फारेंसिक सबूतों के चक्रव्यूह से अब ना बच पाएंगे अपराधी, गृह मंत्रालय ने उठाए कई कदम

देश में नए कानूनों के लागू हो जाने के बाद आरोपी वैज्ञानिक सबूतों के अभाव में ना बच सकें इसकी तैयारी की जा रही है। इसके मद्देनजर गृह मंत्रालय ने देश भर में फारेंसिक यानि वैज्ञानिक सबूतों का शिकंजा कसने की तैयारी कर ली है।

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फारेंसिक
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देश में नए कानूनों के लागू हो जाने के बाद आरोपी वैज्ञानिक सबूतों के अभाव में ना बच सकें इसकी तैयारी की जा रही है। इसके मद्देनजर गृह मंत्रालय ने देश भर में फारेंसिक यानि वैज्ञानिक सबूतों का शिकंजा कसने की तैयारी कर ली है। इसके तहत फारेंसिक प्रयोगशालाओं और केंद्रों का संजाल पूरे देश में बिछाने का फैसला लिया गया है। 30 जुलाई को सरकार ने लोकसभा में एक सवाल के जवाब में इस बारे में विस्तार से बताया भी है। सरकार का प्लान जानने से पहले आइए फारेंसिक की वर्तमान स्थिति के बारे में जान लेते हैं।

फारेंसिक की वर्तमान स्थिति

क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम में फारेंसिक यानि वैज्ञानिक सबूतों का सबसे ज्यादा अहमियत होता है। साइबर क्राइम से लेकर हत्या, आत्महत्या, लूट और आतंकी हमलों जैसे मामलो में फारेंसिक सबूतों की अहमियत खास होती है। वर्ष 2005 में भारत में फोरेंसिक विज्ञान प्रयोगशालाओं में जांच के लिए 0.5 मिलियन से अधिक मामले लंबित थे। 2021 में लंबित मामलों की स्थिति भी बेहतर नहीं है, भारत में फोरेंसिक विज्ञान प्रयोगशालाओं में मामलों की अनुमानित लंबितता 0.7 से 0.8 मिलियन मामलों तक है।

यह परिदृश्य तब है जब भारत में एफएसएल को मामलों की रेफरल दर विभिन्न राज्यों में दर्ज कुल अपराध का लगभग 10-12% है। यदि संज्ञेय अपराधों के कुल मामलों को जांच के लिए एफएसएल को भेजा जाता है, तो मामलों की लंबितता लगभग 8 गुना तक बढ़ सकती है। यहां यह उल्लेख करना भी उचित है कि एफएसएल में डीएनए और विष विज्ञान रिपोर्ट 6 महीने से 2 साल तक लंबित रहती है, जो कानून की अदालतों में निर्णय लेने की प्रक्रिया को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करती है और देरी करती है।

भारत में संशोधित कानूनों के अनुसार, यौन उत्पीड़न के मामलों में डीएनए जांच अनिवार्य हैदेश में हर साल 50-60 हजार अज्ञात शवों की सूचना दी जाती है, जिनकी पहचान डीएनए विश्लेषण और अन्य तरीकों से की जाती है। 

सरकार की तैयारी

 लोकसभा में गृह राज्य मंत्री बंडी संजय कुमार ने 30 जुलाई को जानकारी दी कि देश में 7 केंद्रीय फारेंसिक विज्ञान प्रयोगशालाएं यानि सीएफएसएल हैं। ये प्रयोगशालाएं चंडीगढ़,  दिल्ली, भोपाल, पुणे, कोलकाता, गुवाहाटी, और हैदराबाद में स्थित हैं। वैसे राज्य एफएसएल की संख्या 32 और क्षेत्रीय एफएसएल की संख्या 97 है। हालांकि देश में नागरिकों की जान माल की सुरक्षा और फारेंसिक की जवाबदेही राज्य सरकार की होती है। मगर गृह मंत्री अमित शाह के विशेष प्रयास और नेतृत्व में अब देश में फारेंसिक सबूतों का संजाल मजबूत होगा।

सरकार ने पुणे, भोपाल, कोलकाता और गुवाहटी स्थित सीएफएसएल के आधुनिकीकरण का फैसला ले चुकी है।इसी तरह  ई-फारेंसिक आईटी प्लेटफार्म 117 फारेंसिक प्रयोगशालाओं को जोड़ता है। चंडीगढ़ स्थित सीएफएसएल में अत्याधुनिक डीएनए विश्लेषण, अनुसंधान और विकास सुविधा की स्थापना।  जम्मू काश्मीर में सीएफएसएल स्थापना की सैद्धांतिक मंजूरी मिल चुकी है।

राष्ट्रीय फोरेंसिक विज्ञान विश्वविद्यालय (एन.एफ.एस.यू) की स्थापना वर्ष 2020 में संसद के अधिनियम के तहत, देश के सभी एफएसएल में पेशेवर फारेंसिक लोगों की नियुक्ति के लिए की गई है।  विश्वविद्यालय का मुख्यालय गुजरात के गांधी नगर में है। इसके अलावा दिल्ली, गोवा, अगरतला, भोपाल, धारवाड़, गुवाहटी के अलावा इंफाल और पुणे में भी शिक्षण अकादमी स्थापित की गई है। 

जून में हुई कैबिनेट की बैठक में फारेंसिक विज्ञान और प्रशिक्षण के लिए औऱ भी कई कदम उठाने औऱ इसके लिए 2254.43 करोड़ रुपये खर्च करने का फैसला लिया गया।

फारेंसिक क्षमताओं के अधिकीकरण के लिए 2080.5 करोड़ रुपये खर्च करने का फैसला लिया गया है। राष्ट्रीय साइबर फारेंसिक प्रयोगशाला हैदराबाद की तर्ज पर जल्द ही पुणे, चंडीगढ़, भोपाल, दिल्ली, कोलकाता और गुवाहटी में स्थित सीएफएसएल में एक समर्पित साइबर फारेंसिक प्रयोगशाला स्थापित करने के लिए मंजूरी दी गई है। इसी तरह राष्ट्रीय फारेंसिक डाटा भी स्थापित किए जाने का फैसला लिया गया है।

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