डिजिटल अरेस्ट मामलों में बढ़ती ठगी पर सुप्रीम कोर्ट की चिंता, मुआवजा तंत्र पर जल्द फैसला संभव

डिजिटल अरेस्ट साइबर ठगी के मामलों में लगातार हो रहे नुकसान को लेकर सुप्रीम कोर्ट की चिंता और गहरी हुई है। कोर्ट ने पीड़ितों को राहत देने वाले तंत्र पर जल्द ठोस कदम उठाने के संकेत दिए हैं।
Digital Arrest Scam
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अपडेटः डिजिटल अरेस्ट नाम से सामने आ रहे साइबर घोटालों यानि digital arrest scam को लेकर सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियां अब केवल चेतावनी तक सीमित नहीं रहीं। अदालत ने साफ संकेत दिए हैं कि पीड़ितों को तत्काल राहत देने वाला प्रभावी मुआवजा तंत्र समय की जरूरत बन चुका है।

कोर्ट के अनुसार, ऐसे मामलों में ठग खुद को पुलिस, जांच एजेंसी या न्यायिक अधिकारी बताकर लोगों को मानसिक दबाव में लेते हैं और भारी रकम ट्रांसफर करवाते हैं। इस प्रक्रिया में पीड़ित अक्सर डर और भ्रम की स्थिति में कोई शिकायत दर्ज नहीं कर पाते।

अदालत ने यह भी माना कि डिजिटल अरेस्ट जैसे मामलों में केवल एफआईआर दर्ज होना पर्याप्त नहीं है। बैंकों, टेलीकॉम कंपनियों और जांच एजेंसियों के बीच बेहतर तालमेल के बिना इस तरह की ठगी को रोकना मुश्किल होगा।

इसी क्रम में केंद्र सरकार से अपेक्षा की गई है कि वह पीड़ित मुआवजा तंत्र और बैंकिंग अलर्ट सिस्टम को लेकर जल्द व्यावहारिक रूपरेखा सामने लाए। कोर्ट ने संकेत दिए हैं कि अंतरराष्ट्रीय मनी ट्रेल और म्यूल अकाउंट्स पर भी सख्त निगरानी जरूरी होगी।

Digital arrest scam क्या है

डिजिटल अरेस्ट एक उन्नत साइबर ठगी तकनीक है, जिसमें अपराधी खुद को पुलिस अधिकारी, जज या किसी अन्य सरकारी अधिकारी के रूप में पेश करते हैं। फर्जी दस्तावेज, नकली समन और डर पैदा करने वाली ऑडियो या वीडियो कॉल के जरिए पीड़ित को मानसिक दबाव में लाया जाता है।

स तरीके में आम तौर पर:

  • मनी लॉन्ड्रिंग, नारकोटिक्स या अन्य गंभीर अपराधों का झूठा आरोप लगाया जाता है।
  • तत्काल गिरफ्तारी या कानूनी कार्रवाई की धमकी दी जाती है।
  • पीड़ित को परिवार या बाहरी संपर्क से अलग-थलग किया जाता है।
  • भय की स्थिति में बड़ी रकम ट्रांसफर करने के लिए मजबूर किया जाता है।

इन मामलों में अक्सर:

  • यूनिफॉर्म पहने कथित अधिकारियों की नकली वीडियो कॉल,
  • म्यूल अकाउंट्स और अंतरराष्ट्रीय मनी ट्रेल,
  • वरिष्ठ नागरिकों, डॉक्टरों, इंजीनियरों और अन्य पेशेवरों को निशाना बनाना जैसी बातें सामने आती हैं।

सुप्रीम कोर्ट के मुख्य निर्देश

सुनवाई के दौरान पीठ ने स्पष्ट किया कि डिजिटल अरेस्ट जैसे मामलों में केवल आपराधिक जांच पर्याप्त नहीं है, बल्कि पीड़ितों को त्वरित राहत और मुआवजा भी मिलना चाहिए।

अदालत ने केंद्र सरकार को निर्देश दिया कि:

  • एक स्टेकहोल्डर स्तर की बैठक आयोजित की जाए।
  • इस बैठक में पीड़ित मुआवजा तंत्र और डिजिटल अरेस्ट घोटालों के खिलाफ प्रणालीगत सुरक्षा उपायों पर चर्चा हो।

⚖️ अमिकस क्यूरी की अहम सिफारिशें

अमिकस क्यूरी और वरिष्ठ अधिवक्ता एन.एस. नप्पिनै ने अदालत के समक्ष कई व्यावहारिक सुझाव रखे, जिनमें प्रमुख हैं:

  • यूके मॉडल की तर्ज पर Authorised Push Payment (APP) स्कैम पीड़ितों के लिए रिइम्बर्समेंट फ्रेमवर्क।
  • बैंकिंग सिस्टम में ऐसे अलर्ट तंत्र विकसित करना, जो संदिग्ध लेनदेन को शुरुआती चरण में ही चिन्हित कर सकें।

इसके साथ ही, सीबीआई के इनपुट और विभिन्न विभागों के बीच बेहतर समन्वय को भी समाधान का अहम हिस्सा बनाने पर जोर दिया गया।

यह फैसला क्यों अहम है

सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियां देश में डिजिटल अरेस्ट से जुड़े कुछ गंभीर पहलुओं की ओर इशारा करती हैं:

  • आम नागरिकों को हो रहा भारी आर्थिक नुकसान।
  • प्रतिरूपण और धमकी के कारण उत्पन्न गहरा मानसिक आघात।
  • बैंकों, टेलीकॉम कंपनियों और कानून प्रवर्तन एजेंसियों के बीच प्रभावी तालमेल की कमी।

यह आदेश एक बड़े बदलाव का संकेत देता है, जहां:

  • न्याय व्यवस्था अधिक पीड़ित केंद्रित हो रही है।
  • साइबर अपराध से निपटने के लिए बहु-क्षेत्रीय सुधारों की दिशा तय हो रही है।

डिजिटल अरेस्ट जैसे घोटालों से निपटने के लिए केवल कानून ही नहीं, बल्कि जागरूकता भी उतनी ही जरूरी है। प्रतिरूपण तकनीकों को समझना, डर के माहौल में कोई भी वित्तीय निर्णय न लेना और शुरुआती स्तर पर शिकायत दर्ज कराना भविष्य में नुकसान को काफी हद तक कम कर सकता है।

सुप्रीम कोर्ट के ये निर्देश आने वाले समय में साइबर अपराध पीड़ितों के लिए एक मजबूत सुरक्षा ढांचा तैयार करने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम माने जा रहे हैं।

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