाकिस्तान ने तीन युद्ध लड़े, वैसे पाकिस्तान हार गया, तब पाकिस्तान वालो ने सोचा कि छद्‌म युद्ध लड़ो, तो छद्‌म युद्ध में नशे का व्यापार, नकली नोट, स्मगलिंग, आतंकवाद ये सब चीजें विकसित की। इन चीजों के लिए फंडिंग नशे से हुई, हेरोइन और कोकीन से हुई। पाकिस्तान में जो हेरोइन और कोकीन का धंधा है ये पाकिस्तानी सेना आईएसआई ने शुरू किया था।

किसी भी समाज में परिवर्तन की शुरुआत राजनीति से नहीं होती, संस्कृति से होती है। राजनीति से शासन बदलता है समाज नहीं। आसपास के देशी को देखें तो बातें समझ में आती है। लेकिन हमने क्या किया, सांस्कृतिक हथियार को, सांस्कृतिक आंदोलन को, सांस्कृतिक घटनाक्रमों को विराम दे दिया। संस्कृति के मामले में सबसे निकम्मा निकला, वे थे हिंदू। ईसाई मुसलमान जितना लगे रहते हैं, फंड इक‌ट्ठा करते हैं, कहाँ कहाँ मस्जिद और गिरजाघर बना लिए।

हिंदू एनआरआइ को भी अब चिंता करनी चाहिए कि अपनी विरासत को सहेजने का, सांस्कृतिक आंदोलनों को गति देने का एक विडंबना है कि दुनिया भर के ईसाई एक हो सकते हैं लेकिन दुनिया भर के हिंदू एक नहीं हो सकते। मार काट के लिए हम क्यों इकट्ठे होते हैं सांस्कृतिक क्रिया कलाप के लिए क्यों नहीं इक‌ट्ठे होते? अगर गांधीजी सशस्त्र आंदोलन करते तो मीर जाफर जयचंद के देश में वे क्या सफल हो पाते? नहीं हो पाता भगत सिंह को फांसी लगी, किसने लगवाई थी? उन्हीं का साथी था। वही तो मुखबिर बना था। भगत सिंह का बहुत नजदीकी आदमी था।

कोई बात कहने से बात नहीं बन जाती है। जब कोई विचार होता है तो उसके क्रियान्वयन की पद्धति होती है। जैसे पार्वती जी ने अपने मैल से गणेशजी का पुतला बनाया, पुतला तब तक था जब तक उसमें उन्होंने प्राण नहीं फूंका। अकेला विचार निष्प्राण, निस्तेज, निष्क्रिय होता है, जब तक उसके क्रियान्वयन की प‌द्धति को सक्रिय नहीं किया जाण क्रियान्वयन की पद्धति ही तो प्राण है।

अगर कोई बात अच्छी लगी, तो आज के तथाकथित महनीय लोग, इसको अपने प्रवचन में डाल करके लोगों को इससे कैसे प्रभावित किया जाए, इसमें दिमाग लगाते हैं। प्रेरित नहीं किया जाए, कैसे इम्प्रेस किया जाए, उस पर फोकस होता है उनका। हम खुद प्रेरित नहीं हुए हैं, प्रभावित हुए हैं, तो सिर्फ प्रभावित करने के लिए ही न सोचेंगे। प्रभावित करना और प्रेरित करना दोनों एकदम अलग बात है, क्योंकि प्रेरित तो आदमी आचरण से होता है, बातों से नहीं होता है। तो व्यक्तित्व पर बात कैसे बनेगी? व्यक्तित्व तो निर्बल है।

