Digital arrest-दो ही महीने में डिजिटल अरेस्ट की दो अलग-अलग सनसनीखेज घटनाएं फरीदाबाद और नोएडा में हो चुकी हैं। दोनों ही मामलो में निशाना युवा लड़कियां बनीं। इन्हें कई दिनो, घंटो तक कैद किए रखा गया। इनसे लाखों रुपये की वसूली भी की गई। दोनों पढ़ी लिखी होने के बावजूद साइबर बदमाशों के चंगुल में कैद हो गईं। खुद को कानून की गिरफ्त में मान इन दोनों ने लाखों रुपये लुटा दिए।
Digital arrest पूरा सच
सबसे पहले तो जान लीजिए कि डिजिटल अरेस्ट जैसी कोई चीज नहीं होती। गिरफ्तारी को सीआरपीसी की धारा 41 में परिभाषित किया गया है और सिर्फ उसी तरह से गिरफ्तारी हो सकती है। डिजिटल अरेस्ट का पूरा खेल जानना है तो वीडियो का लिंक दिया गया है उसे पूरा देखें।
केस नंबर 1 करीब एक डेढ़ माह पहले फरीदाबाद में 23 साल की एक लड़की को डिजिटल अरेस्ट कर 17 दिन घर में रहने पर मजबूर कर दिया गया। उससे ढाई लाख रुपये भी हड़प लिए गए। 12 अक्टूबर को उसे पास लखनऊ से एक कॉल आया और फिर देखते ही देखते वह डिजिटल अरेस्ट के जाल में फंस गई।
केस नंबर 2 13 नवंबर को नोएडा में रहने वाली आईडी इंजीनियर लड़की को मनी लांड्गि में फंसाने की धमकी देकर 8 घंटे तक डिजिटल अरेस्ट किया गया। इस दौरान उससे 11.11 लाख रुपये ठग लिए गए।
ये दोनो मामले तो वो हैं जो पुलिस तक पहुंचे। कई ऐसे मामले भी होते होंगे जिनमें शिकार होने वाला शख्स डर के मारे चुप रह जाता होगा। तो आज चर्चा इसी डिजिटल अरेस्ट की। लंबे समय से क्राइम कवर करता रहा हूं इसलिए सबसे पहले तो आपको बता दूं कि डिजिटल अरेस्ट जैसी कोई चीज नहीं होती। बिना वारंट अरेस्ट यानि वारंट के बिना ही की जाने वाली गिरफ्तारी को सीआरपीसी की धारा 41 में परिभाषित किया गया है।
इसके मुताबिक कोई पुलिस अधिकारी मजिस्ट्रेट के आदेश या वारंट के बिना ही किसी को गिरफ्तार कर सकता है तब जबकि वह व्यक्ति कोई संज्ञेय अपराध पुलिस अफसर के सामने ही हो रहा हो या उस व्यक्ति के खिलाफ शिकायत हुआ हो, संदेह हो या पक्की जानकारी हो कि उसने एक ऐसे अपराध को अंजाम दिया है जिसकी सजा सात साल तक हो जुर्माना सहित या बिना जुर्माना के हो सकती है। इसके कई व्याख्या भी हैं मगर मोटी बात इतनी सी ही है।
ठगो ने नए पैतरे के तहत डिजिटल अरेस्ट का नाम दिया है। इसमें मोबाइल या लैपटॉप से स्काइप पर वीडियो कॉलिंग कर या अन्य एप के जरिये किसी पर नजर रखी जाती है। उसे डरा धमका कर वीडियो कॉलिंग से दूर नहीं होने दिया जाता है। यानी वीडियो कॉल के जरिये आरोपी को उसके घर में या जहां वो है वहीं एक तरह से कैद कर दिया जाता है। इस दौरान पीड़ित न तो वह किसी से बात कर सकता है और न कहीं जा सकता है।
डिजिटल अरेस्ट का इस्तेमाल साइबर जालसाज करते हैं। जालसाज पुलिस क्राइम ब्रांच, सीबीआई, ईडी के अधिकारी बनकर एप डाउनलोड कराकर वर्चुलअ जांच का झांसा देते हैं। पीड़ित से पुलिस के अंदाज में पूछताछ की जाती है। जिसके बाद मनी लॉंड्रिंग, मानव तस्करी, हवाला कारोबार से लेकर ड्रग्स तस्करी में शामिल होने का आरोप लगाकर लाखों की वसूली की जाती है। आरोपी न तो किसी से मदद मांग सकता है और न किसी को अपनी कहानी बता पाता है। उसे जो निर्देश मिलते हैं, उसी के हिसाब से काम करता है।