निर्भया केस- देश भर की पुलिस को मिला ये संदेश

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नई दिल्ली, आलोक वर्मा। निर्भया केस के दोषियों को फांसी होने के साथ ही शुक्रवार की सुबह एक साथ कई संदेश लेकर आई। न्याय में देरी हो सकती है मगर अंधेरगर्दी नहीं..। यह पहला संदेश था। दूसरा संदेश था इंसान को अपने कर्मों की सजा भुगतनी ही पड़ती है और सबसे बड़ा संदेश पुलिस के लिए था। दिल्ली के साथ साथ देशभर की पुलिस के लिए। संदेश यह की जांच की बारीकियां और आपसी तालमेल केस को सजा के मुकाम तक लेकर जाता ही है। निर्भया केस जांच के लिए नजीर इसलिए भी है कि क्योंकि 17 दिनों में चार्जशीट, केस डायरी, सबूत वैसे हालातों में जुटाए गए थे जब पूरी दिल्ली पुलिस देश भर के लोगों का रोष झेल रही थी। जब हादसे वाले थाने के बाहर जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के छात्र जमे पड़े थे, जब पुलिस मुख्यालय पर पुलिस कमिश्नर का इस्तीफा मांगा जा रहा था। जब दिल्ली पुलिस के विरोध में मीडिया पूरजोर तरीके से खड़ी थी। जब पुलिस के खिलाफ जांच के लिए कमीशन दर कमीशन बैठाए जा रहे थे। जब हर हालात हर परिस्थिति पुलिस और जांचकर्ताओं के विरोध में था। इसके बावजूद भी दिल्ली पुलिस को सफलता मिली ना केवल वैज्ञानिक सबूत जुटाने में बल्कि 17 दिन के अंदर चार्जशीट दाखिल करने में और आखिरकार फांसी दिलाने में भी। अगर मुझसे कोई पूछे तो मैं यही कहूंगा कि यह सब संभव हुआ सारे आपसी विरोध के बावजूद जांच में लगे एक एक अफसर की तन्मयता और आपसी सहयोग ने निर्भया केस को ना केवल अंजाम तक पहुंचाया बल्कि देश के कानूनी इतिहास में एक नजीर भी बनी।

जांच के हीरो-

प्रमोद कुशवाहा, तत्कलीन डीसीपी

मुख्य रूप से तत्कालीन डीसीपी छाया शर्मा, प्रमोद कुशवाहा, एसटीएफ इंचार्ज राजेन्द्र सिंह, वसंत विहार एसएचओ अनिल शर्मा और साकेत एसएचओ रीतू राज ने सक्रिय भूमिका भी निभाई थी। लेकिन जैसा कि तत्कालीन डीसीपी वर्तमान में डीसीपी स्पेशल सेल प्रमोद कुशवाहा खुद कहते हैं कि केस से जुड़े प्रत्येक शख्स ने बहुत ठोस और अहम भूमिका निभाई थी। इस सर्वाधिक सनसनीखेज मामले की सबसे बड़ी बात यही थी कि बरेक तरह के दबाव के बाद भी जांच में लगे प्रत्येक पुलिस अफसर ने अपनी भूमिका को बेहद सधे हुए तरीके से निभाया। आम तौर पर वैज्ञानिक सबूतों पर फोकस ना करने वाली पुलिस ने आरंभ में हीं सीएफएसएल की टीम को मामले की गंभीरता समझा दी थी।

डीसीपी छाया शर्मा

इसीलिए लार्वा से लेकर बस के फर्श तक के वैज्ञानिक निशान लिए गए। शुरूआत में ही बस की पहचान करने में ही वैज्ञानिक सहारा लिया गया था। हालाकि केस में लापरवाही को लेकर एक आंतरिक जांच भी की गई थी लेकिन अब उसकी बात करने का कोई लाभ नहीं। सच ये है कि प्रत्यक्ष तौर के साथ-साथ इस केस में कई ऐसे हीरो भी थे जिनकी भूमिका को नकारा नहीं जा सकता। उनमें कांस्टेबल स्तर तक के पुलिसकर्मी शामिल हैं।

तत्कालीन सीपी नीरज कुमार

इस केस की चार्जशीट तैयार करने में प्रत्यक्ष रूप से स्थानीय पुलिस की भूमिका तो थी ही तत्कालीन सीपी नीरज कुमार ने भी अपनी भूमिका अदा की थी। उन्होंने अपनी पुस्तक में इस मामले का विस्तार से जिक्र भी किया है।

एसीपी राजेन्द्र सिंह

उनके वर्षों के पेशेवर अनुभव ने केस की जांच में लगी टीम के साथ-साथ केस की चार्जशीट को भी वैधानिक आकार दिया था। एसटीएफ के तत्कालीन इंचार्ज और वर्तमान में द्वारका के एसीपी राजेन्द्र सिंह को तो कौन नहीं जानता। हरेक गंभीर केस को सुलझाने में उनकी अहम भूमिका को सब स्वीकारते हैं। इस मामले में आरोपियों से सच उगलवाने, उनकी पकड़ धकड़ से लेकर सबूत जुटाने तक में राजेन्द्र सिंह की अहम भूमिका थी।

इंस्पेक्टर अनिल शर्मा

वसंत विहार के तत्कालीन और राजौरी गार्डन के वर्तमान एसएचओ अनिल शर्मा ने निर्भया केे साथ मौजूद उसके मित्र की हिम्मत बनाए रखने, विपरीत हालातो में थाने को शांत रखने आदि में अहम भूमिका अदा की तो साकेत के तत्कालीन और वर्तमान में वसंत कुंज नार्थ के एसएचओ रीतू राज ने नक्सल इलाके से अक्षय को गिरफ्तार कर अपनी ठोस भूमिका अदा की थी

इंस्पेक्टर रीतू राज

कई महिला पुलिसकर्मियों के योगदान को भी नकारा नहीं जा सकता है।

देश भर की पुलिस को संदेश-

शुक्रवार की सुबह निर्भया के दोषियों को हुई फांसी ने दिल्ली के साथ-साथ देश भर की पुलिस को संदेश दिया है। संदेश लाख आपसी तालमेल का। संदेश केस के शुरूआती सावधानियों का। संदेश आपसी सहयोग का। संदेश पेशेवर रवैये का और भी बहुत कुछ।

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