शरत् चंद्र पर पुस्तक “आवारा मसीहा” लिखने से पहले विष्णु प्रभाकर की वह यात्रा

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15 सितम्बर को अमर कथा शिल्पी शरत चन्द्र की जयंती है। इस अवसर पर इस उनपर आधारित कालजयी पुस्तक ‘’आवारा मसीहा’‘ के लेखक स्वर्गीय विष्णु प्रभाकर का स्मरण हो जाना भी स्वाभाविक ही है।

अपनी इस प्रामाणिक पुस्तक को लिखने के सिलसिले मे बिष्णु प्रभाकरजी भागलपुर आए थे।

उनके यहाँ आने का मुख्य उदेश्य शरत बाबू से संबन्धित समग्रियों को एकत्र करना था।

जो उनकी पुस्तक तो प्रामाणिकता दे सके।

अपने भागलपुर प्रवास में वे शरत बाबू के संबन्धियो, परिचितों और मित्रो से मिले थे।

प्रभाकरजी ने बताया कि इस पुस्तक तो लिखने का दायित्व उन्हे मुंबई से सौंपा गया था।

यह जिम्मेवारी साहित्यनुरागी और हिन्दी ग्रंथ रत्नाकर प्रकाशन संस्थान के संचालक नाथूराम प्रेमी ने सौपी।

वह हिन्दी में शरत बाबू की प्रमाणिक जीवन छापने के उत्सुक थे।

शरत चंद्र की पुस्तक के लिए 14 साल की साधना

प्रेमजी द्वारा सौपे इस दायित्व को प्रभाकर जी ने 1959 से 1973 तक अपनी 14 वर्षो की साधना से पूरा किया।

इस बीच वे शरत बाबू के संबंध मे सूचनाएँ और सामग्रियों को इकट्ठा करने के सिलसिले मे देश-देशांतर की यात्राएं की।

इसी क्रम मे वे पहली बार अगस्त 1959 मे भागलपुर आए । एक सप्ताह रहकर 30 अगस्त को वापस लौटे।

उन्हे भागलपुर में खट्टे मीठे अनुभव भी हुए थे।

कुछ लोगो ने उन्हे हतोत्साहित किया, तो कुछ लोगो ने हौसले बढ़ाए।बंगला के प्रसिद्ध उपन्यासकर बलाय चन्द्र मुखर्जी “बनफूल” ने उन्हे शरत बाबू से संबन्धित कई महात्वपूर्ण जानकारिया दी।उन्हे उनके भागलपुर प्रवास मे हिन्दी सेवक और विधायक सत्येंद्र नारायण अग्रवाल, प्रभाकरजी के मित्र और हिन्दी के प्राध्यापक डॉ शिवनंदन प्रसाद, कला केंद्र के प्राचार्य और पत्रकार बंकिम चन्द्र बनर्जी और गांधी शांति प्रतिष्ठान से जुड़े भगवानचंद विनोद ने उन्हे उनके इस अभियान मे बहुत सहयोग किया।

शरत चंद्र की यादें

बिष्णु प्रभाकरजी ने अपने भागलपुर प्रवास मे शरत बाबू के मामा परिवार के सदस्यो, उनके पुराने मित्र चंडीचरण घोष,भूपति भूषण घोष,चन्द्रशेखर घोष, एम.एम.मजूमदार आदि से भी मिले और उनके नानिहाल के मकान सहित गंगा तट पर जा उनके बचपन के क्रीडा स्थल, उस बरगद के पेड़ जिसके नीचे बैठ उन्होने अपनी रचनाएँ की थी, बंग साहित्य परिषद, दुर्गाचरण स्कूल, टीएनबी कालेजिएट स्कूल आदि जगहो पर भी गए जहां शरत बाबू की स्मृतियाँ जुड़ी हुई थी। फतेह जंगी के मकबरे पर भी संस्कृति शरदचंद्र की महफिल और बुढानाथ मंदिर के सामने वाले भवन के छत पर भी उनके काव्य संगोष्ठी होती थी। भागलपुर की कई जगहे शरदचंद्र जी के यादों को संजोए हुए हैं।

शरत चंद्र पर पुस्तक आवारा मसीहा

जब पुस्तक “अवारा मसीहा” का प्रकाशन हो गया, तब एक बार फिर बिष्णु प्रभाकरजी भागलपुर आए थे और सत्येंद्र नारायण अग्रवाल जी के यहाँ ठहरे थे।उनसे पूछा गया कि आपके द्वारा शरत बाबू को “आवारा” कहना कुछ अटपटा सा नहीं है तो उनका उत्तर था कि मैंने इस नाम के जरिये यह बताने की कोशिश की है कि एक आवारा सा लड़का अंत मे कैसे अपनी लेखनी के माध्यम से पीड़ित मानवता की सेवा कर “मसीहा” बन जाता है।

(आंशिक संशोधन के साथ स्वर्गीय श्री मुकुटधारी अग्रवाल सर के बाल से)

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