एनआईए-प्रोफेशनल, डेडिकेटेड और रिलायबल

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आलोक वर्मा

अगले कुछ ही दिनों मेॆ एनआईए यानि राष्ट्रीय जांच एजेंसी रेजिंग डे मनाएगी। एक जांच एजेंसी 8 नौ सालों में ही कैसे विश्वसनीयता हासिल करती है एनआईए को देखकर समझा जा सकता है। हालांकि सभी प्रमुख एजेंसियों की तरह एनआईए पर भी कर्नल पुरोहित जैसे मामलों को लेकर सवाल उठे हैं मगर फिर भी दिल्ली पुलिस के हाथों आतंक के आरोप में पकड़े गए लियाकत को कोर्ट में आतंकी ना बताना भी एनआईए के हिस्से में ही आता है। आगे कुछ और बताने से पहले आपको बता दूं कि पिछले साल एनआईए के 10 केसों में सजा हुई। अगर हिसाब प्रतिशतता की हो तो इसे 95 फीसदी कंवीक्शन दर कहा जाता है। मतलब ये कि एनआईए बहुत कम समय़ में ही देश की विश्वसनीय और पेशेवर एजेंसी के रूप में जानी जाने लगी है।

पिछले साल तक एनआईए में  166 मामले जांच के लिए गए , इन मामलो में आंतकवाद संबधी सभी मामले थे और इसमे से 26 राज्यो और संघ शासित प्रदेशो में जांच शामिल थी। 166 मामलो में से 63 मामले जिहादी आतंकवाद,25 पूर्वोत्तर से जुडे उग्रवादी संगठनो, 41 मामले आतंकवादी मामलो में वित्तीय सहायता और नकली नोट,13 मामले वामपंथ उग्रवाद जबकि शेष 24 मामले अन्य आतंकवादी घटनाओ और गैंग से जुडे थे।

वैसे गौर से देखा जाए तो एनआईए के हिस्से में तीन सबसे बड़ी उपलब्धियां हैं पहली आईएसआईएस का भारत में पैर जमाने की कोशिश को नाकाम करना तो दूसरा बर्दवान विस्फोट की जांच और तीसरा सबसे अहम मामला आतंक फंडिग का है। आतंक की फंडिंग के मामले का असर पूरे काश्मीर में अब तक दिख रहा है एनआईए की जांच शुरू होने के बाद ही वहां प्रायोजित आतंक की कमर टूटी। एनआईए के शुरू के दिनों में पहले से काम करने वाली एजेंसियां इसके विरोध में थीं लेकिन एनआईए की पेशेवर सोच ने धीरे-धीरे सबके मुंह बंद किए। कुछ मामलों को छोड़ दिया जाए तो एनआईए की जांच पर सवाल नहीं उठाए गए फिर चाहे उसके अपने अधिकारी की ह्त्या का मामला हो या कुछ औऱ।

राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) के सबूतों का लोहा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी माने गए। पठानकोट हमले की जांच में एनआईए ने वाकी टाकी तक की गहनता से जांच की औऱ ये साबित किया कि हमला पाक प्रायोजित आतंकियों का था। इसी मामले में एक पुलिस अधिकारी की संदिग्ध भूमिका पर सारे सवाल उठते रहे मगर एनआईए ने अपनी जांच में उसे बेकसूर पाया तो किसी भी दवाब में आए बिना उस पुलिस अधिकारी को क्लीन चिट दी।

एनआईए के खाते में बड़ी कामयाबी 13 दिसंबर 2016 को मिली, जब हैदराबाद में एनआईए की विशेष अदालत ने प्रतिबंधित इंडियन मुजाहिदीन (आईएम) के पांच सदस्यों को हैदराबाद के दिलसुखनगर क्षेत्र में 21 फरवरी, 2013 को दोहरे विस्फोट के लिए दोषी करार दिया। उसके बाद 19 दिसंबर, 2016 को विशेष अदालत ने अभियोजन तथा बचाव पक्ष की दलीलें सुनने के बाद पांचों दोषी अभियुक्तों को मौत की सजा सुना दी।

उपरोक्त केस को दो कारणों से बड़ी उपलब्धि माना गया था पहला कारण – इसकी संपूर्ण तथा कुशलता भरी जांच एवं अभियोजन तथा दूसरा – रिकॉर्ड समय के भीतर सुनवाई समाप्त होकर फैसला आना। देश में आईएम के आतंकवादियों को दोषी ठहराए जाने का वह पहला बड़ा अवसर था। दोषियों में आईएम का सह संस्थापक मोहम्मद अहमद सिद्दीबापा उर्फ यासीन भटकल भी शामिल थे।  मुख्य षड्यंत्रकर्ता यासीन भटकल की गिरफ्तारी बहुत चुनौतीपूर्ण थी क्योंकि दोहरे विस्फोट के बाद भटकल ने टेलीफोन और इंटरनेट से दूरी बना ली थी ताकि उसका पता नहीं चल सके। एनआईए ने खुफिया एजेंसियों के साथ मिलकर काम किया और पता लगा लिया कि भटकल नेपाल में है। उसकी हरकतों पर बारीक नजर रखी गई और उसे नेपाल लाकर गिरफ्तार कर लिया गया।

