भारत में 70 साल पहले विलुप्त घोषित चीते को अफ्रीका से भारत में फिर से बसाए जाने की तैयारियां जोरों पर हैं। उम्मीद जताई जा रही है आजादी की 75वीं वर्षगांठ से पूर्व यहां के जंगलों में चीते रफ्तार भरते दिखेंगे। योजना के तहत पहले चरण में दक्षिण अफ्रीका से 12 चीतों को लाया जाना है, जिनमें छह मादा और छह नर
होंगे, जबकि नामीबिया से आठ चीते आने हैं। इसके लिए भारत सरकार वे प्रोजेक्ट चीता की शुरूआत की है। जंगली प्रजातियों विशेष रूप से चीता को फिर से स्थापित करने का कार्य आईयूसीएन दिशानिर्देशों के अनुसार किया जा रहा है और बीमारियों की जांच, छोड़े जाने वाले जानवरों को क्वारंटाइन करना आदि के साथ जीवित जंगली जानवरों के एक से दूसरे महाद्वीप में परिवहन आदि प्रक्रियाओं के लिए सावधानीपूर्वक योजना बनने और इसका निष्पादन करने की आवश्यकता होती है।
चीता को निर्दिष्ट निवास स्थल (रेंज) में छोड़े जाने/स्थानांतरित किये जाने की तारीख अभी तय नहीं की गई है। पूरी प्रक्रिया की संवेदनशीलता को देखते हुए, पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय परियोजना की सफलता सुनिश्चित करने के लिए सभी सावधानी बरत रहा है। आगमन पर, चीतों को क्वारंटाइन में रखा जाएगा और जंगल में छोड़े जाने से पहले उनकी निगरानी की जाएगी। मीडिया के कुछ हिस्सों में रिपोर्ट आयी है कि अफ्रीकी चीता अभी भी पारगमन में फंसे हुए हैं। यह रिपोर्ट पूरी तरह से निराधार है।
नामीबिया गणराज्य के साथ समझौते पर हस्ताक्षर किए जा चुके हैं और दक्षिण अफ्रीका के साथ समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये जाने की प्रक्रिया चल रही है।
क्या है प्रोजेक्ट चीता
यह एक राष्ट्रीय परियोजना है, जिसमें राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण और मध्य प्रदेश सरकार शामिल हैं। इस परियोजना के तहत चीतों को उनके मूलस्थान नामीबिया-दक्षिण अफ्रीका से हवाई रास्ते से भारत लाना और उन्हें मध्य प्रदेश (एमपी) के कूनो राष्ट्रीय उद्यान में बसाया जाना है।
अगले पांच वर्ष में 50 चीते लाने की योजना है। इसके बाद भारत एकमात्र ऐसा देश बन जाएगा जहां ‘बिग कैट’ प्रजाति के पांचों सदस्य -बाघ, शेर, तेंदुआ, हिम तेंदुआ और चीता मौजूद होंगे। बता दें कि देश में चीते अंतिम बार 1947 में देखे गए थे। सरकार ने वर्ष 1952 में इसे विलुप्त घोषित कर दिया था।
पहले भी हो चुकी है कोशिश
इससे पूर्व भारत सरकार ने 1970 में चीतों को ईरान से लाने का प्रयास किया था। इसके लिए ईरान से बातचीत भी की गई थी, लेकिन यह पहल सफल नहीं हो सकी।