डार्विन दिवस-जानिए क्यों मनाया जाता है डार्विन डे

डार्विन दिवस 12 फरवरी 1809 को चार्ल्स डर्विन के जन्मदिन के उपलक्ष्य में मनाया जाने वाला उत्सव है। इस दिन का उपयोग विज्ञान मे डार्विन के योगदान को उजागर करने और सामान्य रूप से विज्ञान को बढ़ावा देने के लिए किया जाता है।

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डार्विन

डार्विन दिवस 12 फरवरी 1809 को चार्ल्स डर्विन के जन्मदिन के उपलक्ष्य में मनाया जाने वाला उत्सव है। इस दिन का उपयोग विज्ञान मे डार्विन के योगदान को उजागर करने और सामान्य रूप से विज्ञान को बढ़ावा देने के लिए किया जाता है। दुनिया भर में डार्विन दिवस मनाया जाता है। 

एक लड़का जिसकी दिलचस्‍पी पढ़ने-लिखने से ज्‍यादा प्रकृति (Nature) को समझने में थी। धरती पर इंसान का विकास कैसे हुआ जीवन का लक्ष्‍य ही इसे समझना था, पर पेरेंट्स को लगता था वो बच्‍चा खानदान का नाम खराब करेगा। लेकिन उस बच्‍चे ने ऐसा इतिहास र‍चा जिसे आज भी पढ़ा जाता है। स्‍टूडेंट्स के बीच रिसर्च का विषय रहता है और उनकी उपलब्‍धियों का जवाब देना संभव ही नहीं हो पाया है। ऐसे थे वैज्ञानिक चार्ल्स डर्विन। इनका जन्‍म 12 फरवरी 1809 को हुआ था। इनके पिता रॉबर्ट डार्विन और मां सुसान डार्विन दोनों ही जाने-माने डॉक्‍टर थे और चाहते थे बेटा भी डॉक्‍टर बने, पर ऐसा नहीं हुआ। 2015 से इनके जन्‍म दिवस को डार्विन डे (DARWIN DAY) के तौर पर मनाने की शुरुआत हुई।

जब पिता ने कहा तुम खानदान की नाक कटाओगे

 ब्रिटेनिका की रिपोर्ट के मुताबिक, डार्विन के डॉक्‍टर माता-पिता हमेशा चाहते थे कि वो भी डॉक्‍टर ही बनें, लेकिन इनका मन न तो पढ़ाई में लगता था और न ही माता-पिता के सपने को साकार करने में। चार्ल्‍स की दिलचस्‍पी हमेशा से ही इस बात में रही कि धरती पर जीवन की शुरुआत कैसे हुई। पिता की लाख कोशिशों के बाद भी जब चार्ल्‍स का मन पढ़ाई में नहीं लगा तो उन्‍होंने थक-हारकर कहा, तुम्‍हे श‍िकार करने, चूहों और कुत्‍तों को पकड़ने के अलावा किसी भी चीज में दिलचस्‍पी नहीं है। तुम खानदान की नाक कटवाओगे। इस घटना के बाद इन्‍हें पढ़ाई के लिए एडिनबर्ग यूनिवर्सिटी भेज दिया गया।

22 साल की उम्र से शुरू हुआ इतिहास रचने का सफर

दिसम्‍बर 1831 में 22 साल की उम्र में चार्ल्‍स को बीगल नाम के जहाज से दुनिया घूमने का मौका मिला। इस दौरान उन्‍होंने दुनिया को देखा, समझा और जाना। सफर के पड़ाव में उन्‍होंने जीव-जंतु, पेड़-पौधे और कीट-पतंगों की प्रजातियों के नमूने लिए और कई सालों तक इन पर रिसर्च की। उनका कहना था, धरती पर सभी प्रजातियों की उत्‍पत्‍त‍ि एक ही जाति से जुड़ी है। समय के मुताबिक इनमें बदलाव हुए और ये अलग-अलग प्रजातियों में धीरे-धीरे तब्‍दील होती गए। इस तरह विविधता आई।

किताब में दर्ज किया इंसान का इतिहास

हम बचपन से सुनते आ रहे हैं कि हमारे पूर्वज बंदर थे और समय के साथ धीरे-धीरे हमने खुद को विकसित किया। हम बंदर से इंसान कैसे बने? इस बात का पता लगाया था चार्ल्स डार्विन ने। डार्विन की किताब ‘ऑन द ओरिजन ऑफ स्पेशीज बाय मीन्स ऑफ नेचुरल सिलेक्शन’ 24 नवंबर 1859 को पब्लिश हुई थी। इस किताब में एक चैप्टर था, ‘थ्योरी ऑफ इवोल्यूशन’ इसी में बताया गया था कैसे हम बंदर से इंसान बने।चार्ल्स डार्विन का मानना था कि हम सभी के पूर्वज एक हैं। उनकी थ्योरी थी कि हमारे पूर्वज बंदर थे।

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