crime thriller-जिंदा से मुर्दा फिर जिंदा करने की खौफनाक सत्य कथा

crime thriller-अपराध की कई खौफनाक साजिशों की सत्य कथा आपने पढ़ी होंगी। यकीन मानिय खौफनाक साजिश की इस सत्य कथा को पढ़ने के बाद आप सारी पुरानी सत्य कथाएं भूल जाएंगे। यहां तक कि अजय देवगन की फिल्म दृश्यम की स्क्रिप्ट भी इसके सामने फीकी नजर आएगी।

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crime thriller-अपराध की कई खौफनाक साजिशों की सत्य कथा आपने पढ़ी होंगी। यकीन मानिय खौफनाक साजिश की इस सत्य कथा को पढ़ने के बाद आप सारी पुरानी सत्य कथाएं भूल जाएंगे। यहां तक कि अजय देवगन की फिल्म दृश्यम की स्क्रिप्ट भी इसके सामने फीकी नजर आएगी। यह साजिश किसी जिंदा शख्स को मुर्दा बनाने और फिर उसे मुर्दा साबित कर बीमा की मोटी रकम हड़प कर उसे जिंदा करने की इस खौफनाक सत्य कथा का सूत्रधार एक पिता है। इस लालची पिता ने इस खौफनाक साजिश को किस तरह अंजाम दिया जानिए पूरी कहानी यहां।

crime thriller-हादसा

1 अगस्त 2006 की बात है। आगरा के रकाबगंज थाना पुलिस को एक बिजली के खंभे से टकरा कर कार में आग लगने की सूचना मिली। इस हादसे में कार में सवार शख्स की जिंदा जलकर मौत हो गई थी। पुलिस को उसकी लाश के नाम पर मात्र हड्डियों का ढांचा मिला। कार पर UP14Z2255 का नंबर प्लेट लगा हुआ था। कार गाजियाबाद के सिंहानी गेट निवासी अनिल कुमार के नाम पर राजिस्टर्ड था। पुलिस ने दिअए गए पते पर दरियाफ्त की तो अनिल कुमार की जगह उसके पिता विजय पाल से संपर्क हुआ। उसे मौके पर बुलाया गया। विजयपाल आगरा पहुंचा और कार देखते ही फफक कर रोने लगा। उसने बरामद हड्डियों के ढांचे की पहचान अपने बेटे अनिल कुमार के नाम पर की। पूछताछ में पता लगा कि पिता पुत्र कपड़े के थोक व्यापारी हैं और अनिल कारोबार के सिलसिले में हीं कार से आगरा गया था। यहां से उसे अपने बड़े भाई अभय के ससुराल मथुरा जाना था, लेकिन पहले ही यह हादसा हो गया। विजयपाल ने किसी तरह के फाउल प्ले और रंजिश से भी इंकार कर दिया। स्पष्ट हो गया कि अनिल की मौत महज एक हादसा है। पुलिस ने भी मीडिया आदि में हादसे के बारे में बयान दिया और कब सुछ शांत।

crime thriller-अनिल की पहचान के लिए बने कागजात

गुजरात से मिला यह सुराग

आगरा की पुलिस हादसा समझकर फाइल बंद कर चुकी थी। मगर 17 साल बाद अचानक इस हादसे ने टर्न ले लिया। वह भी यूपी से नहीं बल्कि गुजरात से। अहमदाबाद में क्राइम ब्रांच के इंस्पेक्टर मितेश त्रिवेदी ने किसी मामले में राज कुमार चौधरी नामक एक युवक को हिरासत में लिया। युवक के पास पहचान के सभी सरकारी कागजात मौजूद थे। पूछताछ में उसके पिता का नाम विजय चौधरी पता लगा। दरअसल गुजरात पुलिस को गुप्त सूचना मिली थी कि राज चौधरी ही वह युवक है जो 17 साल पहले कार में जिंदा जल कर मर गया था।

