climate change के खतरे से बचना है तो करना होगा ये काम, कार्यशाला में विशेषज्ञों ने दी राय

climate change के खतरे से बचना है तो कुछ ठोस काम करने होंगे। इसमें सबसे बड़ा काम प्राकृतिक संपदा का उपयोग हार्मोनी से करना शामिल है। यह बात झारखंड के PCCF सह-सदस्य सचिव संजीव कुमार ने कही।

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climate change के खतरे से बचना है तो कुछ ठोस काम करने होंगे। इसमें सबसे बड़ा काम प्राकृतिक संपदा का उपयोग हार्मोनी से करना शामिल है। यह बात झारखंड के PCCF सह-सदस्य सचिव संजीव कुमार ने कही। वह बिरला इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी मेसरा में biodiversity preserving Nature for sustainable future विषय पर एक दिवसीय कार्यशाला को मुख्य अतिथि के तौर पर संबोधित कर रहे थे।

climate change पर इन्होंने भी रखी बात

कार्यशाला में डॉ राजू पोद्दार dean, डॉ बिन्दु लाल, अध्यक्ष इन्वाइरन्मेनल इंजीनियरिंग एवं आयोजक डॉ सुकल्याण चक्रवर्ती भी मौजूद थे| संजीव कुमार ने कहा कि जलवायु परिवर्तन (climate change) की समस्या से ग्रस्त हैं क्योंकि प्राकृतिक संपदा का हार्मोनी के साथ उपयोग नहीं हो रहा है। इनका सतत् उपयोग की आवश्यकता है ताकि आने वाली पीढ़ियों को भी ये संसाधन उपलब्ध रहें।

उन्होंने कहा कि प्रकृति पर आधारित लाइफ स्टाईल बनाने की आवश्यकता है। जैव विविधता के संरक्षण तथा सतत उपयोग के लिए एक्शन प्लान बनाया गया है जिसमे 23 टारगेट है| इनके अनुरूप कार्य करने की आवश्यकता है उनके द्वारा जल संचयन, आर्गेनिक फ़ार्मिंग, रिसर्च – ट्रैनिंग की आवश्यकता भू-क्षरण रोकने, पॉलिनेटर की पहचान कर उनका संरक्षण, वन पर आधारित सतत् पोष्य जीविकोपार्जन जैसे-लाह की खेती, तसर की खेती, बांस पर आधारित कुटीर उद्योग इत्यादि पर बल दिया गया।

जैवविविधता का संरक्षण हो और सभी लोग मिलकर COP की एक्शन टारगेट पर काम करे जिससे आज आने वाले सारी परेशानियों का समाधान किया जा सकता है| जिसके लिए पर्षद द्वारा सहयोग भी किया जाएगा और साथ ही विधयार्थियों की जैवविविधता के प्रति रुचि लाने हेतु छोटे- छोटे प्रस्ताव पर भी पर्षद का सहयोग मिलेगा इसका आश्वासन दिया गया |
इस अवसर पर BIT के कैंपस के जैवविविधता संबंधित इ-रजिस्टर का विमोचन भी किया गया। इस कार्यशाला में देश के विभिन्न विश्वविद्यालयों और संस्थानों से पधारे विशिष्ट वक्ताओं ने अपने विचार प्रस्तुत किए। पर्यावरण अभियंत्रण विभाग, कल्याणी विश्वविद्यालय के डॉ. एस. सी. संत्रा ने सतत् जैवविविधता प्रबंधन की आवश्यकता पर बल दिया और बताया कि किस प्रकार पर्यावरण अभियंत्रण समाधान, जैवविविधता संरक्षण में सहायक हो सकते हैं। उन्होंने तकनीकी नवाचार और कानूनी ढांचे के बीच संतुलन की आवश्यकता को रेखांकित किया।

  1. वनस्पति विज्ञान विभाग, विनोबा भावे विश्वविद्यालय के डॉ. पी. के. मिश्रा ने जैव विविधता के वनस्पति पक्ष पर प्रकाश डाला और स्थानीय पौधों की प्रजातियों के संरक्षण की आवश्यकता को बताया। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि बढ़ती जैव ऊर्जा मांगों के बीच पौधों की विविधता को बचाना कितना आवश्यक है।
  2. पर्यावरण विज्ञान विभाग, केंद्रीय विश्वविद्यालय झारखंड डॉ. भास्कर सिंह ने पर्यावरणीय चुनौतियों का विश्लेषणात्मक दृष्टिकोण से मूल्यांकन किया और बताया कि जैव ऊर्जा विकास और जैवविविधता अधिनियम के बीच किस प्रकार समन्वय स्थापित किया जा सकता है। उन्होंने नीति निर्माण में वैज्ञानिक साक्ष्यों के महत्व को रेखांकित किया।
  3. तकनीकी पदाधिकारी, झारखंड जैवविविधता पर्षद, हरी शंकर लाल ने जैवविविधता शासन के कानूनी और प्रशासनिक पहलुओं की विस्तृत जानकारी दी। उन्होंने यह समझाया कि राज्य जैवविविधता बोर्ड की भूमिका किस प्रकार जैवविविधता अधिनियम को लागू करने में महत्वपूर्ण है | इन सभी विशेषज्ञों ने जैव ऊर्जा और जैवविविधता संरक्षण के बीच संतुलन स्थापित करने की दिशा में उपयोगी सुझाव दिए और सतत् पर्यावरणीय प्रबंधन के लिए एक स्पष्ट मार्गदर्शन प्रस्तुत किया।
    इस कार्यशाला के दौरान आयोजित पोस्टर प्रस्तुतीकरण सत्र में विभिन्न संस्थान जेवियर विश्वविद्यालय, बीआईटी मेसरा, वन उत्पादक संस्थान, डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय, बांकुरा विश्वविद्यालय, पश्चिम बंगाल, राष्ट्रीय जैवविविधता प्राधिकरण इत्यादि के प्रतिभागियों ने जैवविविधता प्रबंधन, जैव ऊर्जा से संबंधित विषयों पर अपने शोध एवं विचार प्रस्तुत किए।
    पुरस्कार विजेताओं में प्रथम पुरस्कार: डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय, द्वितीय पुरस्कार: पल्लवी भारती, इन्टर्न-झारखंड जैवविविधता पर्षद एवं बांकुरा विश्वविद्यालय, पश्चिम बंगाल, तृतीय पुरस्कार: मनीषा शंकर एवं बीआईटी मेसरा ने प्राप्त किए | कार्यक्रम में जैवविविधता प्रबंधन समिति के सदस्य, शिक्षक एवं विभिन्न महाविद्यालयों के छात्र भी उपस्थित थे|

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