आज देश में व्यक्ति की कमी नहीं है व्यक्तित्व की कमी है। गांधीजी से सीनियर थे लोकमान्य तिलका किसी ने पूछा- आपके सामने देश अगर स्वतंत्र हुआ तो फिर आप क्या करेंगे? उन्होंने कहा- फिर मैं मैथमैटिक्स पढ़ाऊंगा, फिर से टीचर बनूँगा। सत्ता सुख की चाहत नहीं है. सम्मान पाने की चाहत नहीं है। प्रेम पाने की चाहत है।
ज्ञान आसक्ति दोनों साथ साथ नहीं चल सकते। आज व्यक्ति न तो काम करना चाहता है न करने देता है। बुरे कार्यों के लिए फंड़ जुट जाता है, परन्तु अच्छे काम के लिए फंड जुटाना बहुत ही दुष्कर कार्य है। तो विचार परिवर्तन का मतलब है मानसिक संरचना में परिवर्तना विचार परिवर्तन का मतलब है दृष्टिकोण में परिवर्तन। विचार परिवर्तन का मतलब है जीवनशैली में परिवर्तन। विचार परिवर्तन का मतलब है आस्थाओं में परिवर्तन। विचार परिवर्तन का मतलब है भावनाओं में परिवर्तन।
गाँधी जी का अंत्योदय कार्यक्रम तभी सफल होगा जब बुनियादी शिक्षा को सही तरीके से क्रियान्वित किया जाएगा। इसके लिए वातावरण बनाना पड़ेगा। वो कौन सी चीज़ है जो बच्चों को नशे की ओर आकर्षित करती है, वातावरण सहयोगी नहीं है। एक समय ऐसी स्थिति नहीं थी क्योंकि उस समय वातावरण सहयोगी था। जब हम बात करते हैं नागपुर के संतरे, नासिक का अंगूर, मुजफ्फरपुर के लीची, प्रयागराज के अमरूद, हिमालय के चौड़ देवदार के पेड़ा कौन इन सब चीजों को अंकुरित करता है? वातावरण अंकुरित करता है।

motivational speech in hindi: वातावरण क्या है

वातावरण बहुत सूक्ष्म चीज है। कहीं 100 आदमी मिल करके किसी एक विचार को संपोषित करते हैं तो उस स्थान की तरंगे बदल जाती है, फिर उसी को अपने रंग में रंग लेती है। इसलिए विवेकानंद ने कहा मंदिर में जाओ तो अपने कलुषित विचार को लेकर वहाँ मत जाओ, अच्छे विचारों को लेकर जाओ, वो मंदिर तुम्हारे अच्छे विचारों को संपोषित करेगी।

ये क्या है?वातावरणा हम तीर्थों में क्थी जाते हैं? वातावरण, वहाँ के सूक्ष्म तरंगे हमें अनुप्राणित करती है। मंदिर परिसर में बैठे हैं तो सांसारिक चर्चा,लड़ाई बुराई की बाते ऐसी जगहों में नहीं करनी चाहिए, इस बात का हमे सख्ती से पालन करना चाहिए। आध्यात्मिक चर्चा को संपोषित करना चाहिए। सामाजिक और सांस्कृतिक चर्चा भी उपासना कक्ष से बाहर करना चाहिए।

बुनियादी शिक्षा में हमें सबसे पहले आर्ट ऑफ लिविंग पढ़नी चाहिए, आईए बीए एमए में भी इंटर्नशिप कक्षा होनी चाहिए, जो देवसंस्कृति विश्ववि‌द्यालय, हरिद्‌वार ने किया।1947 में भारत स्वतंत्र हुआ, तब से लेकर अब तक कश्मीर में कोई सांस्कृतिक आंदोलन शुरू हो पाया? नहीं। तो फिर आप उम्मीद क्यों करते हो? समाधान विचारों के क्रियान्वयन में है। षडयंत्र के वातावरण में जो बीज पनपते हैं, उससे किसी अच्छाई की उम्मीद आप कैसे रख सकते हैं? ये तो हुआ, गाय मारकर जूता दान। जहाँ विचारों के क्रियान्वयन की पद्धति नहीं होगी वहाँ विचार केवल बाद विवाद और वितंडा बनकर के रह जायेगा।

