IT Act 2000: सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) अधिनियम, 2000, भले ही भारत में साइबर क़ानून के लिए एक व्यापक ढांचा प्रदान करता है, लेकिन साइबर अपराध के खिलाफ प्रभावी प्रतिरोध स्थापित करने के लिए इसमें बदलाव अनिवार्य है। इस अधिनियम के अंतर्गत अधिकांश अपराधों के लिए दंड बहुत ही हल्के हैं, सिर्फ साइबर आतंकवाद (धारा 66F) को छोड़कर, जो आजीवन कारावास से दंडनीय है।
IT Act 2000 की कमजोरियों का लाभ उठा सकते हैं साइबर क्रिमिनल
आजकल साइबर अपराध एक लाभकारी क्षेत्र बन गया है, और अपराधी पारंपरिक अपराधों से डिजिटल अपराध की ओर शिफ्ट हो रहे हैं, क्योंकि वे प्रवर्तन की कमजोरियों का लाभ उठा सकते हैं। हालिया न्यायिक व्याख्याएँ जांच को और अधिक जटिल बना रही हैं। विशेष रूप से, बॉम्बे उच्च न्यायालय (अप्रैल 2024) ने स्पष्ट किया कि जबकि आईटी अधिनियम एक विशेष कानून है जो सामान्य कानून (आईपीसी) को अधिलेखित कर सकता है ।
स्थिति को और कठिन बना देता है यह तथ्य कि आईटी अधिनियम के तहत जांच केवल इंस्पेक्टर रैंक या उससे ऊपर के अधिकारियों द्वारा ही की जा सकती है, जिससे जाँच अधिकारियों की उपलब्धता सीमित हो जाती है।
IT Act 2000 के अंतर्गत प्रमुख अपराध और दंड:
सिविल लायेबिलीटीज:
• धारा 43: अनधिकृत एक्सेस, डेटा चोरी या क्षति — प्रभावित पक्ष को मुआवज़ा।
• धारा 44: अनिवार्य रिटर्न न देना — ₹1.5 लाख तक का जुर्माना या लगातार विफलता पर ₹5,000–₹10,000 प्रतिदिन का दंड।
आपराधिक अपराध:
• धारा 65: कंप्यूटर स्रोत कोड के साथ छेड़छाड़ — अधिकतम 3 वर्ष की सज़ा या ₹2 लाख जुर्माना या दोनों।
• धारा 66: हैकिंग या डेटा नष्ट करना — अधिकतम 3 वर्ष या ₹5 लाख जुर्माना या दोनों।
• धारा 66B–66E: चोरी का डेटा प्राप्त करना, पहचान की चोरी, भेस धारण कर ठगी, या निजता का उल्लंघन — अधिकतम 3 वर्ष या ₹2 लाख तक जुर्माना।
• धारा 74: इलेक्ट्रॉनिक हस्ताक्षर प्रमाणपत्र का धोखाधड़ी से प्रकाशन — 2 वर्ष तक की सजा या ₹1 लाख जुर्माना।
अश्लीलता:
• धारा 67: इलेक्ट्रॉनिक रूप में अश्लील सामग्री का प्रकाशन — दोहराव पर 5 वर्ष की कैद और ₹10 लाख तक जुर्माना।
कुल मिलाकर, भले ही यह अधिनियम एक विधिक ढांचा प्रदान करता हो, लेकिन यह ना तो पर्याप्त प्रतिरोध स्थापित करता है और ना ही प्रभावी जांच सुनिश्चित करता है, जिससे बढ़ते साइबर अपराधों का मुक़ाबला किया जा सके। कड़े दंड और जांच क्षमता में विस्तार अब समय की आवश्यकता है।
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