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छत्रपति साहू महाराज जी जन्म 26 जून, 1874 को हुआ। वह कोल्हापुर जिले के मराठा परिवार में भोसले राजवंश के रियासत के महाराजा थे। छत्रपति साहू महाराज का बचपन का नाम यशवंत राव था। वह एक समाज सुधारक के रूप में भी जाने जाते है। उनके पिता का नाम श्रीमंत जयसिंह आभासाहब घाटगे था। महज तीन वर्ष की उम्र में ही उनकी माँ का देहांत हो गया और उन्हें रानी आनंदबीई ने गोद लिया था।
वह समाज सुधारक ज्योतिराव गोविंदराव फुले के योगदान से काफी प्रभावित थे। राजा होने के बाद भी निचली जाती प्रति गहरा लगाव था।। उन्होंने दलित और शोषित जाति के साथ हो रहे भेदभाव का खंडन किया। उन्होंने गरीब बच्चो को मुफ्त में शिक्षा दिलवाई। उन्होंने गरीब छात्रों के लिए छात्रवास् की व्यवस्था की और साथ ही बाहरी छात्राओ के लिए शरण निवास बनवाये। राजाराम कॉलेज शाहू महाराज द्वारा बनाया गया था और बाद में इसका नाम उनके नाम पर रखा गया था। ।
उनका विवाह 1891 में बड़ौदा के एक महान व्यक्ति की बेटी लक्ष्मीबाई खानविलाकर से हुआ। उनके चार बच्चे थे – दो बेटे और दो बेटियां।
साहू जी का अपने साम्राज्य में महिलाओं की स्थिति सुधारने का सबसे अधिक योगदान रहा। उन्होंने महिलाओ को शिक्षित करने पर जोर दिया। इसके इलावा उन्होंने पुर्नविवाह को क़ानूनी मान्यता दी और बाल विवाह का खंडन किया।
वह कला और संस्कृति को भी समझते थे और कलाकारों को संगीत के लिए प्रोत्साहित करते थे । उन्होंने लेखकों और शोधकर्ताओं को उनके प्रयासों में साथ दिया। उन्होंने भीमराव आम्बेडकर के साथ मिलकर बहुत ही से समाजिक सुधर किये।
दलितों की आर्थिक पराधीनता को समाप्त करने के लिए शाहू जी ने 1917 में ‘बलूतदारी प्रथा’ को समाप्त किया। इस प्रथा के अनुसार थोड़ी-सी ज़मीन के बदले किसी दलित को परिवार सहित पूरे गाँव की मुफ्त सेवा करनी पड़ती थी।
इसी तरह शाहूजी महाराज ने 1918 में ‘वतनदारी’ नामक एक और प्रथा का अंत किया। इसके तहत अब अछूतों को भी भूस्वामी बनने का अधिकार मिल गया।
6 मई, 1922 को महान समाज सुधारक छत्रपति शाहूजी महाराज की मृत्यु हो गई। उनका समाज के किसी भी वर्ग से किसी भी प्रकार की घृणा नहीं थी ।उन्होंने सामाजिक परिवर्तन की दिशा में जो कार्य किये थे, वह सराहनीय है।