उसी दिन यानी 19 दिसंबर, 2016 को देश में आतंकवाद से संबंधित मामलों में जांच के क्षेत्र में एक और घटना हुई, जो हाल के दिनों में उतनी ही महत्वपूर्ण थी। एनआईएन के जांचकर्ताओं की एक टीम ने पठानकोट एयरबेस पर 2 जनवरी, 2016 को हुए आतंकवादी हमले में विस्तृत आरोप पत्र दाखिल कर दिया। इस हमले में 7 सुरक्षाकर्मी शहीद हुए थे और चार आतंकवादी मारे गए थे। यह बहुत पेचीदा मामला था, जो 26/11 को लश्कर-ए-तैयबा द्वारा मुंबई में किए गए हमले या 13/12 को संसद में हमले अथवा 1999 के आईसी 814 विमान अपहरण से अलग था, जिन्हें उतने ही कुख्यात जैश-ए-मोहम्मद ने अंजाम दिया था। पठानकोट हमले की पूरी योजना पाकिस्तान में बैठे जैश के वरिष्ठ कमांडरों या नेताओं की निगरानी और नियंत्रण में बनाई गई थी और उसे अंजाम दिया गया था, लेकिन उससे जुड़े सबूत इलेक्ट्रॉनिक तथा अन्य तकनीकी जानकारी पर आधारित थे। इस बार एनआईए के हाथ में 26/11 के ‘कसाब’ या संसद हमले के ‘अफजल गुरु’ जैसा कोई नहीं था।

एनआईए से मामले की जांच करने को कहा गया और एजेंसी ने एक वर्ष से भी कम समय में ढेरों सबूत जुटा डाले। जांच में इलेक्ट्रॉनिक सूचना का विश्लेषण करना, आवाजों के नमूने लेना, अंतरराष्ट्रीय कॉल्स का ब्योरा हासिल करना, गवाहों से पूछताछ करना, बेहद जटिल डीएनएन प्रोफाइलिंग करना और एक वर्ष में जुटाए गए सभी सबूतों का निरीक्षण करना शामिल था।  पंजाब के विभिन्न जिलों में बैठे चार दलों ने इतने ही समय में तथ्यों का सत्यापन किया और गवाहों से पूछताछ की।

एनआईए के जांचकर्ताओं ने गवाहों के बयानों के रूप में इस बात के पर्याप्त सबूत इकट्ठे किए कि आतंकवादियों को जैश के नेता मौलाना मसूद अजहर और मुफ्ती अब्दु रऊफ द्वारा प्रशिक्षित, प्रेरित किया गया था और कट्टर बनाया गया था। उन्होंने फोन पर हुई बातचीत टैप कर और गवाहों के बयानों के जरिये यह भी साबित किया कि काशिफ जान और शाहिद लतीफ ने वायुसेना के ठिकाने पर हमला करने वाले चारों आतंकवादियों को रास्ता दिखाया था, हथियार मुहैया कराए थे और वहां भेजा था। घटनास्थल से मिले सामान और दस्तावेजी सबूतों, फॉरेंसिक रिपोर्ट और फोन कॉल्स के भारीभरकम विश्लेषण ने स्पष्ट रूप से साबित कर दिया कि पठानकोट एयरबेस पर हमले में जैश के आतंकवादियों का हाथ था।

2009 में गठित एनआईए को शुरुआत में दिल्ली में ही केंद्रित संगठन माना गया था, जिसे राज्यों में अपराध शाखाओं, विशेष जांच दलों (एसआईटी) और विशेष कार्य बलों (एसटीएफ) से मुकाबला करना पड़ता। आरंभिक दिनों में उसके सामने बाधाएं भी आईं क्योंकि राज्य नई संस्था को महत्व देने के लिए तैयार ही नहीं थे; कई बार मामले सौंपने में देर करते थे; सहयोग नहीं करते थे। लेकिन धीरे-धीरे एजेंसी ने इस समस्याओं से पार पा लिया और अब वह आतंकवाद रोधी मामलों की जांच करने वाली बुनियादी एजेंसी बनकर उभर चुकी है। अब देश भर में इसकी उपस्थिति है और हैदराबाद, गुवाहाटी, मुंबई, कोच्चि तथा लखनऊ में इसकी पूर्ण इकाइयां एवं शाखाएं हैं। एनआईए ने अब एक अलग विशेषज्ञ प्रकोष्ठ ‘टेरर फंडिंग एंड फेक करेंसी सेल (टीएफसीसी सेल)’ स्थापित कर लिया है, जो जाली भारतीय मुद्रा तथा आतंकवादियों को वित्तीय सहयोग जैसे मामलों से निपटता है। यह प्रकोष्ठ आतंवादियों को दी जा रही मदद तथा जाली भारतीय नोटों (एफआईसीएन) की जानकारी रखता है। यह उन मामलों में आतंकवादियों को आर्थिक सहायता दिए जाने के मामले भी खंगालता है, जिनकी जांच एनआईए नियमित तौर पर करती है। भारत के विभिन्न क्षेत्रों में काम कर रहे नक्सली समूहों को आर्थिक सहायता दिए जाने के मामलों में टीएफसीसी प्रकोष्ठ ने ऐसे ढेरों बैंक खातों का सत्यापन किया है, जिन पर नक्सली समूहों से संबंधित होने का संदेह है।

कुल मिलाकर ये कहा जा सकता है कि एनआईए देश की प्रमुख जांच एजेंसी की जगह तो पा ली है मगर इसे और अच्छा बनाने के लिए इसके संसाधनों की ओर ध्यान देना होगा दिल्ली स्थित मुख्यालय की तरह राज्यों में एनआईए के अत्याधुनिक इमारते बनानी होंगी।

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