साजिश का खुलासा

गुजरात पुलिस ने राज उर्फ अनिल से कड़ाई से पूछताछ की तो एक ऐसे खौफनाक साजिश से पर्दा उठा जिसकी नींव शायद अनिल के जन्म से पहले ही रख दी गई थी। अनिल ने पुलिस को बताया कि सारी साजिश उसके पिता विजय पाल की है। विजय पाल काफी दिन से नाबालिग बच्चों से चोरी आदि भी कराकर पैसे कमाता था। अनिल को मुर्दा करने और फिर जिंदा करने की साजिश विजयपाल ने 1 करोड़ रु के बीमा की लालच में रची थी। साजिश को अमली जामा पहनाने के लिए विजयपाल ने गाजियाबाद रेलवे स्टेशन पर से एक चायवाले की मदद से एक समान उम्र वाले भिखारी की पहचान की थी।

crime thriller द बर्निंग कार

30 जुलाई को भिखारी क अच्छा खाना और कार में घुमाने के बहाने वे आगरा ले गए। आगरा में काफी घूमने के बाद इन्हें रकाबगंज में एक मुड़ा हुआ बिजली का खंभा दिखा था। वारदात के लिए तब इसी जगह को चुना गया। इसके बाद भिखारी को खाने में ढेर सारी नींद की गोलियां दी गईं। जब भिखारी बेहोश सा हो गया तो उसे कार में बिठाकर मौके पर ले जाया गया।

अंधेरा होने पर मौका देखकर कार की टक्कर बिजली के खंभे से करवा दी गई। इसके बाद कार में पेट्रोल छिड़कर आग लगा दी गई। यह सब करने से पहले ड्राइविंग सीट पर भिखारी को बिठा दिया गया था। जब कार पूरी तरह जलने लगी तक अनिल वहां से सीधा गुजरात निकल गया जबकि पिता विजय पाल अपने गांद ग्रेटर नोएडा पहुंचा। पुलिस ने जब उससे संपर्क किया तो उसने लाश की पहचान अनिल के रूप में कर उसे मृत घोषित कर दिया।

crime thriller-21 साल से रची जा रही साजिश

अहमदाबाद क्राइम ब्रांच की टीम जांच करते हुए ग्रेटर नोएडा के पारसौल गांव पहुंची थी। यहां 8 वीं तक पढ़े अनिल की पहचान स्कूल में भी हो गई। अनिल के पिता और भाई तब फरार थे। घर की तलाशी में बरामद एक फाइल से पता लगा कि विजयपाल ने यह साजिश 21 साल से रची थी। अनिल जैसे ही 18 साल का हुआ था विजय पाल ने एलआईसी की पॉलिसी लेनी शुरू की। अगले एक साल में अनिल के नाम चार पॉलिसी ली गई इन सबमें नॉमिनी विजयपाल था।

यह पॉलिसी तो 20 लाख की थी मगर दुर्घटना में मौत पर बीमे की रकम चार गुना ज्यादा मिलने का नियम था। साजिश को रियल बनाने के लिए 4 साल तक इमानदारी से प्रीमियम भरा गया। एक साल का प्रीमियम 85 लाख रुपये था मगर कई गुना ज्यादा रकम मिलने की लालच में वे प्रीमियम भरते रहे। हादसा कराने से कुछ महीने पहले ही नई कार भी खरीदी गई। काम बीमा में भी हादसे से मौत पर 10 लाख की रकम मिलने की बात थी। हालांकि हादसे के बाद बीमा कंपनी ने रकम देने से मना किया मगर कंज्यूमर फोरम की मदद से वो 95 लाख और 10 लाख यानि 1 करोड़ 5 लाख की रकम हड़पने की साजिश रच गए।

crime thriller- 17 साल कोई संपर्क नहीं

साजिश को कामयाब बनाने के लिए बाप बेटों ने कभी एक दूसरे को मैसेज तक नहीं किया। पीसीओ फोन या पास के रेलवे स्टेशन पर मुलाकात यही उनके आपसी संपर्क का जरिया था। एक बार नोएडा पुलिस को भी इस संबंध में शिकायत मिली थी मगर नोएडा पुलिस ने जांच में सबूत ना मिलने की बात कही थी। हालांकि आगार पुलिस अब गुजरात पुलिस की रिपोर्ट पर भिखारी की हत्या का मामला दर्ज कर सकती है।

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