motivational speech in hindi: गांधीजी की बुनियागी शिक्षा
गांधीजी की बुनियादी शिक्षा आजादी के बाद ज्यादा लागू नहीं हो पाई। हम लोग के समय तक जिला परिषद से गांधीजी की बुनियादी शिक्षा वाली किताब आती थी। उस समय तक हम लोगों से भी चटाई बनवाया जाता था स्वदेशी रोजगार के अंतर्गत, और भी बहुत चीज़ सिखाया जाता था बताया जाता था, अब तो ये सब बाते गायब हैं। गाँधी जी ने जो ग्राम स्वराज की बात की थी उसके अंतर्गत वे सब था। आज कॉर्परिट का जमाना है।

ग्राम स्वराज का मतलब था कि गांव एक राष्ट्र की इकाई है। प्रदेश की तरह गांव भी एक इकाई है। गांव में जो महिलाएं पुरुष कुटीर उद्‌योग, गृह उद्‌योग में जो निर्मित करते हैं. उस निर्मित सामान को बाजार में बेचा जाए। अब तो चारी तरफ मॉल खुल गए हैं। ये मल्टीनेशनल कंपनी, कॉरिट, ये सब गाँधीजी के ग्राम स्वराज की भावना के विपरीत है।

motivational speech in hindi: गांधीजी के विचार लाइब्रेरी में

अब तो गांधीजी के विचार लाइबेरी के पुस्तको में है। अब सारी अच्छी बाते किताबों में है। हमारे मित्र बता रहे थे कि दुनिया का सबसे ईमानदार व्यक्ति का फोटो, इतनी बेवकूफी की चीजी में लगाई गई है। पैसी और रुपयों पर उसकी फोटो है। सबसे ईमानदार आद‌मी सबसे बेईमानी वाले कामी में घुसा हुआ है। हालांकि फोटो दिया गया होगा कि उसे देख कर, हम गलत काम न कर सके, हम बेईमानी न कर सके। पर वो लोग गए,वो विचार गए। पहले सत्याग्रही लोग थे, सदाचारी लोग थे।

आज तो आजाद देश में हम खुली हवा में सांस ले रहे हैं। सब कुछ आसानी से उपलब्ध हैं, आजादी के जो सत्याग्रही लोग थे, उन्हें बहुत कष्ट दिया जाता था, अंग्रेजी के पुलिस से, जो हिंदुस्तानी ही थे, डंडा मार मार कर अधमरा कर देते थे, पीठ पर निशान उनके मरते वक्त तक दिखता था। सत्याग्रही को पुलिस वाले लैट्रिन यानी मल खिलाते थे। ऐसा कष्ट मिलता था।

सत्याग्रहियों का पुलिस वाले घर मकान परिवार सब उजाड़ देते थे। फिर भी वे डटे रहते थे, तब तो भारत आजाद हो पाया। आज सब के मन मस्तिष्क पर आसुरी छाया है. अंधेरा यूं ही टूटने वाला नहीं है। बातों के बताशे से अंधेरा टूटने वाला नहीं है। 26 जनवरी हम यूं ही न मना ले, गांधीजी के विचारों को आत्मसात करते हुए, उसे जीवन में अपनाते हुए, उसे क्रियान्वित करते हुए, अपने जीवन को, अपने परिवार को और अपने राष्ट्र को समुन्नत बनाएँ।

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  1. […] उन्होंने कहा कि अहंकार की तलाश में हमने मौत तलाश लिया। रूस की क्या समस्या है? यूक्रेन की क्या समस्या है? चीन की क्या समस्या है? अमेरिका की क्या समस्या है विस्तारवाद। कारण है स्वार्थ स्वार्थ और अहंकार। इंसान को सफलता मिले और वह पगलाए नहीं ये बहुत विरल घटना है। आत्मा तो सफलता और असफलता से परे है। आत्मा को कोई फर्क नहीं पड़ता। सफलता का क्रेडिट अहंकार लेता है। […]