यह हैं वो सात रोहिंग्या जिनको भेजा गया म्यांमार

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एनआऱसी विवाद के बीच पहली बार है जब भारत से रोहिंग्या प्रवासियों को म्यामांर वापस भेजा जा रहा है। सात रोहिंग्या को वापस म्यांमार भेजने के खिलाफ दाखिल याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने रोंहिग्या को म्यांमार भेजने का रास्ता साफ कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने 7 रोंहिगंया को म्यांमार भेजने से रोकने की याचिका खारिज कर दी है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हमने विदेश मंत्रालय (MEA) की रिपोर्ट देखी है और  हम इस मामले में दखल नहीं देंगे। सुप्रीम कोर्ट में केंद्र की ओर से पेश हुए अटॉर्नी जनरल (ASG) तुषार मेहता ने कहा कि वो 2012 में पकड़े गए थे और उन्‍हें फोरेनर्स एक्ट में दोषी करार दिया गया था। सजा पूरी करने के बाद उन्हें सिलचल के डिटेंशन सेंटर में रखा गया था। इसके बाद MEA ने म्यांमार एबेंसी में बात की और उन्होंने माना कि ये सातों उनके नागरिक हैं। एंबेसी उनके लिए एक महीने की वैधता के लिए शिनाख्त कागजात देने को तैयार हुई। म्यांमार ने उनके ट्रेवल डॉक्‍यूमेंट तैयार किए। ये अर्जी सिर्फ अखबार की रिपोर्ट पर आधारित हैं।

कौन हैं ये सात रोहिंग्या

देश के अलग-अलग राज्यों में अवैध तरीके से रह रहे रोहिंग्या मुसलमानों में से जिन सात रोहिंग्या घुसपैठियों को गुरुवार को भारत सरकार वापस भेज रही है ये सभी 7 असम में रह रहे थे। केंद्र सरकार पहली बार ऐसा कदम उठा रही है। केंद्र ने पहले ही ऐलान कर दिया था कि रोहिंग्याओं को उनके वतन भेजा जाएगा।

जिन 7 लोगों को वापस भेजा जा रहा है उन्हें असम पुलिस ने 2012 में हिरासत में लिया था। तब से ये लोग असम के सिलचर जिले के कचार सेंट्रल जेल में बंद थे। कचार के प्रत्यर्पण अधिकारियों ने बताया कि जिन्हें वापस भेजा जा रहा है उनमें मोहम्मद जमाल, मोहबुल खान, जमाल हुसैन, मोहम्मद युनूस, सबीर अहमद, रहीमुद्दीन और मोहम्मद सलाम शामिल हैं। इनकी उम्र 26 से 32 साल के बीच है।

एक अधिकारी के मुताबिक, इस बारे में म्यांमार के राजनयिकों को कांसुलर एक्सेस दी गई थी। तभी इनकी पहचान हो पाई। इनके पते की रखाइन राज्य में पुष्टि होने के बाद पता चल पाया कि सातों म्यांमार के नागरिक हैं।

रोहिंग्या कौन हैं?

म्यांमार की बहुसंख्यक आबादी बौद्ध है। म्यांमार में एक अनुमान के मुताबिक़ 10 लाख रोहिंग्या मुसलमान हैं। इन मुसलमानों के बारे में कहा जाता है कि वे मुख्य रूप से अवैध बांग्लादेशी प्रवासी हैं। सरकार ने इन्हें नागरिकता देने से इनकार कर दिया है। हालांकि ये म्यामांर में पीढ़ियों से रह रहे हैं। रखाइन स्टेट में 2012 से सांप्रदायिक हिंसा जारी है। इस हिंसा में बड़ी संख्या में लोगों की जानें गई हैं और एक लाख से ज्यादा लोग विस्थापित हुए हैं।

बड़ी संख्या में रोहिंग्या मुसलमान आज भी जर्जर कैंपो में रह रहे हैं। रोहिंग्या मुसलमानों को व्यापक पैमाने पर भेदभाव और दुर्व्यवहार का सामना करना पड़ता है। लाखों की संख्या में बिना दस्तावेज़ वाले रोहिंग्या बांग्लादेश में रह रहे हैं। इन्होंने दशकों पहले म्यांमार छोड़ दिया था।

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