महिला को तीन महीने तक डिजिटल अरेस्ट कर लाखों हड़पे, क्राइम ब्रांच ने आरोपियों को ऐसे दबोचा

दिल्ली क्राइम ब्रांच के साइबर सेल ने डिजिटल अरेस्ट का रैकेट चलाने वाले दो लोगों को गिरफ्तार किया है। आरोप है कि इन्होंने एक महिला को डिजिटल अरेस्ट कर 35 लाख रुपये से ज्यादा की रकम की ठगी कर ली थी।

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डिजिटल अरेस्ट
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दिल्ली क्राइम ब्रांच के साइबर सेल ने डिजिटल अरेस्ट का रैकेट चलाने वाले दो लोगों को गिरफ्तार किया है। आरोप है कि इन्होंने एक महिला को डिजिटल अरेस्ट कर 35 लाख रुपये से ज्यादा की रकम की ठगी कर ली थी। इनके सीज खाते से डिजिटल अरेस्ट के दूसरे मामलों का भी खुलासा हुआ है। आरोप है कि महिला को तीन महीने तक डिजिटल अरेस्ट कर रखा गया।

डिजिटल अरेस्ट का ये मामला ऐसे खुला

मामले का खुलासा तब हुआ जब घर की सारी जमा पूंजी खतम हो गई और सरकारी पद पर तैनात पति को गड़बड़ी लगी। पति ने जब पत्नी से पूछताछ की तो पत्नी ने रो रोकर सारी बात बताई। इसके बाद ई-एफआईआर के जरिए मामले की शिकायत की गई।

क्राइम ब्रांच के डीसीपी आदित्य गौतम के मुताबिक एसीपी अनिल शर्मा की निगरानी में इंस्पेक्टर संदीप सिंह के नेतृत्व में एसआई राकेश मलिक, महिला एसआई भाग्य श्री एएसआई संदीप त्यागी, संजय, हेडकांस्टेबल सचिन, कपिल, अक्षय, विकास, भूपेन्द्र, आनंद और मोहित तोमर की टीम ने शुभम शर्मा और मोहित नाम के साइबर बदमाशों को गिरफ्तार किया।

 इनकी गिरफ्तारी एक महिला के साथ हुए डिजिटल अरेस्ट के मामले में की गई। उक्त महिला से मुंबई साइबर सेल के सब इंस्पेक्टर प्रशांत शर्मा बनकर मोटी रकम देने के लए मजबूर किया गया। उन्हें घंटो तक डिजिटल अरेस्ट कर बदमानी की धमकी भी दी गई। उन्हें व्हाट्सप्प वीडियो कॉल आदि के जरिए फोन पर फंसाए रखा गया। हर बार भुगतान मिलते ही उसे जबरन डिजिटल सबूत मिटाने के लिए मजबूर किया जाता था।

अपराधियों द्वारा जानबूझकर सभी सबूत मिटाने की कोशिशों के बावजूद, जिसमें पीड़ित को चैट, कॉल लॉग और भुगतान रिकॉर्ड डिलीट करने के लिए मजबूर करना भी शामिल था, जाँच दल ने सावधानीपूर्वक घटनाओं के क्रम का पुनर्निर्माण किया। डिजिटल फोरेंसिक, बैंक लेनदेन के निशानों, आईपी लॉग और मोबाइल टावर डंप के विश्लेषण के माध्यम से, टीम धीरे-धीरे घोटालेबाजों की असली पहचान और कार्यप्रणाली का पता लगाने में सफल रही।

एक बड़ी सफलता तब मिली जब हेडकांस्टेबल आनंद कुमार ने कई राज्यों में फर्जी संस्थाओं से जुड़े संदिग्ध बैंक खातों और यूपीआई आईडी के एक नेटवर्क का पता लगाया। इन खातों में पीड़ितों से अलग-अलग भुगतान प्राप्त होते पाए गए, जो एक महत्वपूर्ण सुराग था जिससे बड़े सिंडिकेट का पर्दाफाश हुआ।

डिजिटल निगरानी और मानवीय खुफिया जानकारी के संयोजन का उपयोग करके, शुभम शर्मा का पता लगाया गया और उसे पानीपत के ग्वालरा से गिरफ्तार कर लिया गया। उससे पूछताछ के आधार पर भिंडारी गाँव के मास्टरमाइंड मोहित की पहचान हुई और उसे गिरफ्तार कर लिया गया।

शुभम शर्मा ने खुलासा किया कि उसने हाल ही में हाई स्कूल की पढ़ाई पूरी की है और रोज़गार की तलाश में मोहित के संपर्क में आया। उसे फ़र्ज़ी दस्तावेज़ों, जाली पैन कार्ड, अस्थायी मोबाइल नंबर और ईमेल आईडी का इस्तेमाल करके कई बैंक खाते खोलने के लिए राज़ी किया गया था। उसने कम से कम आठ ऐसे खातों में वित्तीय लेनदेन की बात स्वीकार की, जिन्हें अब फ़्रीज़ कर दिया गया है। उसने इस घोटाले में अपने अन्य साथियों—राहुल, विशाल और टिंकू—के भी नाम बताए।

 मोहित ने खुलासा किया कि वह दसवीं फेल है और आसानी से पैसा कमाने की तलाश में इस आपराधिक गतिविधि में शामिल हुआ। उसकी भूमिका मुख्य रूप से कमज़ोर लोगों की भर्ती करना और फ़र्ज़ी पहचान पत्रों पर बैंक खाते खुलवाना था। वह भर्ती हुए लोगों के साथ व्यक्तिगत रूप से बैंकों में जाता था, ठगी गई धनराशि निकालने में उनकी मदद करता था और धोखाधड़ी के बड़े नेटवर्क के प्रमुख सदस्यों, राहुल और विशाल को नकदी सौंपता था।

उनके खाते से डिजिटल अरेस्ट के अन्य मामलों का भी खुलासा हुआ है।

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