किडनी रैकेट के बांग्लादेश कनेक्शन का खुलासा हुआ है। दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच ने इस रैकेट का भांडाफोड़ करते हुए डॉक्टर और उसके दो स्टाफ सहित सात लोगों को गिरफ्तार किया है। कुछ अस्पतालों की भूमिका भी जांच की जा रही है। इनमें दिल्ली और यूपी के अस्पताल शामिल हैं। इनके पास से डॉक्टरों के कई नकली स्टाम्प आदि के साथ फर्जी मेडिकल कागजात बरामद किए गए हैं।
किडनी रैकेट के लिए ऐसे फंसाए जाते थे शिकार
दिल्ली पुलिक क्राइम ब्रांच के डीसीपी अमित गोयल के मुताबिक इस रैकेट का सरगना बांग्लादेशी था। ये लोग बांग्लादेश के लोगों को नौकरी या कारोबार के बहाने भारत लाकर उनके किडनी बेचा करते थे। दिल्ली पुलिस क्राइम ब्रांच के अंतर्राज्यीय सेल को इस रैकेट के बारे में गुप्त सूचना मिली थी। इसके बाद डीसीपी अमित गोयल के निर्देश पर एसीपी रमेश लांबा की देखरेख और इंस्पेक्टर कमल कुमार और सत्येन्द्र मोहन के नेतृत्व में एसआई गुलाब सिंह, आशीष शर्मा, समय सिंह, एएसआई शैलेन्द्र सिंह, राकेश कुमार, जफरूद्दीन, हेडकांस्टेबल रामकुश, वरूण, शक्ति सिंह और कांस्टेबल नवीन कुमार की टीम बनाई गई।
पुलिस टीम ने करीब एक माह पहले 16 जून को जसोला गांव में छापा मारकर बांग्लादेश निवासी रसेल, रोकोन, और सुमन मिया तथा त्निपुरा निवासी रतेश पाल को गिरफ्तार किया। इनसे पूछताछ के बाद तीन किडनी चाहने वालों और तीन किडनी डोनर की पहचान की गई। पुलिस के मुताबिक रसेल बांग्लादेश में किडनी रोगियों की पहचान करता था। इसके बाद बांग्लादेश के ही गरीब लोगों को नौकरी या काम के बहाने भारत लाया जाता था।
इनको ही जावी दस्तावेज के आधार पर रोगी का रिश्तेदार दिखाकर किडनी प्रत्यारोपण का रैकेट चलाया जा रहा था। इस मामले में जांच के दौरान पाया गया कि डॉ डी विजय राजकुमारी का निजी सहायक विक्रम सिंह मरीजों की फाइलें तैयार करने में सहायता करता था और मरीज और डोनर का हलफनामा तैयार कराने में अहम भूमिका निभाता था। विक्रम सिंह आरोपियों से प्रति मरीज 20000 रुपये लेता था।
रैकेट में शामिल मोहम्मद शरीक डॉ. डी. विजया राजकुमारी से मरीजों का अपॉइंटमेंट लेता था और पैथोलॉजिकल टेस्ट करवाता था और डॉक्टर की टीम से संपर्क रखता था। मोहम्मद शरीक प्रति मरीज ₹ 50000/-60000/- लेता था। पुलिस ने इन दोनों को भी गिरफ्तार कर लिया। पूछताछ में इन्होंने बताया कि किडनी रैकेट के बारे में डॉक्टर को भी सब कुछ पता था। इसके बाद डाक्टर डी विजया कुमारी को भी गिरफ्तार कर लिया गया।
रसेल बांग्लादेश का मूल निवासी है और उसने 12वीं कक्षा तक पढ़ाई की है। वह 2019 में भारत आया और एक बांग्लादेशी मरीज को अपनी किडनी दान कर दी। किडनी की सर्जरी के बाद उसने यह रैकेट शुरू कर दिया। वह इस रैकेट का किंगपिन है और विभिन्न हितधारकों के बीच समन्वय करता है। उसने बांग्लादेश के संभावित किडनी दाताओं और किडनी रोगियों के साथ संपर्क स्थापित किया। वह बांग्लादेश में इफ्ति से डोनर प्राप्त करता था।
प्रत्यारोपण चक्र पूरा होने पर उसे आमतौर पर इस कंपनी से 20-25% कमीशन मिलता है। एक प्रत्यारोपण में आम तौर पर एक मरीज को ₹ 25-30 लाख का खर्च आता है। मोहम्मद सुमन मियां बांग्लादेश का मूल निवासी है और उसने 12वीं कक्षा तक पढ़ाई की है। आरोपी, आरोपी रसेल का साला है और वर्ष 2024 में भारत आया था और तब से रसेल के साथ उसकी अवैध गतिविधि में शामिल हो गया। वह किडनी के मरीजों की पैथोलॉजिकल जांच का काम करता है।
रसेल उसे प्रत्येक मरीज/दाता के लिए ₹ 20,000 का भुगतान करता था। मोहम्मद रोकोन @ राहुल सरकार @ बिजय मोंडल बांग्लादेश का मूल निवासी है और उसने 12वीं कक्षा तक पढ़ाई की है। वह रसेल के निर्देश पर किडनी डोनर और मरीज के फर्जी दस्तावेज तैयार करता था। रसेल उसे प्रत्येक मरीज/डोनर के लिए ₹30,000 देता था। उसने 2019 में एक बांग्लादेशी नागरिक को भी अपनी किडनी दान की थी।
रतेश पाल त्रिपुरा का रहने वाला है और उसने 12वीं तक पढ़ाई की है। रसेल उसे प्रत्येक मरीज/डोनर के लिए ₹20,000 देता था। शरिक बीएससी तक पढ़ा हुआ है। मेडिकल लैब टेक्नीशियन और यूपी का रहने वाला है। वह निजी सहायक विक्रम और डॉ. विजया राजकुमारी के साथ समन्वय करता था। विक्रम ने 12वीं तक पढ़ाई की है और वह उत्तराखंड का रहने वाला है, वर्तमान में फरीदाबाद, हरियाणा में रहता है। आरोपी डॉ. डी. विजया राजकुमारी का सहायक है।
डॉ. विजया राजकुमारी किडनी सर्जन हैं और दो अस्पतालों में विजिटिंग कंसल्टेंट हैं। इनके पास से विभिन्न डॉक्टर, नोटरी पब्लिक, अधिवक्ता आदि के 23 स्टैम्प , किडनी रोगियों और दानकर्ताओं की 06 जाली फाइलें।अस्पतालों के जाली दस्तावेज, जाली आधार कार्ड. जाली स्टीकर, खाली स्टांप पेपर, पेन ड्राइव, हार्ड डिस्क, 8 मोबाइल फोन और 1800 यूएस डालर भी बरामद हुए हैं।
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