27 जनवरी को होलोकॉस्ट के पीड़ितों की याद में अंतर्राष्ट्रीय स्मरणोत्सव दिवस (अंतर्राष्ट्रीय प्रलय स्मरण दिवस – International Holocaust Remembrance Day) के तौर पर मनाया जाता है। इस साल 2022 में, संयुक्त राष्ट्र प्रलय स्मरण और शिक्षा को गाइड करने वाला विषय “स्मृति, गरिमा और न्याय को लिया गया है। इस दिन का उद्देश्य द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान हुई प्रलय की त्रासदी की एनिवर्सरी मनाने के लिए है।
इतिहास
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान एक भारी नरसंहार हुआ जिसमें जर्मनी के नाजी शासकों ने, अपने सहयोगियों के साथ मिलकर, 1941 से 1945 के बीच, यूरोप में बसे यहूदी आबादी के लगभग दो-तिहाई, अर्थात 6 मिलियन यूरोपीय यहूदियों की व्यवस्थित रूप से हत्या कर दी थी। जिसके बाद संयुक्त राष्ट्र ने नाजी शासन के पीड़ितों के आधिकारिक स्मरणोत्सव के लिए 27 जनवरी के चुना।
इस तारिख को संयुक्त राष्ट्र और दुनिया भर में प्रलय की शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए 2005 में 27 जनवरी को अंतर्राष्ट्रीय प्रलय स्मरण दिवस निर्धारित किया था।
जर्मनी में नाजी और यहूदी कौन थे?
नेशनल सोशलिस्ट जर्मन वर्कर्स पार्टी (NSDAP) को नाज़ी कहा जाता था। यह एक राजनीतिक पार्टी थी जो 1919 के पहले विश्व युद्ध के बाद स्थापित की गई थी। आपकों बता दें कि NSDAP साल 1920 में बहुत लोकप्रिय हुई थी क्योंकि उस वक्त जर्मनी पहले विश्व युद्ध खत्म होने के बाद पतन के दौर से गुजर रही थी। प्रथम विश्व युद्ध में हारने के बाद जर्मनी की आर्थिक स्थिती कमजोर हो चुकी थी और उसे युद्ध में हारने के बाद जितने वाले देश को बहुत सारे पैसे देने थे। जर्मनी में यहूदी धर्म या यूदावाद (Judaism) विश्व के प्राचीनतम धर्मों में से है, तथा दुनिया का प्रथम एकेश्वरवादी धर्म माना जाता है। यह इस्राइल और हिब्रू भाषियों का राजधर्म है।
ऐनी फ्रैंक की डायरी से दुनिया के सामने आई होलोकॉस्ट की कहानी
ऐनेलिज मेरी का जन्म 12 जून 1929 को जर्मनी के फ्रैंकफर्ट में हुआ था। साल 1933 में जब नाजी जर्मनी के सत्ता में आए तब चार साल की उम्र में ऐनी और उसके परिवार को जर्मनी छोड़ना पड़ा था। जिसके बाद वे लोग नीदरलैंड के एम्सटर्डम पहुंचे। लेकिन साल 1940 में वहां नाजियों का कब्जा शुरू हो गया था जिसके बाद वे वहीं फंस के रह गए।
जब एम्सटर्डम में भी यहूदियों पर अत्याचार बढ़ने लगा, तब जुलाई 1942 ऐनी के पिता ने अपने दफ्तर की इमारत में स्थित गुप्त कमरों में शरण ली और ये लोग वहीं रहने लगे। करीब दो साल वहां रहने के बाद ऐनी के पिता के एक साथी ने विश्वासघात किया और ऐनी का पूरा परिवार नाजियों के द्वारा गिरफ्तार कर लिए गए। गिरफ्तार करने के बाद नाजियों ने उन्हें भी अन्य यहूदियों की तरह यातना शिविरों में भेज दिया, जहां उन्हें बहुत कठोर यातनाओं से गुजरना पड़ता था। गिरफ्तारी के 7 महिने बाद टाइफायड के कारण ऐनी की मौत हो गई, ऐनी के मौत के एक सप्ताह बाद ही ऐनी की बहन की भी मौत हो गई। युद्ध समाप्त होने के बाद जब ऐनी के पिता एम्सटर्डम लौटे तब वहां उन्हें ऐनी की एक डायरी मिली जिसमें ऐनी ने छुपकर बिताए गए दिनों के बारें में लिखा था। बहुत प्रयास करने के बाद 1947 में ऐनी के पिता ने इस डायरी को प्रकाशित करवाया था। बाद में इस डायरी का डच से इंग्लिश में अनुवाद होकर ‘द डायरी ऑफ अ यंग गर्ल’ नाम से पब्लिश हुआ। जिसे पाठकों के द्वारा बहुत पसंद किया गया था।